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________________ २६, वर्ष ४५, कि० ३ अनेकान्त पोन को कृतियों में नही है। हाँ, पौन्न का बन्ध प्रौढ़ है। शांतिनाथ का यह चरित वीर जिनेश्वर ने गौतम को कहा, वस्तत: पारिभाषिक शब्द तथा सस्कत भाषा का व्यामोह, उसे ही जिनसेन और पुष्पदत ने कहा वही मैंने भी कहा है। इन दोनो ने महाकवि पौन्न की कृतियों की शैली को ३. शान्तिनाथ चरित: कवि महाचन्द्र-कवि क्लिष्ट बना दिया है तथापि कविता मे स्वाभाविकता और महाचन्द्र इल्लराज के पुत्र थे। प्रशस्ति मे काष्ठा संघ पांडित्य विद्यमान है। कवि ने इसमे १६ छन्दो का उपयोग माथुरगच्छ पुष्करगण मे भट्रारक यशःकीति और उनके किया है। काव्य में चम्पू काव्य के अनुकूल सुप्रसिद्ध अक्षर- शिष्य गुणभद्र सूरि थे। वृत्त एवं कन्द अधिक है उनम भी शान्तरसाभिव्यक्ति के कवि की एक मात्र कृति 'शांतिनाथ चरित' है जिसमे में कल १६३६ १३ संधियां अथवा परिच्छेद और २६० कड़वक हैं जिनको पदा. २ गाठ एव त्रिपादियाँ भी है। इसमें यत्र तत्र सुन्दर आनुमानिक श्लोक संख्या पांच हजार है। ग्रंथ की प्रथम कहावतें भी मौजूद है। पौन्न के अनुसार असग कन्नड़ संधि के १२ कड़वकों में मगध देश के शासक राजा श्रणिक कवियो मे सौ गुने प्रतिभाशाली थे। और रानी चेलना का वर्णन, श्रेणिक का महावीर के ___२. शान्तिनाथ चरित : शुभकोति - शुभकीति समवसरण मे जाना और महावीर को वंदन कर गौतम से आचार्य का रचनाकाल सदत् १४३६ है। इन्होने अपनी धर्म कथा का सुनना। गुरु परम्परा का उल्लेख नही किया है। प्रस्तुत शांतिनाथ दूसरी संधि के २१ कड़वकों में विजयाधं पर्वत का चरित १६ सधियों मे पूर्ण हुआ है। इसकी एक मात्र कृति वर्णन, अकलंक कोति की मुक्तिसाधना और विजयांक के नागौर के शास्त्र भडार मे सुरक्षित है। इस ग्रथ में जैनियो उपसर्ग निवारण करने का कथन है । तीसरी सधि के २३ के १६वें तीर्थकर भगवान् शातिनाथ का जीवन परिचय कड़वको मे भगवान् शांतिनाथ की पूर्व भवावली का कथन अंकित है। भगवान् शांतिनाथ ५वे चक्रवर्ती थे उन्होंने है। चौथी सधि के २६ कड़वकों मे शांतिनाथ के भवान्तर षटखण्डो को जीतकर चक्रवर्ती पद प्राप्त किया था। बलभद्र के जन्म का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। पाचवी अग्त मे अविनाशी पद प्राप्त किया। कवि ने इस ग्रथ को संधि के १६ कड़वकों में वायुध चक्रवर्ती का सविस्तार महाकाव्य के रूप मे बनाने का प्रयत्न किया है। काव्य कथन है और छठी संधि के २६ कड़वकों में मेघरथ की कला की दृष्टि से यह भले ही महाकाव्य न माना जाए, सोलह कारण भावनाओं की आराधना और सर्वार्थसिद्धि परन्तु अथकर्ता की दृष्टि उसे महाकाव्य बनाने की रही गमन है। है। १५वी शताब्दी के विद्वान कवि शुभकोति ने अत मे सातवी संधि के २५ कड़वको मे मुख्यतः भगवान ग्रंथ का रचनाकाल स. १४३६ दिया है जो एक पद्य से शांतिनाथ के जन्म-अभिषेक का वर्णन है। आठवीं संधि स्पष्ट होता है। के २६ कडवको में भगवान शांतिनाथ की कैवल्य प्राप्ति कवि ने प्रथ निर्माण में प्रेरक रूपचन्द्र का परिचय देते और समवसरण विभूति का विस्तृत वर्णन है। नवी संधि हुए कहा है कि वे इक्ष्वाकुव शो कुल मे आशाधर हुए, जो के २६ कड़वको मे भगवान् शातिनाथ की दिव्य ध्वनि एव ठक्कुर नाम से प्रसिद्ध थे और जिन शासन के भक्त थे प्रवचनो का कथन है। इनके धनवउ ठक्कुर नाम का पुत्र हुआ। उनकी पत्नी का दसवी सधि के २० कड़वकों में प्रेसठ शलाका पुरुषो नाम लोनावती था, जिसका शरीर सम्यक्त्व से विभूषित का चरित सक्षिप्त वर्णित है। ११वी संधि के ३४ कड़वको था, उससे रूपचन्द नाम का पुत्र हुआ, जिसने उक्त शाति- में भौगोलिक आयामो का वर्णन है। भरत क्षेत्र का ही नाथ चरित का निर्माण कराया। कवि ने प्रत्येक सधि के नही, तीनों लोकों का सामान्य कथन है। १२वी सधि के अत मे रूपचन्द की प्रशसा मे आशीवादात्भक अनेक पद्य १८ कड़वकों में भगवानशांतिनाथ द्वारा णित सदाचार दिए है। का कथन है। और अन्तिम १३वी सधि के १७ कड़वको कवि ने शांतिनाथ चरित के विषय मे लिखा है कि मे शांतिनाथ का निर्वाणगमन है।
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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