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________________ अनेकान्त/27 उसकी रक्षा की। रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। तथा भूमिगृह मे उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सुभूम रखा । परशुराम का क्रोध इतना बढा कि उनके परशु ने हजारों क्षत्रियों का वध कर डाला। एक दिन वे उसी आश्रम में पहुंचे जहा सुभूम बडा हो रहा था। वहा जब उनका परशु जलने लगा, तब उन्होंने तापसों से पूछा, "क्या यहा कोई क्षत्रिय है?" उन तापसों ने उत्तर दिया कि हम क्षत्रिय ही तापस बने है । यह सुनकर परशुराम ने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियरहित कर दिया। इसके आगे की खीर संबंधी भविष्यवाणी ऊपर दिए गए कथानक के अनुसार है। सुभूम ने भी इक्कीस बार पृथ्वी को ब्राह्मणो से रहित कर दिया । उसने अपने पिता का राज्य पुन प्राप्त किया तथा चारो दिशाओ मे अपनी सेना घुमाकर छह खंडो का चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। इस चक्रवर्ती ने पश्चिम दिशा की विजय के चिन्हस्वरूप सुभटो की हड्डियो को पश्चिमी समुद्र तट पर इस प्रकार बिखेर दिया मानों समुद्र तट पर चारो ओर सीप और शख फैले हो" कितु युद्ध में निरन्तर पंचेन्द्रिय जीवों की हत्या के कारण यह अतिम सातवे नरक मे यातनाए भोगने का भागी बना। परशुराम संबधी श्रमण और ब्राह्मण उक्त कथाओं से कुछ निष्कर्ष निम्न प्रकार सभव है-- किसी समय इन दोनो परपरा के अनुयायियो मे भयकर सघर्ष एव रक्तपात हुआ। इसका प्रारभ सभवत मिथिला मे हुआ जहा तीर्थकर नमिनाथ का जन्महुआ था और जिनकी वश परपरा मे राजा जनक जन्मे थे। मिथिला से सबंधित यह तथ्य सुविदित है कि आत्मविद्या का ज्ञान ब्राह्मणों ने क्षत्रियो से प्राप्त किया था। उपनिषदो से इस बात की पुष्टि होती है। इस प्रकार यह कथा इक्कीसवे तीर्थकर नमिनाथ से जुड जाती है। उनके बाद बाईसवे तीर्थकर नेमिनाथ हुए है जो श्रीकृष्ण के छोटे भाई थे। नेमिनाथ वसुदेव के सबसे बड़े भाई समुद्रविजय के पुत्र थे। अत ये घटना महाभारत काल से पूर्व की हो सकती है। इस सघर्ष की समाप्ति केरल मे या पश्चिमी समुद्र तट पर हुई। ___ परशुराम के क्रोध से एक क्षत्रिय बालक बच गया था जो कि जैन परपरा के अनुसार आठवा चक्रवर्ती सुभौम हुआ । केरल मे प्रचलित ब्राह्मण परपरा का भी यही कथन है कि परशुराम ने ही क्षत्रियपुत्र को राजा बनाया और उसका नाम रामघट रखा। वह मूषकवश का संस्थापक बना। केरल के इतिहास में इस वंश का महत्वपूर्ण स्थान है। इससे सुदूर अतीत में भी केरल मे जैनधर्म का अस्तित्व अनुमानित करने मे बहुत बड़ी आपत्ति सभवत नही हो सकती। बी-1/324 जनकपुरी नई दिल्ली-110058
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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