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________________ शुद्ध ६६ १०४ १०७ १०६ १११ ११२ ११२ ११३ ११३ १५३ ११८ १५६ १२० १२४ १२६ १३० १४२ पंक्ति १८ १६४ १६४ १६५ १६६ १५ २६ ३४ Xxx x8 २५ १४ २३ १४ : २२ १७ १६ १६ २६ १२ २५ १४ १५७ २०-२१ १७ ३१ २३ २१ २ अशुद्ध हो सकता, क्योंकि ११ ६३ अपनेयमान E ३२७६८ ३३२६ नृणस्थानों का + १ १ १५३४ ३३२६ लब्ध १५३४ २५६२ २५.३ ३ + ? २५७ विरलन के प्रति २५६+' + १ ५१२ ×३२ × १६३८४ सबधी मयानम्पष्टि कर्म स्थिति की असख्याता सख्यात इस बात को २१८४५ ६ शका शेष तीन शुद्धि-पत्र ...... प्रतिभाग का प्रमाण क्या हैं ? 1 च्छ द्रव्यराश होती है। एक बार लाने की ( अर्थात् दूसरी पृथ्वी के द्रव्य को ܐ शुद्ध हो सकता, क्योंकि वह (दूषणात्मक कथा ) अनाचार्य के विनिर्गव अर्थात् कहा गया है । तथा क्योकि ११ १३ अपनीयमान ह २०४६६ लब्ध ३३२६ गुणस्थानों का १५३४ ३३२६ १५३४ २५६२ १ १५३४ ३३२९ २१८४५- १५४४ २५६२ २५३ ३ २५३ ३ +- १ २५७ २५७ विरलन के प्रत्येक एक के प्रति २५६; २५६+१ ५१२ × ३२-१६३८४ सम्बन्धी असंयत मध्यग्दृष्टि कर्म आदि की स्थिति की जघन्य असख्यातासख्यात इस मान्यता को १ कुछ जीरा + + १ ३ शका --- उसके [अर्थात् सामान्य असयत सम्यग्दृष्टिराणि के] प्रतिभाग का प्रमाण क्या है ? होती है। एक बार मे लाने की (अर्थात् जगच्छ्रेणी से जगच्छ्रेणी को २३
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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