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________________ १२, बर्ष ४१, कि०४ अनुभाग वाला है। .........."उससे अनन्तानुबन्धी ४ प्रकृति के जघन्य अनुभाग उदय को उदय ही कहा गया कषायों का जघन्य अनुभाग सत्त्व [जो कि प्रथम समय है; अनुमाग की जघन्यता के कारण अनुदय नही। करसयुक्त मिथ्यात्वी के सत्त्व मे प्राप्त होता है] अनन्त- णानुयोग मे स्पष्टतः सूक्ष्म विवेचन होना अत्यन्त स्वागुणा है। भाविक है। प्रथमानुयोग या चरणानुयोग अथवा द्रव्या[यतिवृषभाचार्य कृत चूणिसूत्र] नुयोग से भी सूक्ष्म विषयों को यह स्पष्ट खोलता है । (मोक्षमार्ग प्रकाशक आठवां अधिकार पृ. ४१६-२०) सस्ती ग्रन्थमाला कनेटी धर्मपूरा, दिल्ली। इस प्रकार चरमसमयी सूक्ष्मसाम्पराय के उदय को स्पष्टतः उदय कहने वाले आचार्य, इससे अनन्तगुणे अनु- सारत:--"विसयोजक के सीधे मिथ्यात्व मे आने पर भाग-अविभाग प्रतिच्छेदो युक्त अनुभाग [यानी अनन्तानु- आवली काल तक अनन्तानुबन्धी का कथमपि, त्रिकाल बन्धी के जघन्य अनुभाग] । रूप उदय को आचार्य कसे भी, क्वचित् भी, कचित् भी, किंचित् भी उदय सम्भव उदय नही कहेगे ? अपितु अवश्य कहेगे। परन्तु प्रथम नही । तथा दूसरी बात यह कि अनन्तानुबन्धी के उदय आवली-कालवर्ती संयुक्त मिथ्यात्वी के अनन्तानुबन्धी व उदीरणा सदा साथ-साथ ही होते है।" उदित है ही नहीं, इसीलिए आचार्यश्री ने अनुदप कहा धवल, जयधवल आदि सकल प्रन्थ इस निर्णय के है। और तो क्या कहे, कर्म शास्त्र में किसी भी मोह साक्षी है। (प्रेषक-रतनलाल कटारिया, केकड़ी) (पृष्ठ ७ का शेषांश) उल्लेखनीय है । उपन्यास लेखक वीरेन्द्र कुमार जैन का जैन दर्शन परिशीलन एव पं० कैलाशचन्द शास्त्री का जैन तीर्थकर महावीर २०वी शताब्दि का उत्कृष्ट गद्य काव्य न्याय ख्याति प्राप्त रचनाये हैं। है। दार्शनिक कृतियो मे डा० दरबारीलाल कोठिया का LO सन्दर्भ-सूची १. जिणदत चरित-राजसिंह विरचित, सम्पादन-डा०६. मरू भारती पिलानी वर्ष १५ अंक-पृष्ठ---६ । भाताप्रसाद गुप्त एवं डा० कस्तुरचन्द कासलीवाल ७. सूरपूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य -पृ. ३०७ । साहित्य शोध विभाग जयपुर की से प्रकाशित । ८. आचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यषोधर-सपादक डा. २. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारो की ग्रथ सूची चतुर्थ कस्तूर चद कासलीवाल प्रकाशक-श्री महावीर प्रथ भाग प्रस्तावना-डा. वासुदेवशरण अग्रवाल । अकादमी जयपुर। साहित्य शोध विभाग जयपुर द्वारा प्रकाशित । ६. महाकवि ब्रह्म रायमल्ल एवं भट्टारक त्रिभुवन कीर्ति३. प्रद्युम्न चरित-संपादक विरचित-सवादक ५० सपादक डा. कस्तुरचद कासलीवाल, प्रकाशक श्री चैनसुखदास एब डा. कस्तूरचन्द कासलीव ल । महावीर ग्रन्थ अकादमी जयपुर । प्रकाशक-साहित्य शोध विभाग, जयपुर । ४. महाकवि ब्रह्म जिनदास-व्यक्ति एवं कृतित्व-ले० १०. भट्टारक रत्नकीति एव कुमुवचन्द, संपादक-डा. डा. प्रेमचन्द राव प्रकाशन-श्री महावीर अकादमी कस्तूरचन्द कासलीवाल, प्रकाशक-श्री महावीर जयपुर। ग्रन्थ अकादमी जयपुर। ५. कविबर बुचराज एव उनके समकालीन कषि-सपादन ११. बाई अजीतमति एवं उनके समकालीन कवि, सपादक डा. कस्तूरचंद कासलीवाल प्रकाशक-श्री महावीर डा. कस्तूरचद कासलीवाल, प्रकाशक-श्री महावीर प्रन्थ अकादमी जयपुर। ग्रन्थ अकादमी जयपुर।
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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