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कुन्दकुन्द और पुद्गल द्रव्य : आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष्य में
0 डा० कपूरचंद जैन, खातौली
आचार्य कुन्द-वन्द ने अब से दो हजार वर्ष पूर्व मानव आज भी शाश्वत सत्य सिद्ध हो रहे है। विशेषतः चिन्तन को एक नई दिशा दी। अध्यात्म प्रतिष्ठापक परमाणु से सम्बन्ध में किया गया उनका गहन चिन्तन आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म दक्षिण भारत के कोण्ड कोन्ड- उनकी सूक्ष्म वैज्ञानिक दृष्टि को प्रतिपादित करता पुर में हुआ था। किन्तु, दक्षिण या उत्तर पूर्व या पश्चिम है। आचार्य श्री द्वारा प्रतिपादित सूक्तियाँ तो सहृदयो वे सर्वत्र समान रूप मे समादृत है। राष्ट्रीय एकता के वे का कंठहार है, एक स्थान पर उन्होने कहा हैजीवन्त स्वरूप हैं। आचार्य कुन्दकुन्द आश्चर्य जनक "ण वि देहो बंदिज्जह ण वि य कलोण विय ऋद्धियो के धारक तया अतिशय ज्ञान सम्पन्न योगी थे।
जाइसंजुत्तो। भारतीय परम्परा विशेषत. श्रमण परम्परा मे उन्हें को वंदमि गुणहीणो ण हु सवणो णेव सावओ भगवान महाबीर और उनकी दिव्य वाणी के आधार पर
होई॥ द्वादशाग-आगम प्रणेता गौतम गणधर के बाद सर्वोच्च स्थान अर्यात्--शरीर कुल या जाति वदनीय नहीं अपितु दिया गया है किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ मे निम्न गुण रहित न तो थावक है और न ही साध। यह आधमंत्र स्मरण करने की परम्परा आज भी श्रमणो मे निक समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का मलमंत्र कहा विद्यमान है
जा सकता है। 'मगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणी।
आचार्य कुन्द कुन्द श्रमण संस्कृति के उन्नायक प्राकृत मंगलं कुन्द कुन्दाद्यो जैन धर्मोऽस्तु मगलम् ।।'
साहित्य के अग्रणी प्रतिभू तर्क प्रधान आगमिक शैली मैं भगवान महावीर मगल स्वरूप है, गौतम गणधर लिखे गए अध्यात्म विषयक साहित्य के युग प्रधान आचार्य
है और है। उनकी महत्ता इस बात मे भी दृष्टि गोचर होती है जैन धर्म मगल स्वरूप है।
कि परवर्ती आचार्य अपने आपको कुन्द कुन्दान्वयी कहकर आचार्य कुन्दकुन्द ने तिरूकारल, समयसार, प्रवचन- गौरवान्वित अनुभव करते है। सार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड जैसे अनमोल जैन दर्शन के अनुसार ममग्र विश्व छह द्रव्यो का ग्रंय-रत्नो का उपहार अध्यात्म जगत को दिया है। इनके पिंड है। आचार्य कुन्द कुन्द ने सभी द्रव्यो पर विचार अतिरिक्त अन्य अनेक कृनियाँ आज भी अप्राप्त है, किया है किन्तु जीव व पुद्गल का विरतार में विवेचन परम्परानुसार वे ८४ पाहुडो के कवि रचयिता थे। किया है। प्रवचनसार, पचास्तिकाय, नियमसार आदि तिरूक्कुरल ग्रन्य परवर्ती काल में इतना प्रसिद्ध हुआ कि ग्रन्थों में पुद्गल के सन्दर्भ में विस्तृत गवेपणा की गई है। संसार की लगभग १०० भाषाओ मे इसका अनुवाद हुआ। द्रव्य का लक्षण करते हुए कुन्द कुन्द ने कहासमयसार में शुद्ध आत्मतत्व का जैसा विवेचन उन्होने "दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादश्वयधु वत्त संजुत्त । किया है वसा अन्यत्र दुर्लभ है। इस ग्रथ को श्रमण गुण पज्जयासवं व जं तं भण्णति सबण्हू ।' परम्परा मे गीता, बाइबिल और कुरान का स्थान द्रव्य का लक्षण तीन प्रकार से है, द्रव्य का प्रयम प्राप्त है।
लक्षण, सत्ता है, द्रव्य का द्वितीय लक्षण उत्पाद, व्यय, आचार्य कुन्दन्द द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक सिद्धांत धौव्य संयुक्त है और द्रव्य का तृतीय लक्षण गुण पर्या