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________________ ग्राह्य ज्ञान - कण -दर्शन मोह के नाश होने पर चारित्रमोह की दशा स्वामोहोन कुत्ते की तरह हो जाती है --- भौंकता है परन्तु काटने में समर्थ नहीं । X X X - आज तक हमने धर्मसाधन बहुत किया परन्तु उसका प्रयोजन जो रागादि निवृत्ति है उस पर दृष्टि नहीं दी । फन यह हुआ कि टस से मस नहीं हुए । X X X - पर-द्रव्य और पर-भाव है संसार में भ्रमण के कारण हैं। पर द्रव्य तो पर दिखाई देता ही - मगर पर-भाव भी पर हो है, क्योंकि वह भी पर-द्रव्य की उपस्थिति से है - इसलिए पर-भाव भी पर ही है । - X X - वह दिन सबसे अभिशप्त मानना चाहिए जब इन्सान के दिल में बेईमानी से एक भी रुपया हासिल करने का विचार उत्पन्न हुआ हो । X X X X कठोर और कड़ी मेहनत की आदत, चाहे लोग इससे घबराते ही हों, हमारे कण्ठ में पुष्पहार की भाँति सुवासित-सुसज्जित रहती है । X - X X 1xx --- - मेरा कुछ मी नहीं है ऐसी भावना के साथ स्थिर हो। ऐसा होने पर तू तीन लोक का स्वामी (मुक्त) हो जायगा । यह तुझे परमात्मा का रहस्य बतला दिया है। X × X - जोव द्रव्य चेतन है और पुद्गल जड़ है - कोई जीव न तो पुद्गलरूप परिगमन करता है ओर न उसको ग्रहण करता है और न उसमें उपजता है । हाँ, जीव का स्वभाव जानना है सो उसको जानता है - ऐसा समझना । X X X X - घर को छोड़ा, जगत को घर बना लिया। घर मे तो परिमित कुटुम्ब होता है - यहाँ तो उसकी सीमा नहीं । यही ममता तो संसार को माता है । -श्री शान्तिलाल जैन कागजी के सौजन्य से विद्वान् लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र होते है । यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो । पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नहीं लिए जाते । कागज प्राप्ति :- श्रीमती अंगूरी देवी जैन, धर्मपत्नी श्री शान्तिलाल जैन कागजी नई दिल्ला-२ के सौजन्य से
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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