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________________ आगम के मूल रूपों में फेर-बदल घातक है .0पचन्द्र शास्त्री, संपादक 'अनेकान्त' निवेदन : एक ओर जब मुसलमानों के कुरान की स्थिति वही है, जो पहिले थी और आगे वैसी ही रहेगी जैसी प्राज है। उसके जेर-जबर, सीन-स्वाद, अलिफ-ऐन और तोय-ते में कहीं कोई फर्क नहीं पाया । हिन्दुओं के वेद भी वे और वैसे ही प्रामाणिक हैं जैसे थे। तब दूसरी ओर कुछ जैनों ने आगमों में गलत शब्द रूपों के मिश्रित होने की (भ्रामक) बात को प्रचारित कर आगम भाषा के सही ज्ञान के विना ही, ना समझी में आगमों के संशोधन का उपक्रम चलाकर यह सिद्ध कर दिया है कि अब तक जो हम पढ़ते रहे हैं वह आगम का गलत रूप था। इससे यह भी सिद्ध हना है कि प्रागमरूप बदलता रहा है और पहिले की भांति आगे भी बदलता रह सकेगा। क्योंकि इसकी कोई गारण्टी नहीं कि अब जो सशोधन होगा वह ठीक ही होगा। फलतः हमारी समझ से कोई भी बदलाव जैन सिद्धान्त की प्रामाणिकता पर जबरदस्त चोट और जनेतर ग्रन्थों के मुकाबले जैन पागम रूप को अप्रामाणिक सिद्ध करने वाला है। यदि लोग प्राकृत भाषा के रूप को समझेंगे-जैन-मागम की भाषा को समझेगे तो वे अवश्य इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि हमारे पागमों में सिद्धान्तों की भांति भाषा-वृष्टि से भी कहीं किसी भी तरह से कोई मिश्रण या कोई विरूपता नहीं है-वे जैसे, जिस रूप में है प्रामाणिक हैं-उन्हें वैसे ही रहने दिया जाय। इसी भावना के साथ श्रद्धापूर्वक कुछ लिखा है-विचार करें। -लेखक दिगम्बर गुरुओं मे विकृति आने और आगम के अर्थों दोनों में अन्तर है। जहाँ शौरसेनी में भाषा सम्बन्धी बध में फेर-बदल के चर्चे तो चल ही रहे थे। अब कुछ लोगो नियम हैं, वहां जैन-शौरसेनी-नियम बधन-मुक्त है-जैनने संशोधनों के नाम पर मूल-आगमो की भाषा में परि- शौरसेनी कई भाषाओं का मिला जुला रूप है और इस वर्तन करने-कराने का लक्ष्य भी बनाया है-वे परिवर्तन विषय में प्राकृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान एक मत है। कर रहे हैं । सोचें-जब पुराने पाषाण-खण्डों (पुरातत्त्व) तथाहिकी रक्षा महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है तब क्या हमारे 'In his observation on the Digamber test आगम-ग्रन्थ उनसे भी गए-बीते है ? जो उन्हें विकृत Dr. Denecke discusses various points about कि जा रहा है। वास्तविकता तो यह है कि अभी तक some Digamber Prakrit works... He remarks कई लोग दि० जैन आगमों की भाषा का सही निर्णय ही that the language of there works is influenced नहीं कर पाए है। कभी किसी ने लिख या कह दिया कि by Ardhmagdhi, Jain Maharastri which Appro'दि० जैन आगमों की भाषा शौरसेनी है तो उमी आधार aches it and Saurseni.' -Dr. A.N. Upadhye पर आज कई विद्वान् आगम-भाषा को ठेठ शौरसेनी मारे (Introduction of Pravachansara) बैठे है। हमें एक लेख अब भी मिला है, जिसमे लेखक विद्वान् ने आचार्य कुन्दकुन्द की भाषा को शौरसेनी लिखा 'The Prakrit of the sutras, the Gathas as है। जब कि तथ्य यह है कि दि० आगमों की भाषा well as of the commentary, is Saurseni influशोर सेनी न होकर जैन-शोरसेनी है। ध्यान रहे कि शौर- enced by the order Ardhamagdhi on the one सेनी और जैन-शौरसेनी ये दो पृथक-पृथक् भाषा हैं और hand and the Maharashtri on the other, and
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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