________________
२४, वर्ष ४०, कि० २
अनेकान्त कवि को बहुज्ञता
अखंडसीलमंडिया-पहावणग पंडिया । महाकवि रइधू काव्य, दर्शन, सिद्धान्त आचार, तयासमाणु राणउ-गुणाणभूरि राणउ ।। अध्यात्म इतिहास आदिवामियों के साथ-साथ स मुद्रिक करेइ राजु सुंदरे-अकपुणाइ मंदिरे । शास्त्र से भी सुपरिचितप्रतीत होते हैं। उन्होंने सन्म इजिण- सुहेण काल गच्छइ-जरेसु जाम अच्छइ । चरिउ मे राजा कुमार नन्द के ३२ लक्षणों का विवेचन सहा हरम्मि संठिउ-पिया जुत्तु उक्कठिउ । करते हुए बताया है कि कुमार के नख, हस्तकल, चरणाग्र,
सम्मइ०१।१५।१-१० नेत्र के प्रान्तभाग, तालु, जिह्वा एवं अधरोष्ठ ये रक्तवर्ण महावीर शैशवावस्था में है। माता-पिता ने अत्यन्त के थे नाभि स्वर एव सत्व ये तीनों गम्भीर एव प्रशस्त थे। स्नेहवश उन्हें विविध आभूषण पहिना दिए, जिससे उनका वक्षस्थल, नितम्ब एव मुख चौडे थे। उनकी देह उत्तम, सौन्दर्य और अधिक निखर उठा। कवि ने उसका वर्णन स्निग्ध एव काञ्चनवर्ण की थी, लिंग, गर्दन, पीठ और निम्न प्रकार किया है :जंघा हस्व थे। अगुष्ठो के पर्व, दाँत, केश नख और त्वक् सिरि सेहरु णिरुवमु जडिउ-कुडलजुउ सवणि मुरेण घडिउ । सूक्ष्म थे। कक्ष, कुक्षि, वक्ष, नासिका, स्कन्ध और ल नाट भालयलि तिल उगलि कुसुममाला-ककणहि हत्थु अगिणखाल उन्नत थे। इस प्रकार कवि ने सामुद्रि-शास्त्र मे निरूपित किकिणिहि मोहिय कुरंग-कडिमेहलडिकडिदेसहि अभंग । नियमो के अनुसार कुमार के लक्षणो का वर्णन किया है। तह कट्टारुवि मणि छुरियवतु-उरुहार अद्धहारिहिं सहंतु ।
सम्मइ० ३।३।६-१५ णेवर सज्जिय पाहिं पहट्ठ-अगुलिय समुद्दा दय गुणट्ठ । वर्णन चमत्कार
सम्मइ०।५।२३।५-६ वर्णनो के चमत्कार कई स्थलों पर सुन्दर छन्द मे उक्त तथ्यों के आलोक मे कोई भी निष्पक्ष आलोचक भावित हुए है : महारानी चेलना का शारीरिक, मानसिक महाकवि र इघ का सहज मे ही मूल्याकन कर सकता है। और आध्यात्मिक सौन्दर्य एक ही साथ कवि ने दिखलाया कवि ने चरित, आख्यान, काव्य, सिद्धान्त, दर्शन, आचार है। यथा :
अध्यात्म एवं इतिहास आदि विषयों पर अपभ्र श-साहित्य सुरिंदुपील गामिणी-रडिम लोयणी।
के क्षेत्र में २६ बहुमूल्य चिनाएँ प्रदान की है अत: भाषा पहुल्लकजवत्तिया-समामिणेहरत्तिया ।
और साहित्य दोनो ही दृष्टियो से रइध एक महाकवि सिद्ध जिणेसु सुत्तणिच्छया-सदूरिमुक्कमिककया ।
होते है।
युनिवर्सिटी प्रोफेसर (प्राकृत) सुदंसणेण सोहिया-सुदुग्ग णि रोहिया ।
एवं अध्यक्ष-सस्कृत-प्राकृत विभाग, सुवारिसे ण मायरी-पणाहसिक्ख दायरी।
ह० दा० जैन कालेज, आरा, बिहार-८०२३०१
सन्दर्भ-सूची १. आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर के प्रति के आधार पर। ८. रइधू गन्थावली, प्रथम भाग (भूमिका) २. डा० राजाराम जैन द्वारा सम्पादित एवं भारतीय ६. मेहेसरचरिउ, हरिवंशपुराण पासणाहचरिउ, सम्इजिण
ज्ञानपीठ दिल्ली द्वारा १६७४ ई० में प्रकाशित । चरिउ, तिसट्ठि, पउम०, सिखाल, वित्तसारु, ३. डा. देवेन्द्रकुमार जैन द्वारा सम्पादित एव भारतीय सिद्धतत्थसारु, जीवधरचरिउ, दहलक्खणजयमाल, ज्ञानपीठ द्वारा १६७४ मे प्रकाशित !
अप्पसंवोहकव्व पुण्णासवकहा, सम्मत्तगुणणिहाणकव्व, ४. आकर शास्त्र भण्डार जयपुर में सुरक्षित ।
बारह भावना, संबोह पचासिका, धण्णकुमारचरिउ, ५. डा० राजाराम जैन द्वारा रइधु ग्रन्थावली भाग २ के सुकोसलचरिउ, जसहरचरिउ, अगथमिउकहा,
अन्तर्गत सम्पादित एवं जीवराजग्रन्थमाला शोलापुर सतिणाहचरिउ, तथा पज्जुण, रत्नत्रयी, छपकम्मोवस्स, द्वारा प्रकाश्य मान।
मविस्सदत्त० करकड, उवएस रयणमाल, एव ६. सम्मइ०१०१२८१३-१५।
सुदसणचरिउ। ७. सम्मइ० ११४१२-४ ।
१०. सम्मइ० १९१६ । (ष पृ० २६ पर)