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________________ प्राकृत और मलयालम भाषा 0 ले. श्री राजमल जैन, जनकपुरी दिल्ली प्राचीन काल में केरल तमिलगम (Tamilkam- कारण अर्धमागधी, जैन शौरसेनी, जैन महाराष्ट्री, पंशाची तमिलनाडु) का ही एक भाग था। इस सारे प्रदेश की आदि का प्रभाव सम्भव है। माहित्यिक भाषा भी 'चेन्ल गिल' थी।चेर प्रदेश (केरल) मे (iii) तीसरे चरण में, उत्तर-पश्चिम भारत के लोग प्रचलित तमिल को वोली को मलनाट्टतमिल कहा जाता केरल में आए (सम्भवतः डा० जोसफ का संकेत गुजरातथा। जो भी हो, प्राचीन तमिल को भी प्राकृत ने किसी राजस्थान से है)। उनके कारण "अपभ्रंश' का भी सीमा तक प्रभावित किया है। परिणामत: केरल की प्रभाव पड़ा। तत्कालीन भाषा को भी प्राकृत ने प्रभावित किया है। केरल के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री श्रीधर मेनन मलयालम भाषा मे प्राकृत तत्त्व के सम्बन्ध में केरल अपनी पुस्तक "सोशल एंड कल्चरल हिस्ट्री आफ केरल" में एकाधिक शोध-कार्य भाषाविदो द्वारा किए गए है। मे यह मत व्यक्त करते हैं कि -"It may be noted उनमें से एक हैं-डा० पी. एम. जोसफ। उन्होंने हवी in this connection that during the Teriod of सदी से १५वी सदी तक के शिलालेखों और साहित्यिक the Aryanisation of Kerala, Sanskrit and its कृतियों का अध्ययन कर मलयालम में गृहीत प्राकृत शब्द "Proto forms' like "Prakrit" exercised a (Prakrit Loan words in Malaya'am) 1* profound influence on the life and language महत्वपूर्ण शोध-प्रबंध प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत लेखक के of the people of Kerala." (P. 333) मित्र के नाते उन्होंने केरल विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत दक्षिण भारत मे जैनधर्म के प्रभाव-प्रसार के सम्बन्ध किन्तु अप्रकाशित यह प्रबध उपलब्ध करा दिया। में प्रायः सभी इतिहासकार इस बात को स्वीकार करते उसकी सामग्री का इस अध्याय मे काफी प्रयोग किया है कि भद्रबाहु चन्द्रगुप्त मौर्य के श्रवणबेलगोल आगमन के गया है। समय से अर्थात् ईसा से ३५० बर्ष पूर्व के लगभग कर्नाटकडा० जोसफ ने प्राकृत भाषा के प्रभाब को तीन काल- तमिलहम में जैनधर्म का प्रवेश हुआ। प्रस्तुत लेखक ने चरणो में बांटा है :-- 'केरल मे जैनधर्म का इतिहास" अध्याय में यह सिद्ध (i) ईसापूर्व ६०० से ६०० ई० तक। इस काल में करने का प्रयास किया है कि सुदूर अतीत से ही केरल में जो भी ब्राह्मण दक्षिण में (केरल) में आए, वे प्राकृत के जैनधर्म विद्यमान था और चन्द्रगुप्त मौर्य केरल होते हुए किसी न किसी रूप का प्रयोग करते होगे। इसके अति- ही श्रवणबेलगोल पहुंचे होगे (उपर्युक्त अध्याय देखिए।) रिक्त मगध के भी कुछ व्यापारी आए होंगे जो स्वभावत: किन्तु इतना तो स्पष्ट है ही कि चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ मागधी का प्रयोग करते होंगे। बारह हजार मुनि आए थे। उनके साथ हजारो श्रावक यह स्मरणीय है कि केरल में नंतिरि ब्राह्मणों का एवं अकाल-भय से सत्रस्त हनारों नागरिक भी अपने आगमन "अहिच्छत्र" से बताया जाता है। सम्राट के साथ आए होंगे। ये मगधवासी थे और प्राकृत (ii) दूसरे चरण में, जैन, बौद्ध और मागधी भाषा भाषी थे। धर्म-प्रचार के लिए वे पहले से ही तमिल व्यापारियों का आगमन केरल मे हुआ होगा, (जैन ईसा आदि दक्षिणी भाषाएं सीख कर ही आए होगे। उन्हें से भी पहले केरल में विद्यमान है थे-लेखक) और उनके अवश्य ही प्राकृत जैसी संपर्क-भाषा इन प्रदेशों में भी
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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