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________________ १ ४०, कि.. वृक्ष के नीचे विश्राम करते हैं। बम का निवासी यक्ष आश्वासन देकर जैसे ही वस्तुएँ हाथ में लेता है कि पांवड़ी दम्पत्ति मुग्ध होकर इनकी सहायता करते हैं । यक्ष लाकर पैर मे पहिन वह कंचनपुर पा जाता है, चोर हाथ मलते इन्हें दो आम्र फल लाकर नीचे गिराता है जिनमे बडा रह जाते हैं। फल सात दिन में राज्य प्राप्त कराने वाला था और छोटा वइरसेन की वेश्या से पुन: भेट हो जाती है। वेश्या फन भक्षक को नित्य पांच सौ रत्नदायी। फलों के रहस्य इसकी पावडी लेना चाहती है। वह इसे उगने के लिए को शातकर छोटा फल वइरसेन विधिपर्वक खाकर पांच छलपूर्वक मन्मथ मन्दिर के दर्शन कराने के लिए आग्रह सौ रत्न प्राप्त करने लगता है और बड़ा फल अम सेन को करती है। वइरसेन जैसे ही वेश्या को लेकर वहां जाता देकर उसके रहस्य की प्रतीक्षा करता है। है कि वेश्या इसे मन्दिर में छोड पावडी पहिन कर कंचन पुर आ जाती है । मन्दिर में उसी समय एक देव दर्शनार्थ । तृतीय परिच्छेद आता है। वइरसेन की व्यथा सुनकर वह उसे पन्द्रह दिन बइरसेन भाई अमरसेन से भोजन सामग्री लाने के लिए बाद पुन' आकर यथा स्थान ले जाने का वचन देता है। 'कंचनपुर जाता हूँ" कहकर चला जाता है। इधर कचन जाते समय पश्चिम की ओर गमन न करने के लिए कह पुर नरेश का मरण हो जाने तथा योग्य उत्तराधिकारी के कर चला जाता है। वइरसेन उत्सुकता वश उस ओर अभाव में "हाथी जिसका अभिषेक करे वही नगर का नृप जाता है। जाता है। एक वृक्ष के फूल को सूघते ही वह गधा बन वर्ष ह' इस निश्चय से हाथी नगर में घुमाया जाता है। वह जाता है । देव यथा समय आकर और इसे मनुष्य का रूप जान वन मे जाकर सोये हुए अमरसेन का अभिषेक करता है। देकर चलने के लिए आग्रह करता है किन्तु यह देव को अमरसेन कचनपुर के राजा घोषित होते हैं। उधर वइर. जर पाँच दिन बाद पूनः आने के लिए निवेदन करता है। देव सेन कंचनपुर जाकर एक वेश्या के चक्कर पड़ जाता स्वीकृति प्रदान कर जैसे ही जाता है कि वइरसेन दोनो है। वह अमरसेन के पास लोट नहीं पाता। अमरमेन वृक्षों के फन पृथक्-पृथक रख लेना है और पांच दिन बाद बहुत खोज कराते हैं किन्तु प्रच्छन्न वेश में रहने से वे इसे देव के माने पर उसकी सहायता से कंचनपुर आ जाता खोज नहीं पाते। वेश्या लोभारष्ट होकर वइरसेन का धन लेना वेश्या इमे देखकर कृत्रिम पश्चाताप प्रकट करती है। चाहती है। वह वइरसेन से उसकी धन प्राप्ति का रहस्य वहरसेन वेश्या को छलने की दृष्टि से अपने लाये हुए फून ज्ञातकर और उससे आम्रफल लेकर घर से हाथ पकडकर के सम्बन्ध मे वेश्या से कहता है कि जो इन्हे सूंघता है निकाल देती है। बइरसेन बार-बार मुंह धोता, कुरले वह युवा हो जाता है। वेश्या इन फूलो को सूघने की करता किन्तु रत्न नही गिरते । वह हताश होकर सोचता है कि स्त्रियों को गुप्त भेव प्रकट न करे। उसे चारुदत्त, इच्छा प्रकट करती है और वइरसेन जैसे ही उसे फूल यशोधर मुनि, गोपवती, रक्तादेवी आदि के इस सम्बन्ध में सुंधाता है कि वेश्या गधी बन जाती है। वइरसेन अपने उदाहरण याद आते हैं। साथ 'कए गए कपट व्यवहार का प्रतिफल देने की दृष्टि से उमे मार मार कर नगर मे घुमाता है । वेश्य के कुटम्बी चतुर्थ परिच्छेद विरोध करते हैं किन्तु उनकी एक नहीं चलती। वे हताश वहरसेन नगर के बाहर एक मन्दिर मे आता है। होकर राजा से निवेदन करते है। राजा अपनो सेना देवयोग से उमी मन्दिर मे चार चोर किसी योगी की भेजता है किन्तु लाठी के प्रहार से यह सेना को भी परामाधना से प्राप्त कथरी, लाठी और पांवड़ी तीन वस्तुए जित कर देता है। अन्त मे राजा स्वय आक्रमण करता चुराकर पाते हैं। वस्तुओ के बटवारे को लेकर झगडते है। वह जैसे ही वइरसेन को देखता है कि उसे हृदय से हए उन चोरों से बहरसेन अगडे का कारण पूछता है तथा लगा लेता है। वइरसेन भी बड़े भाई अमरसेन से लिसोरों से तीनों वस्तुओं के गुण हात कर बटवारे का का प्रसन्न हो जाता है।
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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