________________
विसंगतियाँ दूर कैसे हों ?
हमारे एक प्रसिद्ध आचार्यश्री सभा को संबोधित कर रहे थे। उनकी प्रस्तुति मन को छने वाली थी। उन्होंने कहा-'आज चारों ओर हिंसा का बोलबाला है। जैन समाज शाकाहार के सार्वजनिक प्रचार में तो लगी है किन्तु आज जैनों को ही संबोधित करना पड़ रहा है कि वे स्वयं अण्डा, मांस, मदिरा और धूम्रपान आदि का सेवन न करें। जैनो को तो आठ मूलगुणधारी होना चाहिए। हमारे शास्त्रों में मद्य, मांस, मध और पांच उदुम्बर फलों के त्याग का तथा झंठ, चोरी, कुशोल और परिग्रह को कम करने का उपदेश है।'
यह एक गम्भीर विषय है कि समाज में कहीं न कही, किसी न किसी रूप में ऐसी बराइयाँ हैं। हमारे समाज के कई बड़े नेताओं, प्रचारको ओर धर्मक्षेत्र के कई सामाजिक व्यक्तियों को रात्रि भोजन करते तक देखा जाता है और धूम्रपान तो साधारण-सी बात है। कहीं-कहीं अण्डे को शाकाहार की संज्ञा देकर उसके सेवन की परिपाटी भी बढ़ाई जा रही है। कुछ लोगों में धन को प्रचरता उन्हें पांच सितारा होटलों तक खींच रही है । विवाह आदि होटलों में होने लगे हैं। वहाँ शाकाहार का प्रबन्ध बताया जाता है, पर स्पष्ट देखा जा सकता है कि इन होटलों में भोजन बनाने, परोसने आदि के वर्तनों में भेद नहीं होता। इस प्रकार आचारहीनता की वद्धि धर्मलोप का स्पष्ट सकेत दे रही है। यदि ऐसी बराइयों को न रोका गया तो वह दिन भी हमें देखना पड़ सकता है कि यह पूछने पर मजबूर होना पड़े कि-क्या आप शाकाहारी जैन हैं ? ।
यदि आपारवान त्यागी, विद्वान, नेता इस ओर लक्ष्य दें और पत्रिकाएं ध्यान देकर निष्पक्ष ईमानदारी से प्रचार करें तो जैन का रक्षण संभव है। क्या कहें पत्रिकाओं के बारे मे? प्रायः कई पत्र-पत्रिकाएँ पक्षों को खोंचातानी में फंसो है। ऐसा भी व्यक्तिगत पत्रिकाएं हैं जा निजो स्वाथ और टेक मंग्क्षण में सार्वजनिक संस्थाओं पर भी व्यर्थ के मिथ्या कुठाराघात करती हैं।
पिछले दिनों 'तीर्थकर' पत्रिका ने ही संस्था वीर सेवा मन्दिर को बदनाम करने के लिए कई लेख प्रकाशित किए और जब उन्हें वीर सेग मन्दिर से रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा सप्रमाण स्पष्टीकरण छपाने के लिए भेजा गया तो वे आज तक मंह छपाए हए हैं- हमारा स्पष्टीकरण नही छाप सके। हाला कि संपादक महोदय शाकाहार के प्रचार में लग्न हैं, पर हमें तो विशेष खेद हुआ 'तीथंकर' अगस्त ६२ के अंक में छपे अनुत्तर-योगी संबंधो सामग्रो के बेतुके कोकशास्त्र जैसे अश्लोल अशों को पढ़कर। कई लोगों ने हमें कहा भी और कइयों ने तो अंक के पृष्ठ २४-२५ हो फाड़ फेंके। (पाठक उन्हें पढ़कर देखें)।
हमारा उद्देश्य किसो को बदनाम करना नहीं और ना हो 'तीर्थकर' की तरह कोई प्रतिशोध । ये तो एक हकीकत है जिसके प्रति खेद होना चाहिए। नेताओं, त्यागियों, प्रचारकों व धर्म प्रेमियों और पत्रकारों आदि को संयम व सचाई वृद्धि को दिशा में निःस्वार्थ भाव से सावधान हो, प्रवर्तन करना चाहिए। तभो विसंगतियाँ दूर हो सकती हैं।
महासचिव : वोर सेवा मन्दिर