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________________ ४, ब ४७, कि०२ अनेकान्त इस अध्यादेश से जैनियो मे पहाड छीन लिया है और कर वन्दना के लिए नंगे पांव जाते हैं और पहाड़ पर भविष्य में बिहार सरकार पहाड़ की मालिक होगी, सभी मंदिरो के दर्शनो के पश्चात् ही वापस आकर जल. जबकि वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। सरकार ने अध्या- पान ग्रहण करते हैं। २७ किलोमीटर की यह पात्रा देश के अनुसार पहाड की व्यवस्था और मालिकाना हक दोपहर तीन-चार बजे तक समाप्त होती है। इसके समस्त जैन समाज को सोर दिया है। ममत जैन ममाज विपरीत श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जूते पहनकर खाते-पीते हुए इस अध्यादेश के प्रति बिहार मरकार का ऋणी रहेगा। जल-मन्दि तक जाकर वापस मा जाते हैं। वे कमी भी इस अध्यादेश से पर्वत के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सभी मन्दिरों, टोंकों की बम्बना नहीं करते। तीर्थयात्रियो गया है। मे केवल १० प्रतिशत मूर्तिपूजक श्वेताम्बरी तथा सामन्तवादी व्यवस्था का अन्त होगा : ९० प्रतिशत अन्य जन यात्री होते हैं। अधिक संख्या बिहार मरकार का यह लोकतान्त्रिक अध्यादेश दिगम्बरों की ही होती है। 'मतिपूजक श्वेताम्बर ट्रग्ट-समाज' को मामन्तवादी सामन्तवादियों द्वारा शोषण : व्यवस्था पर अवश्य ही कुठाराघात है। आज समूचे देश में यह अकल्पनीय है कि रात के समय अंधेरे में लालटेन लोकतांत्रिक प्रणाली है, इसलिए सामन्तवादी व्यवस्था के सहारे कंकरीले मार्ग पर यात्रियों को किन-किन असुविधाओं का सामना करना पडता है? पहाड पर उसका प्रजातांत्रिक हक देना ही होगा। मई १६६४ बिजली नहीं है। वर्षा मे कही सिर छिपाने का स्थान को शिखरजी मुक्ति अभियान में जो रंनी दिल्ली में सीनियर नही है। तिस पर असामाजिक तत्वो द्वारा लटपाट भी आयोजित हुई थी, उस मनिपूजा श्वेताम्बगे के अति- की जाती है। ऐसी कोई भी दुर्घटना हो जाए तो उसकी रिक्त देश का समस्त जैन समाज मम्मिलि हुआ । लाखों सूचना तलहटी तक पहबाने का कोई साधन नहीं है। महिलाओं, बच्चो, युवको और वृद्धो ने तेज धूप की पहाट पर पीने के जल की कोई व्यवस्था नहीं है । मलपरवाह न करते हए, गाह अशोक जैन के नेतृत्व में अहिंसा मव त्यागने का कोई प्रसाधन-कक्ष नही है । यह सब इन सिदात के अनुरूप मौन जलूस निकाल कर बिहार तथाकथित प्रबन्धकर्ता सामन्तवादियो की व्यवस्था के सरकार के अध्यादेश द्वारा उठाये गये लोकतांत्रिक कदम प्रति अमानवीय उपेक्षा नही तो और क्या है ? का समर्थन किया। इतिहास साक्षी है कि पाण्डवो को साघओं का अनपात: सूई बराबर हक न देने के कारण महाभारत हुआ था। तथ्यों से ध्यान हटाने के लिए उपरोक्त पत्र में साधुओं मतिपजक श्वेताम्बर रामाज अयवा ट्रस्ट के अधिकारी की गिनती में ६५५६ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक और ४७५ इस प्रसंग से अवश्य ही सीख लेंगे, हम ऐमी आशा दिगम्बर साधु दर्शाये हैं। पत्र में तथ्यों को जानबूझकर करते है। छिपाया गया है । दिगम्बर आम्नाय में साधुओं की कई जंन संख्या का अनुपात : श्रेणियां हैं, जैसे नग्न मुनि, ऐल्लक, छुल्लक, ब्रह्मचारी पा के प्रेषक श्री राजकुमार जा ने माधुओ को आदि । ये बेणियां उनके परिग्रह परिमाण (वस्त्र आदि संख्या यात्रियो की संख्या - मिलाकर सहु श्री अशोक की सीमा) के अनुरू। हैं । मुनि नग्न रूप हैं, ऐल्लक एक जैन द्वारा उठाये गये थगन गुढे 'श्री सम्मेद शिखर जी लगोटी रखते है और क्षुल्लक एक लंगोटी व चादर और की यात्रा करने वाले तीथ यात्रियो में ८५ प्रतिशत दिगंबर ब्रह्म वारी वृछ और अधिक सामग्री ख सकते हैं। जैन होते हैं" को गौण करने का असफल प्रयास किया है। श्वेताम्बर मा-पूजक साधु (जिनके प्रति हमारे मन में वास्तविकता यह है कि श्री सम्मेद शिखर जी जैन समाज पूर्ण आदर है) दिगम्बर आम्नाय के ब्रह्मचारी की तरह का पज्य तीर्य है और इसी श्रद्धावण जैन तीर्थयात्री रात ही बरत्र धारण करते है। इस प्रकार के त्यागियों की एक बजे स्नान आदि से निवृत्त होकर, शुद्ध वस्त्र धारण सध्या दिगम्बरों में कई हजारों में है जो श्वेताम्बर मति
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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