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अनेकान्त/२३ जैन साहित्य ओर इतिहास में पं. नाथूलाल २ ने भी उपर्युक्त प्रकार से विचार प्रकट किए हैं।
(क) आकर्षक व्यक्तित्व : पं आशाधर बहुमुखी प्रतिभा के धनी एव असाधारण कवि थे। उनका व्यक्तित्व सरल ओर सहज होने के कारण उनके मित्रो के अलावा मुनि ओर भट्टारक भी प्रशंसक थे। उन्होने उनका शिष्यत्व स्वीकार कर गौरव का अनुभव किया था। उनकी अपूर्व एव विलक्षण प्रतिभा ने विद्वानो को चकित स्तम्भित कर दिया था। राजा विन्ध्यवर्मा के सन्धि वैग्रहिक मंत्री एव महाकवि बिल्हण ने आशाधर की विद्वत्ता पर मोहित होकर कहा था .
हे आशाधर! तथा हे आर्य तुम्हारे साथ मेरा स्वाभाविक सहोदर पना है और श्रेष्ठपना है, क्यो कि तुम जिस तरह सरस्वति पुत्र हो उसी तरह मै भी हूँ। ३'
उपर्युक्त कथन से सिद्ध है कि आशाधर कोई सामान्य पुरुष नहीं थे। इनके अपरिमित ज्ञान को देखकर श्री मदनकीर्ति मुनि ने उन्हे प्रज्ञा प्रज (ज्ञान के भंडार) कहा है ४ इसी प्रकार उनके गुरूत्व से प्रभावित एव आकर्षित होकर अनेक मुनियो एवं विद्वानों ने उन्हे अनेक उपाधियो से विभूषित किया है मुनि उदयसेन ने पं. आशाधर को 'नय विश्व चक्षु' और 'कलि कालिदास' कहकर अभिनन्दन किया ५ भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति ने आशाधर को 'सूरि सम्यग्धारियों में शिरोमणि आदि कहा है। उतरवर्ती विद्वानो ने पं. आशाधर को आचार्य कल्प कहा है ६। इस प्रकार अनेक मुनिगण ने उनका यशोगुणगान किया हैं।
। यद्यपि पं आशाधर गृहस्थ विद्वान थे, लेकिन उन्हे निर्विकल्प अनुभूति हुई थी ७। पूर्व परम्परा के सम्यक् अध्येता प. आशाधर की विद्वत्ता पर जैनेतर विद्वान भी मुग्ध थे। अष्टांगहदय' जैसे महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रन्थ पर टीका लिखी। काव्यालकार और अमरकोश की टीकाएँ भी उनकी विद्वत्ता की परिचायक है।
.(ख) प. आशाधर का जीवन वृत्त : पं. आशाधर उन विद्वानो मेंसे नहीं हैं जो अपने सम्बन्ध मे चुप रहते हैं अर्थात् कुछ भी नहीं लिखते है यह परम सौभाग्य की बात है कि पं आशाधर ने जिन यज्ञ कल्प, सागार धर्मामृत और अनागार धर्मामृत नामक ग्रन्थों की प्रशस्ति मे अपनी जन्मभूमि. जन्मकाल, मातापिता, विद्या भूमि. कर्मभूमि आदि के सम्बन्ध पर्याप्त जानकारी दी। इन्ही प्रशस्तियो के आधार पर उनका जीवन वृत प्रस्तुत करना समुचित है। १. जन्मभूमि-: प. आशाधर की जन्मभूमि के सम्बध मे कोई विवाद नहीं है। प्रशणस्ति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि शाकभरी (साभरझील) के भूषणरूप सपादलक्षदेश के अन्तर्गत मण्डलकर दुर्ग (मेवाड) नामक देश अर्थात् स्थान को प आशाधर ने पवित्र किया था, दूसरे शब्दो में कहा जा सकता है कि वर्तमान मे राजस्थान का माण्डलगढ जिला भीलवाडा (दुर्ग) मे प आशाधर का जन्म हुआ था।