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________________ चिन्तन के लिए : षट्खण्डागम और गोम्मटसार श्री एम० एल० जैन ३०, तुगलक कोसेंट, नई दिल्ली षटखण्डागम की टीका धवला में अपने से पूर्ववर्ती छोड़ दें तो गाथा व सूत्र का अन्तर नगण्य है। यही कई आचार्यों की गाथाएँ उद्धृत हैं परन्तु सभी विद्वानों ने कारण है कि धवला मे जीवकाण्ड की गाथा को उद्धत यह भी निष्कर्ष निकाला है कि जहां तक गोम्मटसार की नहीं किया गया। उद्धरण इस बात का प्रमाण होता है गाथाओं का सवाल है, वे नेमिचन्द्र ने धवला से संग्रहीत कि उद्धत अंश पूर्ववर्ती होता है भविष्यवर्ती तो नही । की हैं । इस निष्कर्ष का मूल कारण यह है कि इस बात ऐसी सूरत में निष्कर्ष यह होगा कि गोम्मटसार की को अब सन्देह से परे समझा जाता है कि गोम्मटराय संरचना धवला टीका के पहले याने सन् ८१६ के पहले जिनका जयगान नेमिचन्द्र ने किया है वे कोई और नही हो चुकी थी। इस सिलसिले में यह भी नही भुलाया जाना गंगनरेश रायमल्ल के सेनानायक चामुन्डराय हैं जो दसवीं चाहिए कि नेमिचन्द्र ने अपने ग्रथो मे चामुण्डराय का व शताब्दि के द्वितीय चरण में हए हैं। परन्तु क्या यह निष्कर्ष चामुण्डराय ने अपने ग्रंथो मे नेमिचन्द्र का नाम नही लिखा सही है ? है। प्रचलित किंवदन्तियों व अनुमानो के आधार पर यह पं० हीरालाल शास्त्री ने पञ्चसंग्रह की अपनी निश्चय कर लिया गया है कि नेमिचन्द्र के गोम्मट राय प्रस्तावना पृ० ३६ में यह अनुमानलगाया है कि यह ग्रन्थ चामुण्डराय ही हैं।' पांचवीं-छठी शताब्दि के बीच कभी संग्रहीत हुआ है। इस जीवकाण्ड की गाथा ५६१ इस प्रकार हैग्रथ का पहला अधिकार जीव समास है उसकी गाथा ५७ छप्पच णव विहाणं अल्याण जिणवरो वट्ठाण । इस प्रकार है आणाए अहिगमेण व सद्दहण होई सम्मत्त ॥ गइ इदिय च काए जोए वेए कसाय णाणे य।। इस गाथा का यही स्वरूप पचमंग्रह के जीवसमास सजम दसण लेस्मा विया सम्मत्त सण्णि आहारे॥ अधिकार की गाथा सख्या १५६ मे तथा षटखण्डागम के गोम्मटसार जीव काण्ड की गाथा १४२ इस प्रकार है- सूत्र १५१२५ की धवला टीका मे गाथा ९ का है। अब गइ इंदिए सु काए जोगे वेदे कसाय णाणे य। यह गाथा वीरसेन ने गोम्मटसार से उद्धत की, यह उसी संजम दसण लेस्सा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥ सूरत में अस्वीकार किया जा सकता है जब कि हम दोनो गाथा लगभग एक है किन्तु पञ्चसंग्रह के गाम्मटराया गोम्मटराय व चामुण्ड राय को एक मानने के निर्णय पर 'इंदिय च' 'जोए बेए' के स्थान पर गोम्मटसार जीवकाण्ड अटल रहे। में 'इंदिए सु' व 'जोगे वेदे' पद हैं। जीवकाण्ड की गाथा ५१२ यों हैषट्खण्डागम का सूत्र ११४ इस प्रकार है रूसइ णिदइ अणे दूसइ वहुसो य सोय भय बहलो "गइ इंदिए काए जोगे वेदे कसाय णाणे संजमे दंसणे असुयदि परिभवदि परं पसंमदि अप्पयं बहुमो। लेस्सा भविए सम्मत्त सण्णि आहारए चे दि।" यही रूप इस गाथा का पचसंग्रह के जीव समास तुलना करने से दृष्टव्य है कि गोम्मटसार गाथा के शब्द अधिकार की गाथा १४७ का है। किन्तु धवला की गाथा 'सु' व 'य' उक्त सूत्र में नहीं है और 'चेदि' शब्द सूत्र मे संख्या २०३ इस प्रकार हैअधिक है तथा 'संजम दसण' शब्दो में सप्तमी विभक्ति रूसदि णिदि अण्णे दूसदि बहुसो य सोय भय बहुलो। सहित 'सजमे दंसणे' शब्द आए है। इन विशेषताओं को असुयदि परिभवदि पर पससदि अप्पय बहुलो ।।
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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