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अज्ञात कायस्थ कवि-जिनधर्मो प्यारेलाल
[ सुषमा राहुल, एम० ए०, (शोध-छात्रा)
हिन्दी साहित्य में जैन साहित्यकारो की उपेक्षा के पोथी फुन्दीलाल की मुकाम बजरंगढ के बासी। कारण हिन्दी साहित्य का इतिहास अपूर्ण है । हिन्दी के अक्षर लाला प्यारेलाल कायस्थ के उस वखत लड़काबारे सुप्रसिद्ध कवि एव विद्वान भूतपूर्व कुलपति विक्रम-विश्व- पढ़ा, उसे संवत १९१०, पौष शुद्ध १, इसी से प्रतीत विद्यालय ने एक कृति 'जैन कथाओ का सांस्कृतिक अध्य- होता है कि उनका बाल्यकाल बजरंगढ़ मे बीता, तत्पश्चात यन' की भूमिका मे यथार्थ हो लिखा है। अभी तक जितने वह ईसागढ़ जाकर बस गये। ईसागढ़ उस समय तात्काहिन्दी साहित्य के इतिहास लिखे गये है, उनकी सबसे लिक महाराज जार्ज जीवाजीराव सिन्धियों के राज्य के बड़ी कमी यही रह गई है कि साहित्य की विभिन्म अन्तर्गत एक जिला था। विधाओ के विकास मे जैन साहित्य के योगदान का कायस्थ श्री प्यारेलाल के हमे दो रूप देखने को आकलन ठीक प्रकार से नही किया जा सका।
मिलते हैं-लिपिकार एव कवि । कायस्थ श्री प्यारेलाल जिस दिन कोई सुधी प्रबन्ध-काव्य, नाटक, कहानी जन्मजात जैन नही थे । किन्तु 'महावीराष्टक' के रचनामादि के विकास मे इस कड़ी को जोर देगा, उस दिन कार एवं जैनदर्शन के तलस्पर्शी मनीषी कवि एव विद्वान हिन्दी-साहित्य सचमुच ही वैभवशाली हो सकेगा। जैन- परित भागचन्द जी के सम्पर्क मे भाने के कारण उनका माहित्य को बहुमूल्य देन से वचित होकर हमारा साहित्य जैन-दर्शन से परिचय हमा, और उस महान व्यक्तित्व के अभी वचितो की श्रेणी में है।
सम्पर्क में आकर अपने को कायस्थ प्यारेलाल जिनधर्मी किन्तु इससे अधिक दुर्भाग्य का विषय है-जैन
लिखने लगे। अभी तक उनके द्वारा लिपिकार के रूप मे साहित्य के इतिहास में भी अनेक समर्थ साहित्यकारो का
लिपि की गई सम्वत २०८६ की पांडुलिपि उपदेश उल्लेख तक नहीं मिलता। सम्पूर्ण भारतवर्ष के जैन
सिदान्त रत्नमाला, ग्राम पिपरई में उपलब्ध हुई है।
पडित भागचन्द जी को इस कृति मे उन्होने निखा हैशास्त्र-भण्डारों मे अनेक प्राकृत, सस्कृत, हिन्दी एव विविध भाषाओ की कृतिया अपने उद्धार की प्रतीक्षा में मौजद
"इस पोथी के हरफ लिखे लाला प्यारेलाल कायस्थ जिनधर्मी ने।"
नाम माला उनकी एक स्वतंत्र एव मौलिक कृति है, ___गुना जिले की प्राचीनता असंदिग्ध है। पम्देरी, बढ़ी
इसके अतिरिक्त संवत २०१६ को एक हस्तलिखित पोथी चन्देरी, तूमैन, थूबोन, बजरगढ़ अनेक ऐतिहासिक स्थल
में उनके द्वारा लिखे १८ गीत उपलब्ध होते हैं । नामहै। गुना जिले के अधिकांश देवालयो मे हस्तलिखित,
माला के शुभारम्भ मे कवि ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया प्रकाशित एव अप्रकाशित ग्रन्थ उपलब्ध है, इन्ही शास्त्र
है कि महान ज्ञानी एव प्रसिर पशित भागचन्द की संगत भण्डारी के आधार पर कायस्थ प्यारेलाल जिनधर्मी के
में आकर उनकी जैनधर्म मे श्रमा उत्पन्न हुई। व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय दिया जा रहा है।
ॐ नमः सिद्धेभ्यः, कायस्थ श्री प्यारेलाल की जीवनी अज्ञात है. बजरगढ़
प्रय नाम माला लिख्यते, के देवालय मे एक हस्तलिखित पोथी प्राप्त हुई है जिसमें बंदो पांचों परम गुरु, स्वयं प्यारेलाल जी ने लिखा है
मन वच शीश नवाय,