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१२, बर्ष ४५, कि.१
अनेकान्त
में कुछ भी नहीं लिखा है। उनके 'परमात्म प्रकाश' से चरिउ' महाकाव्यो की रचना की थी। 'पासणाहचरित' केवल इतना ही ज्ञात होता है कि अपने मुमुक्षु शिष्य भट्ट के उल्लेख से ज्ञात होता है कि इन्होंने 'चंदप्पहचरिउ' की प्रभाकर को सम्बोधित करने के लिए परमात्म प्रकाश की भी रचना की थी जो अनुपलब्ध है। डा. राजाराम जैन रचना की थी।
ने इनके अलावा 'सुकुमालचरिउ' एवं 'भविसयत्तकहा' डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने योगीन्दु को ईसा की छठी तथा 'सम्तिजिणेसरचरिउ' को भी विवध श्रीधर की शताब्दी का आचार्य माना है। जबांक आचार्य हजारी कृतियां मानी हैं । लेकिन डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने इन्हे ८वी-६वीं शताब्दी का कवि माना द्वितीय (वि. सं. १२००) को 'भविसयत्तचरिउ' का और है। हरिवश कोछड़ ने भो इनका समर्थन किया है। श्रीधर तृतीय (वि. स. १३७२) को 'सुकुमालचरिउ' का 'डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने चण्ड और पूज्यपाद के साथ कवि माना है। इसलिए सिद्ध है कि विवध श्रीधर ने तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत कर योगीन्दु को छठी शताब्दी केवल 'पासणाहचरिउ' और 'बड्ढमाणचरिउ' की रचना के उत्तरार्ध का आचार्य माना है। योगीन्दु की कृतियो की थी। "के अध्ययन से भी यही सिद्ध होता है । अचार्य योगीन्दु ने रह-रइधू के विषय मे डा. राजाराम जैन ने संस्कृत और अपभ्रश भाषा मे रचनाए की है। परमात्म विस्तार से विवेचन किया है । ये अपभ्रंश भाषा के महाप्रकाश, मौकार श्रावकाचार, योगसार, सावयधम्मदोहा' कवि हैं । इनका अपर नाम सिंहसेन था। इनके पिता का ये अपभ्रंश भाषा मे लिखे हैं । 'ध्यात्मसन्दोह', सुभाषित नाम हरिसिंह साहू था और माता का नाम विजय श्री -तन्त्र, अमृतासोती, तत्त्वार्थ टीका की भाषा सस्कृत है। था। ये सघपति देवराज के पौत्र थे। इनकी पत्नी सावित्री इस प्रकार हम देखते है कि आवाय जोइन्दु ने दोहा शैली से उदयराज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। बहोल और में आध्यास्मिक ग्रथों की रचना की वैदुध्य पूर्ण रचना की है। मानसिंह नामक इनके दो बड़े भाई थे। इनका जन्म वि.
रामसिंह-मुनि रामसिंह एक आध्यात्मिक अपभ्रंश सं. १४५७-१५३६ में ग्वालियर में आया। ये पावती भाषा के कवि थे। इनका समय वि. स. १००० माना पुरवाल वश के थे। डा. राजाराम जैन ने इनकी निम्नांजाता है। इन्होने पाहुड दोहा, सावधम्म दोहा की कित रचनाएं मानी है-(१) मेहेस रचरिउ, (२) णेमिरचमा की थी।
णाहचरिउ, (३) पासणाहचरिउ, (४) सम्मइ जिणचरिउ, विवध धोधर-अपभ्रंश भाषा के कवि विवुध (५) तिसट्ठिमहापुरिसचरिउ, (६) महापुराण, (७) बलश्रीधर के पिता का नाम बुधगोलह और माता का नाम हद्दचरिउ, (८) हरिवंश पुराण, (९) श्रीपाल चरित (१०) वील्हा देवी था। ये अग्रवाल कुल में उत्पन्न हए थे। प्रद्युम्न चरित, (११) वृत्तसार, (१२) कारण गुणषोडशी, 'विवध श्रीधर ने 'वढमाण रिउ' को प्रशस्ति में कहा है (१३) दशलक्षण जयमाला, (१४) रत्नत्रयो, (१५) षह. कि नेमिचन्द्र की प्रेरणा से उन्होने 'वड्ढमाणचरिउ' की धर्मोपदेशमाला, (१६) भविष्यदत्त चरित, (१७) करकंड रचना की है। इससे सिद्ध है कि नमिचन्द्र साहू उनके चरित, (१०) आत्मसम्बोधन काव्य, (१६) उपदेशरत्ननाश्रयदाता थे। 'पासणाह वरिउ' को प्रशस्ति से ज्ञात माला, (२०) सिमधर चरित, (२१) पुण्याश्रव कथा, होता है कि 'पासणाहचरित' के रचने की प्रेरणा उन्हे (२२) सम्यक्त्वगुणनिधान काव्य, (२३) सम्यग्गुणारोहण नट्टल साहू से प्राप्त हुई थी।
काव्य, (२४) षोडशकारण जयमाला, (२५) बारहभावना, विध श्रीधर ने 'पासणाहचरिउ' का रचना फल (२६) सम्बोधपंचाशिका, (२७) धन्यकुमार चरित, (२८) वि० सं० ११९. बतलाया है। इससे सिद्ध होता है कि सिद्धान्तार्थसार, (२६)वहसिद्धचक्र पजा. (३०)सम्यक्त्व'ये वि० सं० १२वीं शती के कवि हैं । डा. राजाराम जैा भावना, (३१) जसहरचरिउ, (३२) जीपंधरचरित,(३३) 'मे इनका समय वि० सं० ११८६-१२३० माना है। कोंमुह कहापबंधु, (३४) सुक्कोसलचरिउ, (३५) सुदंसण
विध श्रीधर ने 'बडढमाणचरिउ' और 'पासणाह- चरिउ, (३६) सिद्धचक्रमाहप्प, (३७) अणथमिकहा।