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________________ प्राचार्य कन्वन्द एवं उनके सर्वोदयवादी सिवान्त उन्होंने किया था, ऐसी कुछ विद्वानों की मान्यता है किन्तु है। अत: हिन्दी-साहित्य विशेषतया ब्रजभाषा के साहित्य यह मान्यता अभी तक सर्वसम्मत नहीं हो पाई है। फिर को यदि उत्तरोत्तर समद्ध बनाना है, तो कुन्दकुन्द की भी, यदि यह मान भी ले कि वह उन्ही की रचना है, तो भाषा एव साहित्य का अध्ययन एवं प्रचार-प्रसार करना भी उन्होने बाद मे प्रान्तीय सकीर्णता से ऊपर उठने का ही होगा। निश्चय किया और शरसेन देश (अथवा मथुरा) के नाम इस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द को देन के विषय में यहाँ पर प्रसिद्ध शोरसेनी-प्राकृत-भाषा का उन्होन गहन अध्य सक्षिप्त विचार प्रस्तुत किए गए किन्तु उनके अवदानों यन किया तथा उसी मे उन्होने यावज्जीवन साहित्य की की यही अन्तिम सीमा नही है। वस्तुत: उनका व्यक्तित्व रचना की। उसमे जीवन की यथार्थता का चित्रण, भाषा तो इतना विराट है कि उसे शब्दो में गुथ पाना कठिन ही की सरलता, सहज वर्णन-शैली वद मार्मिक अनुभूतियो से है। अभी तक विद्वानो ने उनका केवल दार्शनिक मूल्याओत-प्रोत रहने के कारण वह माहित्य इतना लोकप्रिय ___ कन ही किया है। किन्तु मेरी दृष्टि से वह भी अपूर्ण ही हुआ कि प्रान्तीय, भाषाई एव भौगोलिक सीमाएं स्वता है क्योकि विश्व के प्रमख दर्शनों के साथ उनका तुलनाही समाप्त हो गइ। सर्वत्र उसका प्रचार हुप्रा । आज भी त्मक अध्ययन तथा उसमे पारस्परिक आदान-प्रदान की पूर्व से पश्चिम एव उत्तर से दक्षिण कही जाये आचार्य दिशा में कोई भी विचार नही किया गया जो कि आवबन्दकन्द सभी के अपने है । उनके लिए न दिशाभेद है, न यकी नही अनिवार्य भी है। देशभेद है, न भाषाभेद है, न प्रान्तभेद है, न धर्मभेद है और न वर्णभेव ही। इसी प्रकार कुन्दकुन्द की भाषा का भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण, उनके साहित्य का सांस्कृतिक, सामाजिक एव इस प्रकार एक दाक्षिणात्य सन्त कुन्दकुन्द ने अपने काव्यात्मक मूल्यांकन भी अभी तक नही हो पाया है। इन केवल एक भाषा-प्रयोग से ही समस्त राष्ट्र को एकपद्ध पक्षों पर जब तक प्रामाणिक अध्ययन नही हो जाता तब कर चमत्कृत कर दिया। आधुनिक दृष्टि से भाषा-प्रयाग क कुन्दकुन्द के बहुआयामी व्यक्त्वि से अपरिचित ही के माध्यम से राष्ट्र को एकबद्ध बनाए रखने का इससे रहेगे । श्रमण सस्कृति के महान सवाहक आचार्य कुन्दकुन्द बड़ा उदाहरण और कहां मिलेगा? के इस द्विसहस्राब्दि, समारोह के प्रसंग में यदि उनके शोरसेनी-प्राकृत के क्षेत्र से यदि कुन्दकुन्द को पृथक सर्वांगीण पक्षो को प्रकाशित किया जा सके, तो उसे इस कर दिया जाय तो उसकी उतनी ही क्षति होगी, जितनी सदी का भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के लिए बहुमूल्य कि शोरसेनी-प्राकृत से उत्पन्न ब्रजभाषा के महाकवि सूरदास को पृथक् कर देने पर हिन्दी-साहित्य की क्षति । -प्राचार्य एव अध्यक्ष, शोरसेनी-प्राकृत तथा ब्रजमाषा सहित उत्तर भारत की स्नात्कोत्तर सस्कृत-प्राकृत विभाग, प्रमुख आधुनिक भाषाओ का प्राकृतो से गहरा सम्बन्ध ह. दा० जैन कालेज, आरा(बिहार)०स०३११
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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