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________________ २२, वर्ष ४५, कि०१ अनेकान्त उ." चौडी सं. १५४८ वर्षे..... त्रुटित अंश में वही नम्र प्रणमति सर मम श्री राजा जी सिवसिंह उका सहर नाम होंगे। मुडासा । (१६) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन ३.७" (३२) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मामन १३.५" उ.४" चौडी स. १५४८ वर्षे बैशाख...."टित अश मे उ. ८.२५ चौड़ी सं. १५४८ वरष बैशाख सुदी ३ श्री मूल वही नाम होंगे। सधे सरस्वती गच्छे भट्टारक जी श्रीजिन चन्द्रदेव""""" (२०)भ० अजितनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १०" (३३) भ० ऋषभनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १६" उ." चौड़ी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ श्री जिन- उ. १३" चाड़ी श्री सं. १५५ बैशाख सुदी १ श्री मूलचन्द्र देव जय श्री भट्टारक राजेसा सघे । सघे भट्टारक श्रीजिन चन्द्रदेव शाह जीवराज पापड़ीवाल (२१) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १५" नित्य प्रणमति सोहाराम रा सागये संघा रावल । उ. १०" चौड़ी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ मूलस उपर्युक्त मतिलेख श्रीकमल कुमार द्वारा सकलितभ० जिनचन्द्र देव............ "जिनमति-प्रशस्ति लेख से साभार"। (२२) तीर्थकर प्रतिमा चिन्ह उकेरना भल गये श्वेत उपर्युक्त मूति लेखों से प्रतीत होता है कि श्री पापड़ोपाषाण पदमासन १७" उ. १३.५" सं. १५४८ बैशाख वाल ने मुख्यतया श्वेत पाषाण की और पद्मासन प्रतिसदी ३ श्री मलसंघे भ. जिनचन्द्र देव शाह जीवराज माएं ही निर्मित कराई थी। उन्हें अक्षय तृतीया बहुत पापड़ीवाल...." अभीष्ट थी। अक्षय तृतीया का जैन सस्कृति में अपना ही (२३) भ. चन्द्रप्रभु श्वेत पापाण पद्मासन " उ. विशेष महत्व है, आज के शुभ दिन भ० आदिनाथ को ७" चौड़ी मूर्तिलेख क्रमांक २२ के समान । हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने षड्मासोपवास के बाद (२४) भ० अजितनाथ श्वेत पाषाण १४' उ. इक्ष रस का आहार दान दिया था तब से अक्षय तृतीया १०.२५" चौड़ी मूर्ति लेख क्रमांक २२ के समान । का जैन इतिहास में प्रतिष्ठित पर्व के रूप में प्रचलन है, (२५) भ० महावीर श्वेत पापाण पद्मासन १२" उ. यह शुभ दिन हर मांगलिक कार्य के लिए श्रेयस्कर समझा ९.५" चोड़ी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ श्री मूलसंघे जाता है इसीलिए श्री पापडीवाल ने इस दिन को गजरथ भ. श्री जिनचन्द्रदेव शाह जीवराज पापडीवाल नित्यं प्रतिष्ठा कराई थी। श्री पापडीवाल राजश्रेष्ठि थे इसीप्रणमति सदामस्तु । लिए इतना विशाल आयोजन करा सके पर इतने विशाल (२६) भ. अजितनाथश्वेत पाषाण पद्मासन १४" उ. कार्य मे भले होना भी सम्भव है इसीलिए किसी मति में १०" चौड़ी मूर्ति लेख क्रमांक २५ के समान । चिन्ह का उकेरना रह गया, तो किसी मे सवत गलत (२७) भ० चन्द्रप्रभु श्वेत पाषाण पद्मासन १२” उ. अंकित हो गया तो किसी में नामोल्लेख करना भी रह ९.५" चौड़ी मूर्ति लेख क्रमांक २५ के समान । गया पर ये सब भूले क्षम्य हैं। (२८) भ० चन्द्रप्रभु श्वेत पाषाण पपासन १२" उ. श्री पापड़ीवाल भ० जिनचन्द्र के शिष्य थे जिन्होने " चौड़ी मूर्ति लेख क्रमांक २५ के समान । इनके जिनविम्बों के प्रतिष्ठा की थी, वे अपने समय के (२६) भ० सुपार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन ११" प्रतिष्ठित विद्वान् और प्रभावक आचार्य थे। वे मूल संघ उ." चौड़ी मति लेख क्रमांक २५ के समान । सरस्वती गच्छ वलात्कार गण के दिल्ली पट्टाधीश आचार्य (३०) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १३' पद्मनन्दी के प्रशिष्य तथा शुभचन्द्र के शिष्य थे । आचार्य उ.." चौड़ी मूर्ति लेख क्रमांक २५ के समान । जिनचन्द्र तक व्याकरणादि ग्रन्थ कुशली, मार्ग प्रभावक, (३१) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पदमासन १३" चारित्रचूडामणि आदि विरुदो (उपाधि या विशेषण) से उ. ६.२५" चौड़ी सं. १५४८ वरष बैशाख सुदी ३ श्री सुशोभित थे। उन्होने "चतुविशत जिन स्तोत्र" नामक मलस भ. श्री जिनचन्द देवाः शाह जीवराज पापड़ीवाल रचना का भी निर्माण किया था। (शेष पृ०२४ पर)
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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