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________________ रेल की जैन प्रतिमा पंक्ति में एक त्रिकोण आकार का चिन्ह बना है जिसके बाद लेख को द्वितीय पक्ति आरम्भ होती है । प्रस्तुत मूर्ति का पिछला हिस्सा कुछ लाल-पीला पड़ गया है । पता चला कि लगभग ५० वर्षों पहले घर मे लगी आग की वजह से ऐसा हुआ है। इसके सिवा कोई क्षति नही पहुची। शेष प्रतिमा का पालिश अब भी जैसा का वैसा है। प्रस्तुत मूर्ति सम्भवत गुजरात या राजस्थानी कला का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि इसी क्षेत्र मे सात सर्प फनों के छत्र के साथ ही देखो मे पार्श्वनाथ नामोल्लेख रचयिता परमानन्द वैद्यरन पाण्डेय है जो वैष्णव परि वार के है परन्तु जैनधर्म के प्रति उनके मन मे वहा सद्भाव था। इसी कारण २५०० व वीर निर्माण महोत्सव के उपलक्ष में प्रस्तुत चम्पूकाव्य की रचना की । प्रस्तुत चम्पू का प्रारम्भ यजुर्वेद के उस मन्त्र से होता है जिसमे गणराज्य की मूल भावना निहित है । अनन्तर णमोकार मन्त्र का स्मरण कर लाल किले पर निर्वाणोत्सव पर हुए सम्मेलन का वर्णन है। ऋषभदेव को नमस्कार करके चौबीस तीर्थंकरो के जन्मादि का वर्णन है। इसके आगे १/३ भाग मे महावीर भगवान का चरित्र चित्रित है । आगे १/३ भाग मे जैनधर्म व उसके सिद्धान्तो का वर्णन है। अनन्तर महावीर निर्वारण वर्णन, महावीर के ११ गणधर, सत्पुरुष व नारी का लक्षण महावीराष्टकस्त्रोत का वर्णन है। अन्त मे आवाहन किया है कि महावीर के उपदेशों का क्रियान्वन ही आज उनका वास्तविक स्मारक और जांजलि है। इनके अतिरिक्त "वर्धमान चम्पू" मे तीर्थंकर महावीर की परम्परा लोकप्रिय थी । सम्भव है यह शब्द भी उक्त मूर्ति लेख मे भाया हो। वैसे ही यहां के जैन परिवारो की पिछली पीढ़ी कही बाहर से आकर बसी है। भागपास के इलाके में बिरले ही जैन लोग मिलते है। ( पृ० १३ का शेषांश) १५ वर्तमान युग मे २४ तीर्थंकरों में से अन्तिम दो तीचंकरों पार्श्वनाथ एव महावीर की ही ऐतिहासिकता सर्वमान्य है। पार्श्वनाथ को ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना गया है। पार्श्वनाथ की यह मूर्ति विदर्भ के जैन धर्म के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है इनमे सदेह नही । 00 के पाँच कल्याणको का विवेचन है। इसके रचयिता मूल चन्द शास्त्री हैं । प्रस्तुत रचना अभी अप्रकाशित हैं । पुण्याश्रव चम्पू के रचयिता श्री नागराज है । सम्भवतां इसमे किसी इसमे किसी पुण्य के महत्व का वर्णन होना चाहिए। "भारतचम्पू" का उल्लेख श्री जुगल किशोर मुख्यार ने किया है । प० आशाधर कृत भरतेश्वराभ्युदयचम्पू मे भारत के अभ्युदय का वर्णन होना चाहिए । जैनाचार्य विजयचम्पू के लेखक अज्ञात है । इसमे ऋषभदेव से लेकर मस्लिपेषण तक अनेक जैनाचार्यों की वादप्रियता के साथ उनकी अन्य सम्प्रदायो पर प्राप्त विजय का वर्णन है । इस प्रकार प० सोमदेव से प० परमानन्द तक जैन चम्पू काव्यो की परम्परा अविच्छिन्न रूप से चलती रही। यद्यपि ये सख्या मे अल्प है परन्तु गुणवत्ता की दृष्टि से अग्रगण्य हैं। प्रत्येक चम्पू काव्य मे अपनी कुछ-न-कुछ विशेषता है जिससे वे विद्वत्समाज के शिरोहार है। ३३० ए, छीपी टैंक, मेरठ
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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