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परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण सवत् २५१५, वि० सं० २०४६
वर्ष ४२ किरण २
अप्रैल-जन १९८ह
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अध्यात्म-पद चित चितके चिदेश कब, अशेष पर बम । दुखदा अपार विधि-दुचार-की चमूं दम ॥ चित० ॥ तजि पुण्य-पाप थाप आप, आप में रम । कब राग-आग शर्म-बाग दाघनी शमं ॥ चित० ॥ दग-ज्ञान-भान तै मिथ्या अज्ञानतम दमं । कब सर्ब जीव प्राणिभूत, सत्त्व सौं छम ॥ चित० ॥ जल-मल्ललिप्त-कल सुकल, सुबल्ल परिनमूं । दलके विसल्लमल्ल कब, अटल्लपद पमं ॥ चित०॥ कब ध्याय अज-अमर को फिर न भव विपिन भम। जिन दूर कौल 'दौल' को यह हेतु हौं नमूं ॥ चित० ॥
कविवर दौलतराम कृत भावार्थ-हे जिन वह कौन-सा क्षण होगा जब मैं सम्पूर्ण विभावों का वमन करूंगा और दुखदायी अष्टकर्मो को सेना का दमन करूँगा। पुन्य-पाप को छोड़कर आत्म में लीन होऊँगा और कब सुखरूपी बाग को जलाने वाली राग-रूपी अग्नि का शमन करूँगा । सम्यग्दर्शन-ज्ञान रूपी मूर्य से मिथ्यात्व और अज्ञानरूपी अंधेरे का दमन करूँगा और समस्त.जीवों से क्षमा-भाव धारण करूंगा। मलीनता से युक्त जड़ शरीर को शुक्ल ध्यान के वल से कब छोडूगा और कब मिथ्या माया-निदान शल्यों को छोड़ मोक्ष पद पाऊँगा। मैं मोक्ष को पाकर कब भव-वन में नही घमंगा ? हे जिन, मेरी यह प्रतिज्ञा पूरी हो इसलिए मैं नमन करता हूँ।