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________________ श्री कुन्दकुन्द का असली नाम क्या था? क्या वे पल्लीवाल जाति के थे? ४ का कल्पित कर दिया तो राजस्थान की ही पल्लीवाल जिनशासन माहात्म्यप्रकाशः स्यात्प्रभावना ॥१८॥ जाति की भी उनके पाथ कल्पना कर दी गई। अन्यथा -रत्नकरंड श्रा० दक्षिण में पल्लीवाल नाम की कोई जाति है ही नही अज्ञानान्धकार के प्रसार को यथायोग्य दूर कर जो वहाँ तो अन्य ही जातिया है। यह सब गडबड़ पपनन्दि जिनशासन के माहात्म्य को प्रकट करना है वही सच्ची नाम-साम्य के कारण हुई है । ये सब इतिहास की भयंकर प्रभावना है।) पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । भूलें है और आधुनिक भाषा-ग्रन्थ "ज्ञानप्रबोध" आदि के युक्तिमद्वचनं यस्य, तस्यकार्यः परिग्रहः ॥ हरिभद्रसूरि कर्ताओ की गहरी नासमझी के परिणाम हैं। इन्ही के (न जिनेन्द्र महावीर के प्रति पक्षपात है न कपिलादि आधार पर अब तक विविध भाषाओं मे विद्वानो ने कुंदकुद अजैनो के प्रति विद्वेष है-जिनके वचन युक्तियुक्त (सुसंगत) के जीवन चरित्र को लेकर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। जब इस हों उन्ही का ग्रहण करना चाहिए।) प्रकार मूल में ही भूले है तो वे सब ग्रन्थ कहां से प्रामाणिक "बारस अणुवेक्खा' को अन्तिम गाथा ११ मे कन्दहो सकते है। अतः नये शिरे से, गहरी छानवीन और कुन्दमुणिणाहे" लिखा है इस पर किसी विद्वान ने आचार्य ऊहापोह के साथ कुन्दकुन्दाचार्य का प्रामाणिक जीवन- वर पर स्वप्रशसा का आरोप लगाया है किन्तु उसका चरित्र लिखे जाने की सखन जरूरत है चाहे वह छोटा ही अर्थ कुन्दकुन्द मुनिनाथ न करके कुन्दकुन्द मुनि के नाथ हो किन्तु होना चाहिए सुसगत इतिहास । अर्थात् जिनेन्द्रदेव करना चाहिए। हुए न हैं न हो इगे अत्यूनम नतिरिक्त याथातथ्यं विना च विपरीतात् । मुनीद कुन्दकुन्द से ॥ निःसन्देह वेदयदाहुस्तज्ज्ञान मागमिनः ॥४२॥ __ कुन्दकुन्द के ग्रन्थ अत्यन्त सरल-सुस्पष्ट, सहज, मुक, ---रत्नकरण्ड श्रा० लाजवाब, बेमिसाल, सारभत और अद्वितीय हैं। मोक्षमार्ग (पदार्थ को जैसा का तैसा, न कम न ज्यादा, न गलत के लिए उनका खूब प्रचार होना चाहिए । इन्ही को न उल्टा, सन्देह रहित सही-सही जानना ही सच्चा ज्ञान बदोलत श्वेताबरादि दि० हुए है और आगे भी इन्ही के ही प्रताप से होंगे। यह सब की एक मास्टर 'को' (चाबी) अज्ञान तिमिर व्याप्तिमपाकृत्य यथायथ । __ 'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण प्रकाशन स्थान- वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली-२ प्रकाशक-वीर मवा मन्दिर के निमित्त श्री बाबूलाल जैन, २ असारी रोड, दरियागज, नई दिल्ली-२ राष्ट्रीयता-भारतीय । प्रकाशन अवधि-त्रैमासिक । सम्पादक-श्री पद्मचन्द्र शास्त्री, वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ राष्ट्रीयता-भारतीय । मुद्रक-गीता प्रिटिंग एजेंसो, न्यू सीलमपुर, दिल्ली-५३ स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागज, नई दिल्ली-२ मैं बाबूलाल जैन, एतद द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है। बाबूलाल जैन प्रकाशक
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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