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________________ एक उपयोगी उपलब्धि : पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी की प्रेरणा से सम्पन्न कुन्दकुन्द शब्दकोश पाठक पृ. आचार्य श्री से सुपर्गिचत हैं । वे 'ज्ञानध्यानतपोरक्त स्तपस्वी म प्रशस्यते' के अनुरूप और आगम क प्रशस्त ज्ञाता हैं । उनकी प्रगणा में मपादित उक्त काश यथानाम तथा गुण है । डॉ प्रेम सुमन जैसे मनीषी के सक्रिय सहयाग ने इसे चार चाँद लगा दिए हैं । डॉ उदयचन्द जी उदयपुर के श्रम का ना कहना ही क्या? कोश के सकलन में उन्हें कहाँ कितने ग्रन्थो का आनोडन करना पड़ा होगा इसको साक्षी काश हो दे रहा है । काश म कुन्दकन्दाचार्य द्वारा गृहीत प्राकृत के विविध शब्दरूप जैम : मयकंवली । मुदकवली । इक्क । एक्क । घिनव्वा । घेनव्वो । कह । किह । पुग्गल । हाइ । हादि । होऊण । होदण आदि स्पष्ट संकेत दे रह हैं कि आ कन्दकन्द व्यापक प्राकृत भाषा क अपूर्व ज्ञाना थ और उन्होन सर्व बन्धनो सहित प्राकृत भाषा का खलकर उपयाग किया है। एम समय म जब कि भापा विवाद उठ खड़ा हुआ है, उक्त कोश उम विवाद के निर्णय में उपयागी आर सक्षम है। और क्यों न हा. जब दा प्राकृत मनीषियों ने इसमें पूग श्रम किया है । हम म्मरण हे कि जब हमने पत्र और अनकांत भेजकर डॉ प्रेम मुमन म भाषा और मपादन क विषय म मम्मति चाही तब उन्हान खुलकर स्पष्ट रूप मजा मम्मति भजी वह उन काश क सर्वथा अनुरूप थी (वह सम्मति इसी पत्रिका में अन्यत्र ऑकत है) । हम समझत हैं कि उक काश में आचार्य श्री का आशीर्वाद प्रथम है, उन्हें मादर नमा ऽस्तु । सकलनकर्ता और डॉ. प्रेम ममन के श्रम का दरकर उनमें हमारी श्रद्धा जगी है कि आगम भाषा के सरक्षण में सक्षम हैं - उनक अभ्युदय की कामना है । प्रकाशक . श्री दि जेन माहित्य सस्कृति संरक्षण ममिति, डी 302, विवेक विहार, दिल्ली - " । मूल्य पाँच रूपया. पाकिट माइज, 4 353 । संपादक
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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