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४, वर्ष ४६, कि०२
अनेकान्त अहिच्छत्र से प्राप्त मिट्टी की वस्तुएं
मूर्तिकला अहिच्छत्रा प्राचीन काल से उत्तर भारत में मिट्टी की अहिच्छत्रा के शिव मन्दिर में लगी हुई गंगा और बस्तुओ के निर्माण का प्रमुख केन्द्र रहा। विभिन्न प्रकार यमना की गभग कार्यपरिमाण मण्मतियां मिली है। की स्ट्रो की छोटी-छोटी मूर्तिया यहा प्राप्त हुई है, जो कि अहिछत्रा में मौयं शुग युग की पुरानी मातृमतियां मिली लगभग ३०० ई०पू० से ११०.ई. तक की। इन । अहिछत्रा से प्राप्त टिकरो पर मिथुनमुक्ति प्रायः लगभग ३००-२०० ई०पू० की मातृदेचियो की मूर्तिया अक्षित है। ये टिकरे नाचे से बने इए हैं और उस युग के भी सम्मिलित है। छ मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए है। है जब डोलियाने और छ अग साचे से निकालने का इनका वाल '५०० ई० पू० से ६००ई० पूर्व निर्धारित सक्रान्तिकाल बीत चुका था स्त्री मूर्तियो मे केश और किया गया है। ३ • से २०० ई०पू० के स्तर में गीली हागे मे मालिक चिन्ह है। पुरुषमति सप्ततत्री बीणा मिट्री से निमित कुछ ईटें प्राप्त हुई है। ओवा में पकाइ लिए हरा है। आरम टिकरी पर मिथुन या स्त्री-पुरुष हई ईटो के ढांचे पश्चात् कालीन स्तर में प्राप्त हुए है, क अकन था और कुछ का बाद बड़ी दम्पत्ति या पतिजिनका समय प्रथम शताब्दी ई० पू० निर्धारित विधा पत्नी के रूप में परिवर्तित हो गया। दोनों का भेद यह गया है। उस समय नगर का ढेनीन मील के धेरे का हैकिला बनाया गया था। लगभग ३५० ई० से ७५० ई० १. मिथुन प्रकार क. टिकरो म स्त्री-पुरुष के बायी की परत मे ७६. मन्दिर प्राप्त हुआ है, जिम में बड़ी-बड़। ओर है और दम्पत्ति टिकरो मे वह बायी बोर है। ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी मूति ।। मिली है। जो कि मिट्टी को २. मिथुन टिकगे के किनारे टेढ़े-मेढ़े हैं। किन्तु पकाकर बनाई गई थी। धार्मिक मण्मय मूर्तियोम ब्राह्मण, दमनिटकरे एकदम सीधे, सच्चे और फलोको गोट तथा बौद्ध तथा जैन धर्म से सम्बन्धित देवी देवताको की छाटी- पृष्टभूमि से युक्त है। छोटी मूर्तिया प्राप्त हुई है। ये गुप्तकाल स लेकर मध्य- ३. मिथुन मतिय दम्पति की अपेक्षा अधिक गहनों काल तक की है। कुछ मणमूनिया जो कि गुप्तकाल से पर- से लदी है। वर्ती तथा मरगम पूर्ववर्ती है, के शिरोवष्टन सहित ४ दम्पनि टेकरों पर शुंगकालीन भरहत को पाषाण सिर एक विशे दिया शैली के है। कुछ स्त्रिया दाये मूतियो के सदृश ही वस्त्र, आभूषण, केश-विन्यास, भारी हाय में बचे लिए हुए है अथवा गेद या खनखनाहट का उष्णीप और गोलमुख उकेरी है। शब्द करने वाला खिलौना लिए हुए है। कुछ मूर्तियो को ५. मिथुन मृतियो मे धार्मिक भाव है और कही भी आकृति बिल्ली के समान है तथा कुछ घुडसवार और काम की अभिव्यक्ति नहीं है, किन्तु दम्पति मतियों में हस्ति बारोहको की है। तीन सिर वाली स्त्री मतिया भी प्रेमासक्ति का भाव है। मिली है, जो सम्भवत. बच्चो के जन्म की अधिष्ठात्री आहच्छत्रा के उत्खनन मे प्राप्त मूर्तियों के आपेक्षिक देविया पी। मल्लो की मति भी साप्त हुई है। सती स्तर सूचित करते है कि मिथुन मूर्तियाँ अधिक गहराई में पाषाण के पास सती सत्ता (सती तथा उसका मत पति) और दम्पति मूर्तियां उसके बाद के स्तर (१०. ई.पू. की मतियां अर्पित की जाती थी। ये मण्मय लघु मनिया मे १०० ई०) मे प्राप्त हुई है। सामान्य जन की कलात्मक अभिव्यनि. का प्रतिनिधित्व अहिच्छत्रा मे मातृदेवी की दो तीन मतियां सबसे करती हैं। इनसे उस समय की अभिरुचि, फैशन, धार्मिक नीचे के स्तरी से प्राप्त हुई हैं (लगभग २०० ई० पू०) विश्वास, सामाजिक तथा धामिक दशा व कार्यों का पता उनमें से सबसे प्राचीन स्तर स०७ (३००-२००१००) चलता है । अहिच्छत्रा के शिव मन्दिर में लगे हुए गिट्टी मिली है"। १.० ई०पू० से १..ई. तक की मतियों के फलक बहुत ही सुन्दर मकला के परिचायक है। में नृत्य करती हुई स्त्रियां, मां तथा बचा दायें हाथ में