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________________ १२. वर्ष ४७, कि०३ अनेकान्त याश्रित है। इन्हीं का विशदीकरण करते हुए प्रथम सूत्र दूसरे प्रकार से स्कन्ध के छह और परमाणु के दो भेद कार बाचार्य उमा स्वामी ने कहा है-"सद्रव्य लक्षण, किए गए है।" "उत्पादव्यय ध्रौव्ययुक्तं तथा 'गुणपर्ययवाद् द्रव्यम्' १. स्थूलस्थूल-जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होने पर "तत्वार्थ सूत्र ५/३०, ३८" स्वयं न मिल सके, ऐसे ठोस पदार्थ यथा लकडी कुन्द कुन्द के अनुसार द्रव्यों की मग्या छह स्वीकार पत्थर आदि। की गई है। जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और स्थल-जो छिन्न-भिन्न होकर फिर आपस में काल ।' भारदीय दर्शनो, विशेषता वैशेषिक दर्शन में नव मिल जाय, जैसे घी, दूध, जल आदि । प्रव्यों की कल्पना को गई है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, ३. स्थल सूक्ष्म-जो दिखने मे स्थूल हो अर्थात् अाकाश, काल, दिक् आत्मा और मन। नेन्द्रिय से ग्राह्य हो, किन्तु पकड़ मे न आवे इन द्रव्यो का विभाजन तीन दृष्टियों से किया जा जैसे छाया, प्रकाश, अन्धकार आदि । सकता है। चेतन-अचेतन की दृष्टि से विभाजन करे तो ४. सक्षम स्थल-जो दिखाई न दे, अर्थात नेत्रजीव द्रव्य चेतन है बाकी ५ अचेतन, मूर्तिक अमूर्तिक की न्द्रिय ग्राह्य न हो, किन्तु अन्य इन्द्रियो स्पर्श, रसना घ्राणादि से ग्राह्य हो। यथा ताप, ध्वनि, दृष्टि से विभाजन करें तो पुद्गल मूर्तिक है बाकी ५ अमू गन्ध, रस स्पर्श आदि। तिक तथा अस्तिकाय, अनस्तिकाय की दृष्टि से विभाजन ५. सूक्ष्म- स्कन्ध होने पर भी जो सूक्ष्म होने के करें तो काल अनस्तिकाय है बाकी ५ अस्तिकाय ।' कारण इन्द्रियो द्वारा ग्रहण न किया जा सके। कुन्द कुन्द के अनुसार पुद्गल द्रव्य मूर्तिक अचेतन, यथा कर्म वर्गणा आदि । अस्तिकाय है। माध्वाचार्य ने पुद्गल की व्युत्पत्ति करते . अति सक्ष्म-जो कर्मवर्गणा से भी सूक्ष्म हो हुए लिखा है-'यूरयन्ति गलन्तीति पुद्गल.' अर्थात् जो यथा द्यणुक। द्रव्य "स्कन्ध अवस्था में" अन्य परमाणुओ से मिलता है। परमाणु भी कारण परमाणु कार्य परमाणु के भेद से ___ "पु+णिच्" और गलन “गल"-- पृथक होता है, दो प्रकार का है। जो पृथ्वी जल आदि का कारण है, उसे पुद्गम कहते है। आचार्य कुन्द कुन्द ने कहा है- उसे कारण परमाणु और स्कन्धो का जो अन्त है वह कार्य वण्ण रसगंधफासा विज्जते पोग्गलस्स सुहमादो। परमाणु है" परमाणु सूक्ष्माति सूक्ष्म है। यह अविनाशी, पुढवीपरियतम्स य सद्धो सो पोग्गलो णिच्चो ॥ शाश्वत् शब्दरहित तथा एक है। परमाणु का आदि मध्य अर्थात् पुद्गल द्रव्य मे नीला, पीला, सफेद, काला और अन्त वह स्वयं ही है-- और लाल ये पाच रूप, कडुआ तीखा, आम्ल, मधुर और "अत्तादि अनमज्नं अत्तन्त णेव इंदिए गेज्म । कषायसा ये पांच रस, सुगन्ध तथा दुर्गन्ध थे दो गन्ध अविभागी जं दव परमाण तं विआणाहि ॥२ और कोमल-कठोर, गुरू-लघु, शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष ये अर्थात् जिसका स्वय स्वरूप ही आदि मध्य और अन्त स्पर्श हैं। ___रूप है, जो इन्द्रियो के द्वारा द्रष्टव्य (ग्राह्य) नही है ऐसा पुद्गल दो प्रकार का है एक अणु और दूसरा स्कन्ध अविभागी द्रव्य परमाणु है। यहा ध्यातव्य यह है कि स्कन्ध के स्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्ध प्रदेश ये ये तीन परमाणु का यही रूप आधुनिक विज्ञान भी मानता है। भेद हो जाते है । अणु मिलाकर ८ प्रकार के पुद्गल कहे जा अधुनिक विज्ञान के अनुसार भी परमाणु किसी भी इन्द्रिय सकते है। जो सर्व कार्य-समर्थ हो उसे स्कन्ध कहते है। या अणुवीक्ष्ण यन्त्रादि से ग्राह्य नहीं होता है। इसी तथ्य कन्ध के आधे भाग को स्कन्ध देश और उससे भी आधे की पुष्टि करते हुए प्रोफेमर जान, पिल्ले विश्वविद्यालय भाग को स्कन्ध प्रदेश कहते है तथा जिसका दूसरा भाग न ब्रिस्टल ने लिखा हैहो सके उसे अणु या परमाणु कहते हैं।' "We cannot see atams eithar and never
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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