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________________ अनेकान्त/१८ गोल्ला देश --रामजीत जैन एडवोकेट वर्तमान में जिस अन्वय को गोलालारे नाम से सम्बोधित किया जाता है, मूर्तिलेखों, यंत्रलेखो और ग्रन्थ प्रशस्तियो मे उस अन्वय का मूलनाम “गोलाराड़'' है । राड शब्द राष्ट्र वाची है, राज उसी का अपभ्रश रूप है | इससे ऐसा अनुमान होता है कि प्राचीन काल मे भारतवर्ष के भीतर कोई ऐसा देश या प्रदेश रहा है, जो अतीत में गोलादेश या गोल प्रदेश कहा जाता रहा है ।। १ ।। यत्र लेख “सं १४७४ माघ १३ गुरौ मूलसघे गोला राडान्वये सा लम्पू पुत्र नरसिह इद यत्र प्रतिष्ठापितं ।" गोलालाढ़ के समीप रहने वाले गोलालारे कहलाते है । इसके निकास का स्थान गोलागढ़ है । गोलाराडान्वय मे खरौआ एक जाति है ।। २ ।। गोलभंगार -गोलागढ़ से सामूहिक रूप से निवास करने वालों मे उसके श्रगार कहलाते है । यदि श्रंगार शब्द का अर्थ सहज अभिप्राय को व्यक्त करना ठीक माना जाए तो वे उसके भूषण कहला सकते है ।। ३ ।। गोलदेश या प्रदेश, गोलालाड अथवा गोलागढ़ समान अर्थवाची गोलादेश से ही सम्बन्धित है और गोलालारे, गोलभंगार व खरौआ से सम्बंधित है इसलिए सबका सन्दर्भ लेकर ही कथन करना उपयुक्त होगा | गोला पूर्व जाति में इसी से सम्बधित होने से आवश्यकतानुसार सन्दर्भ लिखा जावेगा । || देवकीर्ति - पट्टावली (शक सम्वत् १०८५) ।। इत्याधुमुनीन्द्र सन्तति निधौ श्री मूलसंघे ततो, जाते नन्दिगण-प्रमेद विलसद्देशीय गणे विश्रुते । गोलाचार्य इति प्रसिद्ध-मुनियाभृदोन्लदेशाधिमः, पूर्वकंन च हेतुना भवभिया दीक्षा गृहीतस्सुधीः ।। ४ ।। गोलाचार्य मूलसंघान्तर्गत नंदिगण से प्रसूत देशीयगण के प्रसिद्ध आचार्य थे, और गोल्लाचार्य मूल नाम से विख्यात थे यह गृहस्थ अवस्था मे पहले गोल्लादेश के अधिपति
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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