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________________ अनेकान्त/२२ कलि कालिदास : पं. आशाधर आचार्या जैनमती जैन एम ए (प्राकृत जेनोलॉजी) भारतीय साहित्य के क्षेत्र मे 'कालिदास महान प्रसिद्ध कवि हो गए हैं। 'पं. आशाधर' को भी उनके प्रशंसको ने उन्हे 'कलि कालिदास' कहा है। कलि कालिदास कहने का औचित्य क्या है? कवि कुलगुरू कालिदास ने साहित्य-साधना और प्रतिभा के बल पर अनेक महाकाव्यों, नाटको ओर खण्ड काव्यों की प्रौढ सस्कृत भाषा मे सृजना कर भारतीय वाड्.मय के विकास मे महान योगदान दिया है। क्या ई० सन् १४वीं शताब्दी के आचार्य प० आशाधर ने कवि कालिदास के समान साहित्य-सृजना की कलि कालिदास कहने का तात्पर्य यही है कि पं. आशाधर ई० पूर्व प्रथम शताब्दी में होने वाले कालिदास के समान अपूर्व प्रतिभावान और काव्य की सभी विधाओं पर लेखनी चलाने के धनी थे तथा उनका आदर्श जीवन अनुकरणीय था । ऊहापोह पूर्वक सिद्ध किया जाएगा कि पं. आशाधर कलि कालिदास थे या नहीं? क्यों कि आज कल भक्त लोग निर्गुण लोंगो को भी कलिकालसर्वज्ञ आचार्य कल्प आदि उपाधियो से विभूषित करने लगे है। सागार धर्मागृत के लेखक पं. आशाधर महान अध्ययनशील थे। उनके विशद एवं गम्भीर अध्ययन का ही यह प्रसाद है कि विभिन्न विषयों-जैन-आचार, अध्यात्म, दर्शन, साहित्य, काव्य, कोष, आयुर्वेद आदि सभी विषयों के वे प्रकाण्ड पडित के रूप मे विश्रुत हो सके। उनके समान कोई गृहस्थ ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित विद्वान नहीं हुआ हैं। प कैलासचन्द शास्त्री के रशब्दो में: "आशाधर अपने समय के बहुश्रुत विद्वान थे। न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, कोश, वेद्यक, धर्मशास्त्र अध्यात्म, पुराण आदि विषयों पर उन्होने रचना की है। सभी विषयों पर उनकी अस्खलित गति थी ओर तत्सम्बन्धी तत्कालीन साहित्य से वे सुपरिचित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका समस्त जीवन विद्या व्यासंग मे ही बीता था और वे बड़े ही विद्यारसिक ओर ज्ञानधन थे। आचार्य जिनसेन ने अपनी जयधवला टीका की प्रशस्ति में अपने गुरू वीरसेन के सम्बन्ध में लिखा है कि उन्होने चिरन्तन पुस्तकों का गुरूत्व करते हुए पूर्व के सब पुस्तक शिष्यो को छोड दिया था अर्थाचिरन्तन शास्त्रो के वे पारगामी थे। प आशाधर भी पुस्तक शिष्य कहलाने के सुयोग्य पात्र थे। उन्होने अपने समय में उपलब्ध समस्त जैन पुस्तको के आत्मसात कर लिया था १"
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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