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कामदेव प्रघुम्न २. (क) तवस्या रूप सौभाग्यगवं पवंत चूरणम् ।
(क) त्रिषस्टि में भी यही उल्लेख है परन्तु प्रद्युम्न प्रतिपक्ष बद्ध बज्रसमातेन करोम्यहम् ।।
चिरत (साधाकृत) में हरण की समस्त योजना हरि० पु. ४२/३० (ख) त्रिषष्टि ८/६/E
नारद स्वयं बनाते हैं और रुक्मिणी कृष्ण ।
पहचान सकें इसके लिए सात ताल बींधने की (ग) इक स्याली अरु वीछी खाई,
योजना रखते हैं।६४१ इक नारद अरुचलीउ रिमाई ।३४ इड रूप जु आगली, सो परणाउणारि३६ ८. त्रिषस्टिशलाकापुरुष परित के अनुसार बलराम प्रद्युम्नचरित-साधारु कवि
रुक्मिन को केशविहीन करके छोड़ देते हैं इस लज्जा(च) हो नारदादि हियह बात विचारी,
वश वह कुण्डिन नगर न लौटकर "भोजकट" प्रदेश हो नारायण आणी नारी ।
में नगरी बसाकर रहने लगता है। इहि थे रूपि जो आगली जी,
६. द्वन्द युद्धे शिरस्ङ शिशुपालस्य पातितन ।.." हो कि तण दुखि धणे विसूरै ।
रुक्णिी परणीयासी गिरी खेतक हरिः । राति दिवसि कुढि वो कर जी.
हरि० पु० ४२/६४, ६६ हो बहुडि पराया मरमन चगे।।
(क) सिरछेद्यो सिसाल को जी हो रूपकुमार साधिकर लीय प्रद्युम्न रास-ब्रह्मरायमल्ल ।
खेत पर्वति ते गयाजी, हो ब्याह रुक्मिण कसो कीयो। ३. द्वारिकापतिपत्या, सोऽभ्यनन्दमदानताम् ।
प्र. रास ५२ (क) नारुद हिन्दी आसिका जी,
(ख) उत्तरपराण में तीर्थकर नेमिनाथ के समवशरण में हो होजे किस्न तपी पटराणी ।३।।
रुक्मिणी की जिज्ञासा पर वरदत्त गणधर बताते हैंप्रद्युम्न राम-ब्रह्मरायमल्ल
"तुम्हारे पिता वासव (कुण्डल नरेश) तुम्हारा विवाह (ख) देखि रुक्मिणी बोलइ मोड,
भेषज पुत्र शिशुपाल से कराने को तत्पर हो गये तब पाटधरपि नारायपि होई । ४३।
युद्ध को चाह रखने वाले नारद ने यह वृत्तांत श्रीकृष्ण प्रद्युम्नचरित-कवि साधारु
को सुनाया । अतएव नारायण ने छः प्रकार की सेना (ग) त्रिषष्टि ८/६/१०
के साथ जाकर शिशुगल का वध किया और तुम्हें ४. "विलिख्य पट्टके स्पष्ट क्पिण्या रूपमभ्द्तम ।
महादेवी के पद पर नियुक्त किया। हरये दर्शयादगत्वा त्रिसंमोहकारपम ।
उत्तर पुराण ६१/३५५-३५६ हरि० पु० ४२/४५
(ग) त्रिशस्टि० में शिशुपाल के पलायन का वर्णन है वध ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित में नारद से रुक्मिणीसौन्दर्य की चर्चा सुनकर श्रीकृष्ण विवाह प्रस्ताव
का नहीं। रुक्मिन रुक्मिणी का भाई के पास भेजते हैं जिसे वह
१०. निरूप्याक्मि गी सत्यादेवताभव रूपिणीम । यह कहकर अस्वीकृत कर देता है कि "कृष्ण गोप है देवतेयामितिध्यात्वा विक्रीर्य कुसुमांजलिम ।। व नीचे कुल में उत्पन्न है"। तदुपरांत ही श्रीकृष्ण निपत्य पादयोस्तस्याः स्व सौभाग्यम यावत । रुक्मिणी हरण की सोचते हैं।
विपस्पस्यतुदोर्भाग्यमी व्यशिल्यकलंकिता ।। ६. हरिवंश पुराण में बहन के नाम का उल्लेख नही है
हरि० पु. ४३/१३-१४ परन्तु त्रिषष्टि में उसका नाम "धति" और साधारु- (क) त्रिषष्टि के अनुसार श्रीकृष्ण उद्यान में रखी "श्री" कृत, प्रद्युम्न चरित में "सुरसुन्दरी" है।।
की मूर्ति को हटाकर उसके स्थान पर रुक्मिणी को ७. शुक्लाष्टभ्यां हिमापत्य वदि माधव । रुक्मिणीम । स्थापित कर देते हैं अतः उसे ही देवी लक्ष्मी जान; स्वमैत्यहरसि छिप्रं तवेयमविसंशयम । हरि०पु०४२/६१ सत्यभामा अपने सौभाग्य की कामना करती है।