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अनेकान्त/२८
मिथ्या दर्शन, मिथ्या ज्ञान एवं मिथ्या चरित्र कहते है । यह मंसार के अनन्त दुःख का मार्ग है । ठीक इसके विपरीत मोक्ष मार्ग है जो “सम्यक दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्ग के अनुसार सम्यक श्रद्धान, सम्यक-ज्ञान एव सम्यक चारित्र की एकता रूप है । इसमे सम्यक दर्शन मोक्षमार्ग का मूल आधार है आत्म रूचि ही सम्यग्दर्शन है जो जीवादि सात तत्वा एव नौ पदार्थो के ज्ञान एवं ग्रहण सहित आत्मानुभूति पूर्वक होता है ।
जीवादि सात तत्व एवं नौ पदार्थो के ज्ञान मे उनकं स्वरूप कर्म-बन्ध, कर्म-क्षय की प्रक्रिया, पाप-पुण्य रूप अशुभ-शुभ भावो के स्वरूप तथा उनके फल का व्यापक वर्णन हुआ है । इसमें जीव-अजीव जानने योग्य ज्ञेय रूप है, आश्रव वन्ध न्याज्य हेय है, संवरनिर्जरा एक देश उपादेय है तथा मोक्ष तत्व उसका फल है । पाप पुण्य आश्रव तत्व में सम्मिलित है। कर्म बन्ध के प्रत्यय
भावो के अनुसार कर्म बन्ध एवं उसके कारक, प्रत्ययों का वर्णन आगम मे अनेक नयो से किया गया है । सामान्यत. मिथ्यान्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय, और योग यह कर्मवन्ध के प्रत्यय है । इनमें 'मिथ्यान्च' मिथ्यादर्शन का सूचक है तथा अव्रत प्रमाद कषाय'' मिथ्या-चारित्र में सम्मिलित है तथा “योग'' मन वचन काय के निमित्त आत्म प्रदेशो की चचलता दर्शाता है । कर्म-बन्ध के प्रत्ययो का वर्णन वेदना प्रत्यय विधान के अंतरगत धवला पुस्तक १२ कं पृष्ठ २७४ से २९३ तक किया है, जो इस प्रकार है ।
नयो मे नैगम, व्यवहार और संग्रह नय द्रव्यार्थिक नय कहलाते हैं । इनके अनुसार ज्ञानावरणादिक आठ कर्मों का वन्ध प्राणातिपात, असत वचन, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, रात्रि भोजन, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेप, मोह, प्रेम, निदान, अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, रति, अति, उपाधि, धोखा, मोप, मिथ्या ज्ञान, मिथ्या-दर्शन, और योग से होता है। (सूत्र १ मे ११) ऋजु सूत्र नय पर्यायार्थिक नय है । इसकी अपेक्षा कर्मवन्ध में योग से प्रकृति और प्रदेश बन्ध होता है तथा कषाय से स्थिति और अनुभाग वन्ध होता है । (सूत्र १२-१४) शब्द, समभिरूढ़ तथा एव भृत यह तीन शब्द नय है । शब्द नय की अपेक्षा कर्म-वन्ध का कारण अव्यक्त है ।
आचार्य कन्द कुन्द के अनुसार “परिणाम से बन्ध है, परिणाम राग-द्वेप-मोह युक्त है। उनमे माह और द्वेप अशुभ है, राग शुभ अथवा अशुभ होता है । (प्रवचनसार गाथा
कर्म-बन्ध में प्रत्ययों का वर्णन विविध नयो या दृष्टिकोणो के ऊपर आधारित हान क कारण उनके जटिल व बहुआयामी स्वरूप को एक शब्द में व्यक्त नहीं किया जा सकता ओर न ही उमगे कोई निर्णायक निष्कर्ष ही निकाले जा गकतं । यदि ऐसा किया भी गया ना वह पर-समय म्प मिथ्या ही होगा । फिर अध्यात्म में यह प्रयाग समाहित है जिसे ज्ञात कर 'सम्यक दर्शन-ज्ञान-चारित्र'' रूप मोक्ष मार्ग के द्वारा कर्मों का नाशाक्षय किया जाता है।