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________________ . वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी, एक अन्य मत से उनकी टीका-व्याख्या प्रादि सहित प्रकापूर्ण आयु ९५ वर्ष थी। किन्तु चूकि उनके आचार्यकाल के शित हो चुके है। ईसापूर्व ८ से सन् ४४ ई० पर्यन्त रहा होने में प्रायः कोई २. प्रवचनसार -इसके भी अनेक सस्करण प्रकाशित मतभेद नहीं है, यह वृद्धि उनके जन्मकाल या मुनिदीक्षा काल मे ही सम्भव है। इस प्रकार आचार्य का जन्म ३. पंचास्तिकायमार-अनेक मस्करण प्रकाशित । ईसापूर्व ५१ या ४१ मे, अथवा उन दोनों तिथियो के बीच ४. नियमसार -प्रकाशित । किसी समय हुआ। उनकी मुनि दीक्षा भी ईसापूर्व ४३, ५. रयणसार -प्रकाशित। ४०, ३३ या ३० मे हुई। ६. अष्टपाहु -प्रकाशित । मोखिक परम्परा से प्राप्त श्रतागम के आधार पर ७. बारस अणुवेक्खा--प्रकाशित । कुन्दकुम्दाचार्य ने ८४ पाहड (प्राणन) ग्रन्थ रचे कहे जाते ८. दशभक्ति --प्रकाशित । जाते हैं। उनके ग्रन्थो के शीर्षक प्रकरणात्मक है---उनके ६. मूलावार प्रकाशित । द्वारा वे अपने विषय मे निष्णात, प्रत्यक्षदाटा गुरु की नाई कुछ अन्य पाहुड भी प्राप्त हुए है। इनक ग्रन्थो पर महज भाव से धर्मोपदेश करते चले जाते है--उम ज्ञान उत्तरवर्ती प्रौढ आचार्यों ने अनेक टीकाप लिखी है। को वे स्वयं तीर्थंकर द्वारा प्रदत्त ज्ञान मानते हैं। अत: कुन्दकुन्द की कृतियो के प्रसिद्ध टीकाकार हैं-अमृतचन्द्रास्वय अपना नाम कर्ता के रूप में देने को कहीं भी उन्हें चार्य (१०वी शती) और प० रूपचन्द, प० बनारसीदास, आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। यत्र-तत्र प्रसगवश पाण्डे हेमराज, ५० जयचन्द्र (१६वी से १६वी शती के ऐतिहासिक व्यक्तियो एव घटनाओ की ओर भी दृष्टान्तरूप मध्य) । से संकेत कर देते है। विक्रम संवत् १४५५ के एक शिलालेख में अगपूर्वकुन्दकुन्दाचार्य के सुप्रसिद्ध उपलब्ध ग्रन्थ निम्न प्रकार धारी आचार्यों के अन्तिम समूह के पश्चात् हुए आचार्यों का उल्लेख करते हुए कौण्डकुन्द यतीन्द्र को प्रशस्ति दी गई १.समयसार प्राभृत--अनेक सस्करण विभिन्न भाषाओ है । कुन्दकुन्दाचार्य का महत्त्व इन सबसे स्वयं प्रमाणित है। मे मूल, अनुवाद, प्राचीन एव नवीन (श्री रमाकान्त जैन के सौजन्य से) सन्दर्भ-सूची १. अपनी 'दि जैन सोर्सेज ऑफ दि हिस्ट्री आफ एन्श्येन्ट ५. तमिलनाडु मे जन मान्यता यही है कि 'तिरुकुरल' के इण्डिया' में पृ० १२? और १२२ पर डाक्टर साहब रचयिता तिरुवल्लुवर नामक कोई गृहस्थ सन्त थे, ने जयसन का समय ल० ११५० ई० अकित किया है किन्तु उक्त ग्रन्थ मे जैनधर्म का विशेष प्रभाव लक्षित किन्तु ऐतिहासिक व्यक्तिकोश की पान्डुलिपि में, होने और आद्य तमिल माहित्य के पुरस्कर्ता प्रायः जिससे उपर्युक्त लेख उद्धृत है, एक स्थान पर वि० जैन आचार्य होने के कारण अनेक तमिल विद्वान १२०० को काटकर उन्होने १०६८ ई० लिखा है। भी उसे जैन कृति मानने पर विचार करने लगे है। इस सशोधन का आधार अज्ञात है। स्व. प्रो० ए० चक्रवर्ती ने अपनी 'जैन लिटरेचर इन २. तत्त्वार्थशास्त्रकर्तार गृध्रपिच्छोपलक्षितम् । तमिल' मे इस कृति के कर्ता का नाम लाचार्य वन्दे गणीन्द्र संजातमुमास्वामी मुनीश्वरम् ॥ बताया है और उसे आचार्य कुन्दकु. का अपरनाम --तत्त्वार्थ प्रशस्ति, पंचम १; एपिग्राफिया बताया है। कर्णाटका द्वितीय खड तथा श्रवणबेलगोल शिलालेख ६४, १२७ व २५८. दिल्ली के दिगम्बर जैन पचायती मन्दिर के शास्त्र ३. जैन सोर्सेज आफ हिस्ट्री आफ एन्श्येन्ट इंडिया पृ. २७४. भण्डार मे 'मूलाचार' की एक हस्तलिखित प्रति पर ४. वही । लेखक रूप मे कुन्दकुन्द का नाम दिया है। .
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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