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________________ संस्कृत जैन चम्पू और चम्पूकार क्या था? यह उल्लिखित नहीं पर, गुरु के प्रमाद से पुगे में ही विमला और सुरमजरी से (अष्टम-नवम लम्भ) उनकी वाणी निर्मल हो गई थी। तथा काष्ठांगार को स्वयंवर मे हराकर लक्ष्मणा से विवाह कायस्थो मे वैष्णव धर्म का प्रचार देखा जाता है पर करते है (दशम लम्भ) अन्त में मामा की सहायता से काष्ठांगार को मारकर राजपुरी का राज्य प्राप्त करते हरिचन्द्र अपने परीक्षा प्रधान गूण के कारण जैन हो गये है । उनके राज्य मे प्रजा सुखो थी। अन्त मे जिन दीक्षा थे। कदाचित इमी कारण उन्होंने धर्मशर्माभ्युदय के लेकर उन्होने मोक्ष पद पाया, अन्तिम मगल के साथ चतुर्थ सर्ग में दशरय और सुमन्त के मध्य हुए वार्तालाप काव्य समाप्ति (एकादश लम्भ)। के माध्यम से यह दिखाया है कि कोई भी व्यक्ति कभी भी धर्म को मानने मे स्वतन्त्र है। उन्होने अपने जन्म पुरुदेव चम्पू :स्थान के संदर्भ में कोई सकेत नही दिर उनके तीम। महत्वपूर्ण जैन चम्पू "पुरुदेव चम्पू" है, इसके वर्णनो से ऐमा लगता है कि वे मध्य प्रान्त (वर्तमान मध्य कर्ता महाकवि अहंदास की "मुनिसुव्रत काव्य" तथा प्रदेश) के निवासी थे। हरिचन्द्र नाम के अनेक विनो "भव्य जनकण्ठाभरण' ये दो रचनाएं और उपलब्ध होती का उल्लेख मंस्कृत साहित्य मेहमा है। राजशेखर और हैं । उन्होंने अपने जन्मस्थान के गन्दर्भ म कोई सूचना नहीं बारा भट्ट" ने हरिचन्द्र का उल्लेख किया है। साहसाक दी है। श्री नाथ राम प्रेमी ने उनके ग्रन्थों का प्रचार राज का प्रधान वैद्य भी हरिचन्द्र था। पर ये तीनो कर्नाटक मे अधिक होने के कारण उनके कर्नाटक में रहने उक्त हरिचन्द्र से भिन्न है। यतः "जीवन्धर चम्" तथा का अनुमान लगाया है"। पण्डित आशाधर अपने अतिम "धर्मशर्माभ्युदय" पर "यशस्तिलक" का प्रभूत प्रभाव समय : अवन्ती के नलकच्छपुर में रहे थे और वही पड़ा है, नथा रवत तीनो हरिचन्द्र सातवी शनी से पूर्व के उन्होंने "जिनयज्ञ कल्प" और "अनगार धर्मामृत" को हैं और सोमदेव का समय ई० को दसवी शती का उत्तरार्ध टोका आदि ग्रन्थ लिखे थे। याः अहंदास आशाधर के है। अत: हरिचन्द्र का समय ११-१ वी शती मानना अन्तिम गमय में उनके पास पहुचे तो उनका स्थान अवंती चाहिए। धर्मशर्माभ्युदय को क प्रति पाटण के सर्व: प्रदेश मानना होगा किन्तु समुचित प्रमाणों के अभाव में पाडा के पुस्तक भण्डार में मिली है, जिस 1 लेखन काल वि० स. १२८७ (१२३० ई०) है। कुछ निश्चित कह पाना सम्भव नही है । जीवन्धर चम्म जैन कथ नदी में प्रसिद्ध जीवन्धर श्री नाथ नाम प्रमी ने मदनकीति यतिपति के ही का चरित्र चित्रित किया गया है। २जपुरी के राजा अहम बन जाने का अनुमान लगाया है। किन्तु पुष्ट सत्यन्धर को उसका मंत्री छल से मार डालता है, सी प्रमाणों के अभाव में इस मत को भी वास्तविक रूप में मसान मे एक पुत्र को जन्म देती , जिसे एक वैश्य उठा स्वीकार नही किया जा सकता। लाता है। (प्रथम लम्भ) विद्यालय मे गुरू जीवन्धः को पण्डित आशाधर महान् विद्वान् होते हुए भी मुनि सारी कथा बताते हैं। जीवन्धर नन्दगोप की पुगेका नही बने अपितु उन्होंने मुनियो के चरित्र में पनप रही विवाह अपने मित्र गोविन्दा से कराते हैं । (द्वितीय लम्म) तत्कालीन शिथिलता को कडी पालोचना की है। वे जीवन्धर वीणा वादन में गन्धर्वदत्ता को पराजित कर गृहस्थ पण्डित थे, अतः उनके शिष्य अर्हद्दास का भी उससे विवाह करते हैं (तृतीय लम्भ) सुदर्शन यक्ष की गहस्थ पण्डिन होना सम्भव है। डा. गुलाबचन्द चौधरी यता से हाथी को पराजित कर गुणमाला म चतुथ ने अहंदास को गृहस्थ पण्डित ही माना है"। लम्ब) विषमोचन कर पद्मा से (पचम लम्भ) जिनालय के किवाड़ खोलकर क्षेमश्री से (षष्ठ लम्भ), राजपुत्रों को यह विषय भी अत्यन्त विवादास्पद है कि महाकवि धनविद्या सिखाकर कनकमाला से (सप्तम लम्भ), राज- अहंदास पण्डित आशाधर के साक्षात शिष्य थे या नहीं।
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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