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-जिनवाणी के अथक उपासक
स्व० श्री पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के प्रति :
-श्रद्धांजलि
सिद्धान्ताचार्य स्व०५० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री जैन-विद्वत्समाज के भव्य दैदीप्यमान एक ऐसे नक्षत्र थे जो अपनी दीप्ति से धर्म की ज्योति को अपूर्व ढग से जगमगाते रहे-कभी जैन-संघ के माध्यम से, कभो जैन-सन्देश के माध्यम से, तो कभी जनता के निमन्त्रणों के माध्यम से । स्याद्वाद महाविद्यालय के माध्यम से विद्या के क्षेत्र मे जैसी क्रान्ति उन्होंने को उसकी मिसाल अन्यत्र नहीं। न जाने कितने अबोधों को उन्होने बोध दिया ? उनमें कितने हो तो आज भी उनकी जगाई ज्योति को कायम रखने में संलग्न है और समाज की सेवा मे तत्पर । सच पूछे तो पण्डित जी के बाद की विद्वत्पीढ़ी के बर्तमान अधिकांश विद्वान् पण्डित जी की जागरुकता और लगन के ही फल है। पण्डित जी ने जैसी साहित्य सेवा की वह जग जाहिर है। वे सच बात के कहने मे भी कभी चूके नही और ना ही कभी किसी से भयभीत हुए । उनके अभाव की पूर्ति सर्वथा असम्भब जैसी है।
पण्डित जी ने स्थाद्वाद विद्यालय में स्वयं अध्ययन कर बाद में लगभग ५० वर्षों से अधिक काल प्रधानाचार्यत्व में बिताया। इस बीच उन्होंने विद्यालय के लिए समाज से प्रभत धन भी जुटाया। वे जो लाए मब विद्या. लय को ही समर्पित किया-अपने पास रंच भी नहीं रक्खा। उन जैसा कृतज्ञ विद्यार्थी और कर्तव्य-परायण प्रधानाचार्य-'न भूतो न भविष्यति ।'
पूज्य बड़े वर्णी जी के शब्दों में पण्डित जी विद्यालय के प्राण थे-"विद्यालय सो पण्डित जी और पण्डित जी सो विद्यालय ।" यही कारण है कि पण्डित जी की मानसिक और शारीरिक शिथिलता के साथ ही विद्यालय भी क्षीणता को प्राप्त होता जा रहा सा दिखता है । हमे तो अब यह आशंका सी भी होने लगी है कि पूज्य वर्णी जी द्वारा लगाया और पण्डित जी द्वारा पल्लवित किया विद्यालय रूपी उद्यान कही मूरमा न जाए; या कही कोई बानर सेना इसे उजाड़ ही न दे । इसकी संभाल समाज को करना है और समाज की यह भी जिम्मेदारी है कि वह पण्डित जी के आदर्शों को सामने रखकर उन जैसे विद्वान तैयार करने का संकल्प ले।
वीर सेवा मन्दिर के समस्त अधिकारी सदस्य एवं कार्यकर्ता व 'अनेकान्त' के सम्पादक त्रय पण्डित जी के प्रति सादर श्रद्धाजलि अर्पित करते हुए उनकी प्रात्म-शान्ति की प्रार्थना करते है। पण्डित जी से बिछड़े परिवार के प्रति संस्था की हार्दिक संवेदनाएं।
-सुभाषचन्द्र जैन
महासचिव