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________________ १६, वर्ष ४६, कि.३ अनेकान्त केवल स्थानीय (गहपति, गोलापूर्व, अयोध्यापुरी) श्रावकों हासिक दृष्टि से कही-कही गलत है । पृथ्वीराज के आक्रद्वारा प्रतिष्ठायें की गई थी, बल्कि चदेरी मडल (परवार), से जेजाभुक्ति को सपन्नता हमेशा के लिए समाप्त हो गई, चंबल के आस-पास के ब्रज प्रदेश (लमेच, जैसवाल, यद्यपि चदेलो का राज्य करीब डेढ़ सौ वर्षों तक चलता गोलालारे), व वर्तमान राजस्थान के अलग अलग भागो रहा । पृथ्वीराज के लौटते ही जंजाभुक्ति पुनः परमाल से आये (गगे रवाल, मेडतवाल, खडेलवाल) श्रावको ने भी के हाथ आ गया । परमाल रासो के अनुसार अपनी पराप्रतिष्ठायें कराई थी। उस काल मे आवागमन सुरक्षित जय के दुःख से परमाल ने काजजर में आत्महत्या कर ली। नही था, दूर-दूर तक घने वनों से रास्ता जाना था। पृथ्वीराज रास के अनुसार परमाल राज्य त्याग कर बदेलखड व चदेरी मडल मे आज से केवल दो तीन सो गया बिहार) चला गया। परन्तु स. १२४० से सं० वर्ष पहले तक जगली हाथी होते थे। चदेलकाल मे मदन १२५८ के शिलालेखो से स्पष्ट है कि परमाल का राज्य सागरपुर एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान था, यह तो स्पष्ट पृथ्वीराज से हारने के बाद भी बहुत वर्ष तक चला । ई० है। यह महत्व वाणिज्य के कारण था या धाभिक केन्द्र १२०२ (स० १२५६) मे कुतुबुद्दीन ने कालजर घेर लिया। .. होने के कारण या, यह स्पष्ट नहीं है। चदेलो का महत्व घेरे के दौरान ही प-माल की मृत्यु हो गई। बढ़ने के पूर्व पपावती व्यापार का अच्छा केन्द्र था। प माल का पुन त्रैलोक्यवर्मन न केवल मुसलमानी पद्मावती पुरवार तो यहां से निकले ही है, परवार, से अपना राज्य छुडाने में मल रहा बल्कि उसने चदेलो गोलापूर्व व पल्लीवाल जातियो मे पद्मावती नाम के के पुराने शत्रु कलचुरियो से डाहल महल छीन लिया। विभाग रहे है। किंवदलियो के अनुसार पद्मावती मे कभी लोक्यवर्मन के बाद उसके पुत्र औरवर्मन का राज्य ५४ जन न्यानो का सम्मेलन हुआ था। सम्भव है यहाँ हुआ। वीरवर्मन के बाद पहले उसके पहले पूत्र भोजवर्मन की ही मडी टूटकर मदनमागरपुर आ गई हो। का राज्य हआ । इस समय तक चदेलो का राज्य बढ़त यहाँ पर कुटक अन्वय को चर्चा बाकी है। इस अन्वय कुछ पूर्ववत् बना रहा। पर उत्तरी भारत का बहुत लेखो से यह स्पष्ट है कि यह अन्यय श्रावको का नही, सा भाग विदेशियो के हाथ आ जाने से वाणिज्य व धार्मिक साधुग्रो का था। अन्यत्र इस अन्वय के उल्लेख देखने में व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई थी। जनसंख्या घटन से बहुत नही पाए हैं। इस विषय पर एक अन्य लेख में विचार से गाँव जड रहे थे। जेजाभुक्ति में कुछ जैन प्रतिष्ठाये किया गया है। फिर भी कही कहीं होती रही। भोजवमन के बाद उसके मदनवर्मन के राज्यकाल में किसी कारण से यह भाई हम्मीरवर्मन का राज्य हुआ। इसके काल में स० स्थान प्रसिद्ध हो गया है। स० ११६६ से म० १२८ १३६६ (ई० १३०६) में अलाउद्दीन खिलजी ने डाहल तक १० वर्षों में यहाँ कम से कम १७ बार प्रतिष्ठाये महल व सम्भवत कुछ अन्य प्रदेश हपिया लिये। वीरहुई। यह क्रम परमद्धि (परमाल के राज्यकाल में भी वर्मन (दूसरा) नाम के एक गाजा का एक लेख ई० १३१५ कुछ समय तक चलता रहा। स० १२३७ में कई प्रति (स० १ ३६२) का प्राप्त हुआ है। इसके बाद चदेल माय एक साथ पुनः प्रतिष्ठित हुई। इसमे शातिनाथ की राजवश का सूय अस्त हो गया। १८ फुट ऊँदी प्रसिद्ध प्रतिमा भी यो। जो अपने ही मन्दिर मे मूलनायक के रूप में स्थापित की गई। इसके इस क्षेत्र में करीव ३ सो वर्ष आस्थरता बनी रही। दोही वर्ष बाद स०१२३६ म चाहमान पृथ्वीराज ने परदेशी श्रावका का आना तो स०१२३९ मे हो रुक गया आत्रमण करके जंजाक मुक्ति को लूट लिया इस प्रसिद्ध था। तेरहवी-चौदहवी सदी तक गहपति (गहोई। जाति यड का विस्तुन वर्णन चदबरदाई रचित पृथ्वीराज रासो से भी जैनधर्म छूट गया। इसी काल मे मदन सागरपुर महोबाखा (परमाल रासा) एव जगनिकरराव के रचे उजड़ गया होगा। जेजाभुक्ति में कही-कही गोलापूरों आल्हा रासो मे हा है। इनमे दिया हुआ वर्णन ऐति द्वारा कुछ प्रतिष्ठाये होती रही।
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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