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जिनके अवतरण से विदिशा पावन हो गया :
"तीथंङ्कर शीतलनाथ"
श्री गुलाबचन्द्र जैन
पुष्कर वर द्वीप के विदेह क्षेत्र मे सीता नदी के दक्षिण मुनि से दीक्षा ले तप मे लीन हो गए । निरन्तर तप करते तट पर वत्स नामक एक देश था। (इक्ष्वाकु) कुलभूषण हुए उन्होने ग्यारह अगों का मनन एव पोडमकारणादि महाराज पपगुल्म थे उम प्रदेश के शासक और सुमीमा भावनाओ का चितन किया और फलस्वरूप शीर्थङ्कर नामक नगरी थी उसकी राजधा-।। वसत ऋतु में महा- प्रकृति का बध किया। आयु वा अन जान समाधिमर ग राज पपगुल्म अपनी रानियो के साथ वनक्रीड़ा हेतु गया पूर्वक देह त्याग वे आरण नामक पन्द्रहवे स्वर्ग मे इन्द्र हुआ था । वृक्षो के झडते हुए पत्तो को देख उमे ससार को हए। क्षणभगुरता का ज्ञान हुआ साथ मे वैराग्य भी जाग्रत इसी इन्द्र का जीव भरत क्षेत्र के मलय नामक नामक हा। वैगग्य मे वृद्धि होने पर पद्मगृल्म अपने चन्दन देश के भद्रिलपुर नामक नगर में इक्ष्वाकु कुलभूषण महानामक पुत्र को राज्य भार सौप वन मे जा आनन्द नामक राज दृढ़ रथ को गनी सुनंदा के गर्भ में, पूर्वाप ढ नक्षत्र
चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन अवतरित हुआ। गर्भ मे आने (पृ० ७ का शषाश) रहित नग्नत्व के अकार्यक रक होने से निरतर आत्मा की के पूर्व महारानी सुनदा ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में भावना भाने का उपदेश दिया । (भा० पा० ५५) ।
सोलह उत्तम स्वप्न देखे और अंत में एक विशाल गज उपसंहार:
को अपने मुंह में प्रवेश करते देखा, इन स्वप्नो का फल आचार्य कुन्दकुन्द के जिनदीक्षा से सम्बन्धित उक्त
था एक महान आत्मा का आगम सम की गरिमा का विवेचन से यह स्पष्ट है कि जिन मार्ग में जिनदीक्षा एक अनुभव कर देवताओ ने भी दो की वर्षा कर गर्भविशिष्ट प्रतिज्ञा एव पद है जिमका उद्देश्य कर्म क्षय व कल्याणक उसव मनाया। आत्मा मे वीतरागता प्रकट करना है। वह मात्र नग्नत्व
गर्भकाल समाप्त होने पर माघ कृष्ण द्वादशी के दिन ही नही आस्मा की निर्मलता एव अन्तरंग शुद्धि का बाह्य
विश्वयोग मे बालकका जन्म हुआ। सम्पूर्ण नगर हर्षोल्लास प्रतीक भी है । जिनदीक्षा की प्रक्रिया आगम ज्ञान, तत्व
मे डूब गया । सौधर्म इन्द्र ने भी अति आनद पूर्वक बालक, विचार, आत्मस्वरूप-चितन, आत्मानुभति एव देशवत को सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीर सागर में जल र आदि के विभिन्न स्तरों को पार करती हुई निग्रंध साधु उन का अभिषेक किया। वही राजेन्द्र ने भी भक्ति विहल तक जाती है जहा साधक पल-प्रतिपल अपने ज्ञान दर्शन हो ताण्डव नृत्य किया। बाल जिनका नाम शीतलनाथ स्वरूप मे सम्पर्क करता परम आनन्द की सनभति रखा गया। करता है।
श्री शीतलनाथ के यौवनावस्था में पदार्पण करते ही जो आत्म साधक सही अर्थों मे जिनदीक्षा धारण
महाराज दढ़ रथ ने उनका राज्याभिषेक कर स्वय दीक्षा करना चाहते है या अपन का जिनदी।क्षत मानते है उन्हे ले मनिपद धारण कर लिया। महाराज मोलमा उक्त आदशो, मानदण्डो एवं क्रिया-प्रक्रिया का अन्तरग दिन वन विहार हेतु वन में गये हए थे। सर्वत्र घना भाद सहित आलम्बत करना चाहिए यही जिनाजा है। कोहरा छाया हआ था, कुछ भी दिखाई नहीं देता था।
कामिक प्रवन्धक तभी सूर्योदय होते ही सारा कोहरा नष्ट हो गया। यह ओरियन्ट पेपर मिल्स, प्रमलाई देख उनके मन में विचार आया कि कोहरे के समान यह