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________________ जरा-सोचिए १. दिगम्बरत्व की रक्षा एक समस्या: अपनी अयाचीक वृत्ति को भी लांछिन करते हैं, बादि। इसी अंक मे दिगम्ब रत्व के प्राचीनत्व को दर्शाया ऐसे मे हमारी भावी पीढी भविष्य में अवश्य कहेगी कि गया है और वर्तमान समाज के समक्ष उसकी रक्षा का हमारे बुजुगों ने हमें ऐसे ही दिगम्बर दिए और ये हो उत्तरदायित्व है। यतः वर्तमान काल में उक्तरूप मे धोरे मच्चे गुरु के रूप हैं, आदि। धीरे शिथिलता आती परिलक्षित हती है और कहीं-कही मोचिए उक्त स्थिति में क्या हम दिगम्बरत्व के उस तो उसके नियमो के पालन मे विरूपता भी दृष्टिगोचर प्राचीन का को खो न देंगे जो ऋषभ और भगवान महाहोने लगी है। यदि ऐमा ही चलता रहा तब इममे मन्दह वीर का है ? ऐसे मे क्या हम कह सकेंगे कि हमारा आगमनही कि दिगम्बरत्व की प्राचीनता पूर्णरूप में नवीनता हित प्रावीन दिगम्बरवरूप यही है? का रूप धारण कर ले और दिगम्बत्व का ऐमा वैभाविक स्मरण रहे कि आज के कुछ नवयुवक और वयस्क (दोषपूर्ण) रूप ही भविष्य में प्रानीन दिगम्बर कसला भी बडे गावधान है। वे बातो को गहराई मे मोचते है। यदि ऐसा होता है तो यह अवश्य ही उन वकानी धम उग दिन बाहर से पधारे कुछ युवको ने हमे घेर लिया पति मरान कतघ्नता होगी जो अपने सामारिक भयो और चर्चा करने लगे कि-कोई-कोई मुनिराज एकही की वादि देत प्रकारान्तर से दिगम्बरो को विरुद्ध मार्ग पर शहर मे वर्षों डेरा क्यों डाले रहते हैं, जब कि कहा जाता बलने के साधन जुटाते रहे है और अब भी दूभरा का है कि पानी बहता भला और साधु चलता भला।' कहमे का अवसर देने का सामान कर रहे है कि ये दिगबर बोले-आचार्य विद्यासागर जैसे कुछ मुनि तो ऐसे भी है तो उनके देखते-देखते इसी कार की उपज है। जो यदा-कदा ही अल्पकाल के लिए शहरो मे जाते हैंयह बात किमी से छिी नही है कि कई ब ह्य वेष साधारण स्थानो मे ही अधिक भ्रमण करते हैं । पोर भी धारी व्यक्ति आगमानुरूप आचरण का तिरस्कार कर नकी शास्त्र-विहित बहुत सी क्रियाओ का उन युवको ने मनमानी यथेच्छ प्रवृत्तियो में लग रहे हैं और यदा-कदा वणन किया। समाचार पत्रों में भी ऐम समाचार देखने में अन्न है। हमने कहा-शहरों का वातावरण अधिक दूषित यदि आचार में मनमानी स्वच्छन्द प्रवृत्तियो में विस्तार होना बनिस्वत देहातों और कस्बो के। ऐसे में जो साध होता है तो यह धर्म-रक्षा के प्रति अत्यन्त चिन्तनीय अधिक शाता और परोपकार की भावना रखते हों व होबा। जन-सुधार के लिए यदि शहरो मे डेरा हाले रहे तो जनता जब हमारे पूर्वजो ने हमे चारिच चक्र if आचार्य का लाभ ही है-सुधार ही होता है। निमार जी के दिगम्बर रूप के दर्शना का सौभाग्य व बोले-यदि ऐसा है तब तो आप ही बताइए कि प्राप्त कराया था वह सच्चा दिगम्बर रूप था। तब आज पहले जिस शहर मे प्रावक के साधारण नियम (रात्रि म अपनी भावी पीढी को आज के पतिपय ऐसे दिगम्बर भोजन त्याग जैसे नियम) पालको को बितनी सख्या घी, हैरहे, जो कुन्दकुन्द के वचनो की अवहेलना कर, सुख- उन शहरों में इनके रहने से उस सख्या मे किसमो बरि सविधायुक्त स्थानो को चुनते हैं, एकान्तवाम (विदित हुई ? ऐसे ही अन्य धार्मिक माचार पासकों की सध्या सन्यासन) नकर भीड से घिरे रहते हैं। कुछ तो धर्म- भी देखिए । हमे तो उस सख्या में शिके स्थान पर प्रचार संस्थाबादि के मामो पर चन्दा-चिट्ठा कग ह्रास ही अधिक दिखा, उल्टे श्रावको में शिथिलताको
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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