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________________ शुद्धि-पत्र धवल पु० ३ (संशोषित संस्करण) 3 जवाहरलाल सिद्धान्तशास्त्रो, भोण्डर २० २५ २०-२१ २५ २२ अशुद्ध शुद्ध ममाणसदगणादो समाणत्तादसणादो। समानता देखो समानता नही देखी मख्वाओ सख्याओं द्रव्यगतानन्यापेक्षया द्रव्यगतानन्तापेक्षया नामिसमीक्ष्यते नाभिसमीक्ष्यते २ +अ१ २ +अ+१ परन्तु जघन्य अनन्तानन्त के परन्तु जघन्य अनन्तातन्त से, जघन्य अधस्तन वर्गस्थानो की अपेक्षा अनन्तानन्त के अधम्तन वर्गस्थानो की जघन्य अनन्तानन्त से अपेक्षा अनन्नानन्त से अनन्तानन्तगुणे अनन्तामन्त से जघन्य अनन्तानन्त के अधस्तन बाद एक सूच्यंगुल वर्गस्थानो की अपेक्षा अनन्तानन्त गुणे बाद साधिक एक सूच्यंगुल [गणित करके देख लें १.४६ सूच्यगुल शेष रहता है न कि पूर्ण एक] अधस्तन वातवलया अवस्थात ही नीचे वातवलय का अवस्थान रहता है रहता ही है। ति. प. प. २२५ ति. प. प.७६५ लडे सामोवे समीवे पुत्तीदो पादिदो -देखो ध. ११३१६ समुग्धादो समुहदो । और ज्ञान प्रमाण ये दोनों मान और प्रमाण ये तीनों राशि के विषय में गशि के प्रमाण के विषय मे (वरलित) (बिरलित) प्रमाग्ति कर देने पर अथवा मिला देने पर सर्व जीवराशि के दूसरे सम्पूर्ण जीवराशि का दूसरा भागरूप भागप्रमाण चौड़ा तथा भाग प्रमाण विस्तार करके भागायाम क्षेत्र होता है आयत (लम्बा) क्षेत्र होता है। लड़ ४४ १९-२१
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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