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शास्त्री जी का कहना है कि जिस ग्रन्थ में जो शब्द जिस रूप में आया हैं वहां उसका वही रूप रहना चाहिए । उनका विरोध तो यही है कि व्याकरण की दृष्टि से किसी आगम के मूल शब्द को सुधार के नाम पर बदलना आगम को विरूप करना है । कृपया मूडबिद्री ग्रन्थ ही प्रति शीघ्र भिजवाने की कृपा करें ।
भवदीय. महासचिव
13 मार्च, 1993 मंत्री कुन्दकुन्द भारती 18-बी. स्पेश्यल इस्टीटयूशनल एरिया नयी दिल्ली-110017 आदरणीय बंधु.
सादर जय जिनेन्द्र
कुन्दकुन्द भारती एवं पंडित बलभद्र जी से प्राप्त दिनांक 15-2-93, 18-2 -- 93, 20-2 - 03, 21 2 ) 3. 2-3-93, (-3-93, 10-3-93, 11 -- 3-03 एवं बिना दिनांक के पत्रों पर वीर सेवा मंदिर की कार्यकारिणी ने दिनांक 11 -3 -) को श्री शीलचन्द जी जैन जौहरी की अध्यक्षता में विस्तृत रूप से विचार किया । यह निष्कर्ष निकला कि वर्तमान में भगवान कुन्दकुन्द की, उनके निजी हस्तलिखित समयसार ग्रन्थ की कोई प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं है । विभिन्न प्रकाशकों की अथवा प्राचीन ताडपत्र पर लिखित प्रतियाँ प्राप्त हैं । उनका अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि कोई भी प्रति अक्षरश: एक दूसरे से मेल नहीं खाती । किसी भी प्रति में ऐसा लेख नहीं मिलता कि उसका संशोधन किया गया है ।
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