SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/२१ श्रवणवेलगोल वह कर्नाटक प्रान्त का भाग जहाँ जैन जाति की पच्चीस सौ वर्ष की सभ्यता का इतिहास अंकित है । यहा की भूमि अनेक मुनि महात्माओं की तपस्या से पवित्र, अनेक नरेशो और सम्राटो के दान से अलकृत है | श्रवणवेलगुल का अर्थ-श्रमण नाम जैन मुनि और वेल्यूल कन्नड़ी भाषा के “वेल'' औ गुल (गोला) कोल का अपभ्रश है जिसका अर्थ है सरोवर । इस प्रकार इसका अर्थ जैन श्रमणो का धवल सरोवर । यह गोलश्रृंगार का स्पष्ट प्रतीक है । यहां के निवासी गोलभंगार कहलाये जो अब गोलसिंगारे कहे जाते है। ____ श्रमणबेलगोल ग्राम मैसूर प्रान्त मे हासन जिले के चन्नरायपाटन ताल्लुके मे दो सुन्दर पहाडियो चन्द्रगिरि और विन्ध्यागिरी के बीच मे बसा है। इस गाँव के बीचोबीच एक रमणीक मरांवर है जिसका प्राचीन उल्लेख श्वेत सगेवर धवलसर व धवल सरोवर है । यहा के निवासी धवल, श्वेत अथवा श्रेष्ठ कहलाये, क्योंकि यहाँ की भूमि मुनियों की तपस्या से पवित्र है । इसलिए गोलथगार नाम से प्रसिद्धि पाई इसका अपभ्रश वर्तमान मे गोलसिघार हा गया । यहाँ पर मसार की सर्वश्रेष्ठ बाहुबलि की मूर्ति है जिसे गोम्मटेश्वर कहते है । इसके निर्माण की जानकारी से स्थिति स्पष्ट होगी । श्रवणवलगोला के लेख न० ८५ (२३४) में बताया गया है - इसके अनुसार गोम्मटपुर देव अपग्नाम ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर के पुत्र थे । इनका नाम वाहुवलि या भुजवलि भी था । इनकं ज्येष्ठ भ्राता भरत थे । ऋषभदेव कं दीक्षा धारण के उपरान्त भरत और बाहुबलि दोनो भाईयो मे राज्य के लिए युद्ध हुआ जिसमें वाहुबलि की विजय हुई । पर ससार गं गति से विरक्त हो उन्होने राज्य अपने ज्येष्ठ भ्राता को दे दिया और तपस्या हेतु वन को चले गये । थोडे ही काल मे घोर तपस्या कर उन्होंने कंवल्य ज्ञान प्राप्त किया भरत ने जो अब चक्रवर्ती राजा हो गये थे, पांदनपुर में उनकी शगंगकृति के अनुरूप ५२५ धनुष की प्रतिमा स्थापित कराई । समयानुसार मूर्ति के आस पास का प्रदेश कुक्कुट-सर्पो से व्याप्त हो गया जिससे मूर्ति का नाम कुक्कटेश्वर पड़ गया । धीरे-धीरे वह मूर्ति लुप्त हो गयी और उसके दर्शन केवल दीक्षित व्यक्तियो को मत्र शक्तियों में प्राप्त हो गये । चामुण्डराय मत्री ने इस मूर्ति का वर्णन सुना और उसके दर्शन करने की अभिलाषा हुई । पर पोदनपुर की यात्रा अशक्य जान उन्होंने उसी के समान स्वब मूर्ति स्थापित करने का विचार किया और तदनुसार इस मूर्ति का निर्माण कगया । भूजल चरित्र में यही वर्णन कुछ हर घर में दिया है । परन्तु यह इस लेख क विषय के लिए उसकी आवश्यकता नहीं है । दृगळ पचात अभिषेक की तयारी हुई । पर जितना भी दुग्ध चामुण्डगय ने एकत्रि कगया उसय मूर्ति की जघा से नीचे क ग्नान नहीं हो सकं । चामुण्डाय न घवगकर गुम का माह ली । उन्होंने आदेश दिया कि जो दृग्ध एक वृद्धा स्त्री अपनी “गुल्लिकाय" (गाल लुटिया) में लाई है उससे स्नान करा आ । आश्चर्य कि उस अल्पस दुग्ध धारा के
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy