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________________ (गताक से गे) प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी-अहिच्छत्र : डॉरमेश चन्द्र जैन दूसरी शताब्दी ई० के प्रारम्भ में जबकि कनिष्क के प्रमुख नगरों में इसको गणना होने लगी। यह पापारिक तत्त्वावधान मे कुषाणो की शक्ति का विस्तार हुप्रा तब मार्ग से बनारस, पाटलीपुत्र, कौशाम्बी, मथुरा तथा तक्ष. पंचाल के गजा इसके अधीन हुए तथा सम्भवत: अधीनस्थ शिला से जुडी थी । पाणिनि वी अष्टाध्यायी की काणिका राजा के रूप मे शासन करने की उन्हे अनुमति दी गई। वृत्ति मे अहिच्छत्रा को प्राच्य दश के अन्तर्गत परिगणित किन्तु जब दूसरी शताब्दी के मध्य कुषाण कमजोर पड़े किया है । मनु ने पंचाल देश के लोगो को प्रमुख स्थानो तब अहिच्छता के प्रमुख के साथ उनके अन्य अधीनस्थ पर युद्ध हेतु यह चयन करने के लिए कहा है। सुन्दर गजाओ ने एक साथ देश के अनेक भागो मे विद्रोह खडा मृण्मूर्तियां तथा पाषाण मूतियाँ अहिच्छत्रा में बनाई जाती कर दिया तथा एक साथ कुषाण साम्राज्य के महल को थी। माला के दाने बनान का उद्योग यहाँ समृद्ध अवस्था ढहा दिया, अहिच्छत्रा तथा उसके साम-पाम कुषाणो के मे था । मालाओ को कवल ऊँची श्रेणी के लोग ही नही कम ही सिक्के, जिनमे एक दो वसुदेव के सिक्के है, प्राप्त पहिनते थे, अपितु मध्यम और निम्न श्रेणी के लोग भी हुए हैं। अहिच्छत्रा द्वितीय शताब्दी में प्रसिद्ध तथा पहिनने थे। पंचानिकाओ के अन्तर्गत हाथी दांत की महत्वपूर्ण नगर था, यह बात भूगोलवेत्ता टालमी (लगभग गडियो का अमरकोशमें निर्देश यह बतलाता है कि इस १५० ई.) के आदिसद्रा नाम से किये गये उल्लेख से प्रकार की गडियां इस क्षेत्र में बनाई जाती थी। अहिच्छत्रा प्रमाणित होती है । कुषाणो के पतन तथा गुप्तो के अभ्यु. मे सम्बन्धित कुछ शक-कुषाण काल की खिलोने की दय के मध्य का काल उत्तरी भारत से अनेक गणतत्रों मतियां विभिन्न प्रकार के फैशन और जातियो का प्रतितथा राजतत्रो (जिनमे अहिच्छत्रा राजतंत्र भी सम्मिलित निधित्व करती है । इससे उम युग के जातोय अन्त. प्रवेश है' के सकट का काल है। का पता चलता है। रेतीले पत्थर से निमिन दो मूर्तियाँ तृतीय शतान्दी के पूर्वार्द्ध मे किसी समय मित्रवश का अहिच्छत्रा से प्राप्त हुई है। ऐमा प्रतीत होता है कि वे अन्त मालम पडता है अथवा ये किसी दूसरे वश से आक्रान्त मथुरा से मंगाई गई थी। इनमें से एक पर द्वितीय हो गए ज्ञात होते हैं । राजा शिवनन्दी तथा भद्रघोष इसी शताब्दी ई० का ब्राह्मी लिपि मे लेख है। काल से सम्बन्धित हैं। इनमे से पहले के नाम के मिक्के अहिच्छत्रा से प्राप्त हुए हैं। इनमे तृतीय शताब्दी के लक्षण गुप्तकाल के बाद अहिच्छता विद्यमान हैं। ये दोनो नागवश के या उनके उत्तराधि- गुप्तो के बाद छठी शताब्दी के उनरार्द्ध मे पचाल कारी हो सकते है। राजा अच्यु अथवा अच्युत (जिसका क्षेत्र मौखी राजाओ के अधिकार मे आया, जिन्होंने अपने उल्लेख अनेक सिक्को मे है) वा इन्ही से सम्बन्धित रहा राज्य का विस्तार अहिच्छत्रा तक किया। इनके यहां कुछ होगा। वह अन्तिम पचाल राजा था तथा चौथी शताब्दी मिकके प्राप्त हुए हैं । सम्राट हर्ष के (६०६-६४७ ई ) के ई. के मध्य वृद्धिगत हुप्रा । वंश के शिलालेख से यह प्रमाणित होता है कि यह क्षेत्र २०० ई०५० से ६५० ई. तक अहिच्छता अहिच्छत्रा भक्ति के शासन का एक भाग था"। इस भक्ति छ सो वर्ष के पचालो के इम काल मे राजधानी में अनेक विषय (जिले) थे। प्रत्येक विषय मे अनेक अहिच्छत्रा ने उस खनीय प्रगति की तथा उत्तर भारत के पथक (परगने) थे। प्रत्येक पथक मे अनेक ग्राम थे।
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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