________________
प्राच्य भारतीय भाषाओं में पाश्र्वनाथ चरित की परम्परा
पृथिवीराज चौहान की माता ने स्वय पृथिवीराज को उन्हे कभी तो मारते है और कभी टेढ़ी-मेढ़ी आंखें दिखाते सुनाई थी। उसके अनुसार राज्य की स्थिरता के लिए है अथवा कभी वे उनका हाथ, पैर अथवा सिर ही तोड़ एक ज्योतिषी के आदेशानुसार जिस स्थान पर कीली गाडी देते है। किन्तु मै तो ठहरा सीधा, सादा, सरल स्वभावी, गई थी, वह स्थान प्रारम्भ मे "किल्ली के नाम से प्रसिद्ध अन: मैं किसी के घर जाकर उससे नहीं मिलना चाहता। हुप्रा, किन्तु उस कील को ढीला कर देने से उस स्थान का नाम 'दिल्ली' पड़ गया, जो कालान्तर में दिल्ली के
किन्तु अल्हण साहू के पूर्ण विश्वास दिलाने एवं बारनाम से जाना जाने लगा। १५वी सदी तक दिल्ली के ११ बार आग्रह करने पर कवि साहू नट्टल के घर पहुंचा तो नामो में से दिल्ली भी एक नाम माना जाता रहा जैसा
। जैसा वह उसके मधुर-व्यवहार से बड़ा सन्तुष्ट हुआ। नट्टल ने कि "इन्द्रप्रस्थ-प्रबन्ध (श्लोक संख्या १४-१५) मे एक
कवि को प्रमुदित होकर स्वयं ही आसन पर बैठाया और उल्लेख मिलता है :
सम्मान-सूचक ताम्बूल प्रदान किया। उस समय नट्टल एवं शक्रपन्धा इन्द्रप्रस्था शुभकृत् योगिनीपुर ।
श्रीधर दोनो के मन में एक साथ एक ही जैसी भावना दिल्ली ढिल्ली महापुर्या जिहानाबाद इष्यते ।।
उदित हुई। वे परस्पर मे सोचने लगे कि :-- सुषेण महिमायुक्ता शुभाशुभकरा इति ।
ज पुव जम्मि पविर इउ किंपि इह विहिवसेण परिणवइ तंपि एकादश मित नामा दिल्ली पूरी च वर्तते ।।
[शमा
___अर्थात् "हमने पूर्वभव मे ऐमा कोई सुकृत अवश्य इस प्रकार पासणाहचरिउ में राजा अनगपाल, राजा हम्मीर-वीर एव ढिल्ली के उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टि से
किया था, जिसका आज यह मधुर फल हमे मिल रहा है।" बड़े महत्त्वपूर्ण है। इन सन्दर्भो तथा समकालीन साहित्य साह नट्टल के द्वारा आगमन-प्रयोजन पूछ जाने पर एव इतिहास के तुलनात्मक अध्ययन से मध्यकालीन भार- कवि ने उत्तर में कहा- "मै अल्हण साहू के अनुरोध से तीय इतिहास के कई प्रच्छन्न अथवा जटिल रहस्यो का आपके पास आया है। उन्होंने मुझसे आपके गुणों की चर्चा उद्घाटन सम्भव है।
की है और बताया है कि आपने एक 'आदिनाथ-मन्दिर' का
निर्माण कराकर उस पर "पचरगे झण्डे" को फहराया है। आश्रयदाता नट्टल साहू--
आपने जिस प्रकार उम भव्य मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई है, जैसा कि पूर्व मे लिखा जा चुका है कि प्रस्तुत रचना
उसी प्रकार आप एक "पार्श्वनाथ चरित" की रचना कराकी आद्य-प्रशस्ति के अनुमार कवि अपनी 'चदापहचरिउ'
कर उसे भी प्रतिष्ठित कराइए जिससे आपको पूर्ण सुखकी रचना-समाप्ति के बाद असख्य कार्य-व्यस्त ग्रामो वाले
समृद्धि प्राप्त हो सके तथा कालान्तर में जो मोक्ष-प्राप्ति हरयाणा-प्रदेश को छोड़कर यमुना नदी पारकर ढिल्ली
का कारण बन सके। इसके साथ-साथ आप चन्द्रप्रभ स्वामी आया था, तथा वहा राजा अनगपाल के एक मन्त्री साहू
की एक मूर्ति अपने पिता के नाम से उस मन्दिर में प्रतिअल्हण से उसकी सर्वप्रथम भेट हुई। साहू अल्हण उसक
ष्ठित कराइए" । कवि के कथन को सुनकर साहू नट्टल ने 'चदपहचरिउ' का पाठ सुनकर इतना प्रभावित हुआ कि ।
तत्काल अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। उसने कवि को नगर के महान् साहित्य रसिक एव प्रमुख सार्थवाह साहू नट्टल से भेट करने का आग्रह किया, किन्तु कुछ भ्रान्तियांकवि बडा सकोची था। अत: उसने उनसे भेट करने की कुछ विद्वानो ने 'पासणाहचरिउ' के प्रमाण देते हुए अनिच्छा प्रकट करते हुए कहा कि- हे साहू, ससार में नट्ठल साहू द्वारा दिल्ली में पार्श्वनाथ मन्दिर के निर्माण दुर्जनों की कमी नही, वे कूट-कपट को ही विद्वत्ता मानते कराए जाने का उल्लेख किया है" और विद्वज्जगत में अब है, सज्जनो से ईष्या एव विद्वेष रखते है तथा उनके सद्- लगभग वही धारणा बनती जा रही है, जबकि वस्तुस्थिति गुणों को असह्य मानकर उनसे दुर्व्यवहार करते है। वे उससे सर्वथा भिन्न है । यथार्थतः नट्टल से दिल्ली में पार्व,