SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्थू(च्छ)णक के ऋषभ जिनालय के निर्माता ___"श्री भूषण साहु" ले० कुन्दनलाल जैन रिटायर्ड प्रिन्सिपल उत्पणक नगर संवत् ११६६ के आपास राजस्थान पत्तन के नाम से विख्यात था। आजकल इसकी सोमा का एक विख्यात व्यापारिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र था, जो मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की सीमाओं से मिली जुली तलपाटक जनपद के नाम से विख्यात था। उत्थूणक है। बागढ़ देशीय परमारो की प्रसिद्ध राजधानी केन्द्र था। पनापगढ भाज भी हम्बड़ जैनो ग प्रमुख केन्द्र है, परमार शासको को कई शाखाए भारतीय इतिहास में पूर्वका न मे यह सम्पूर्ण क्षेत्र तलपाटक पत्तन के नाम से विख्यात हैं जैसे मालवा के परमार, लाट न परमार, विम्यान जैन धर्मावलम्बियो का प्रमुख धार्मिक एव आब के परमार, बागह के परमार, चन्द्रावती के परमार, सास्कृतिक केन्द्र रहा होगा। अर्धगणा ग्राम से दो विस्तृत किराड़ के परमार, अर्बुद के परमार आदि भाद। जैन शिलालेख प्राप्त हुए है जिनमे ये पहला म० ११५९ उत्थूण शब्द काल परिवर्तन के कारण उत्थण हुआ, का ने दी बिल्कुल ही जीर्ण शीर्ण दणा मे है, इममे केवल फिर अत्थरण बना आगे अत्यण में अन्यं णक हुआ और अब उत्थण के शासक विजयराज प मार के पिता श्री अर्थणा के नाम से प्रसिद्ध है। आजकन यह राजस्थान चामुण्डमाज के बारे में थोटी-पो सामग्री प्राप्त होती है, के बासवाडा शहर से पश्चिम की ओर लगभग ४०.४५ पर दूर शिलालेख जो सवत् १९६६ का हे बिल्कुल कि मी० दूर एक छोटा-सा नाम है, पास ही हूगरपुर शहर माफ और स्पष्ट है । इस शिलालेख से यहां के राजधेष्ठी भो है । बांसवाड़ा के पूर्वोत्तर मे प्रतापगढ़ नगर भो है। श्री भूषण साहु द्वारा निर्मित ऋपम जिनालय का तया अनुमान है प्राचीन काल में यह सम्पूर्ण क्षेत्र तलपाटक श्री भूषण माहु के पारिवारिक जनों का भी विस्तृत परि चय मिलता है साथ ही माथ रान्वयी आचार्य छत्रसेन का (पृ० ५ का शेषांश) भी उल्लेख मिलता है जो शोध की दष्टि से अत्यधिक तथा भारत की जनता हमें न्याय दिलायेगी। सभी न्याय महत्वपूर्ण है क्योकि अब तक माथुरा-नय से सबंधित शील बुद्धिजीवी मूर्तिपूजक श्वेताम्बर समाज अथवा उनके किसो छत्रमेन पावार्य का कही भी उल्नख नहीं मिलता ट्रस्ट द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार मे न आकर वास्तविकता को समझेंगे और बिहार सरकार के लो तात्रिक अध्यादेश को पारित करायेंगे । हमारी श्वेताम्बर मूति यह संवत् ११६६ का शिलालेख संस्कृत भाषा में उत्कीणित हे, इसके श्लोको की संख्या कुल तीस है । इन पूजक समाज व उनके ट्रस्ट से भी यह अपेक्षा है कि वह भगवान महावीर के सिद्धांत अहिंसा, अपरिग्रह व 'जीओ श्लोको की भाषा उच्च कोटि की अलकारिक है तथा और जीने दो' के अनुरूप, सामन्तवादी दृष्टिकोण के मुपु! सस्कृतमय है। यह शिलालेख अर्थणा के जैन मदिर क वसावशेषो से प्राप्त हुआ है और अब यह अजमेर के बजाय समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाकर, जैन समाज की म्यूजियम में सुरक्षित है। इस शिलालेख को विज्ञानिक एकता मे योगदान देकर अपने शिाल हृदय का परिचय सूमाक नामक शिल्पी न उकेरा था। इस शिलालेख के पहले तथा चोथे से बीसवें छदो तक की रचना कट नामक सुभाष जैन, संयोजक विद्वान ने की थी बाकी छदो की रचना माइल्ल वशी श्रमण संस्कृति रक्षा समिति साबड़ ब्राह्मण के पुत्र श्री भादुक विप्र ने की थी। इस
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy