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८, वर्ष ३६, कि०२
अनेकान्त
कालादि की उपेक्षा का ज्ञान करके समस्त वस्तुओं का परामर्श दिया है । आचार्य का कथन है कि राजा को धान्य मूल्य निर्धारित करे जिससे व्यापारी लोग मूल्य बढ़ाकर एव लवण का संग्रह करना चाहिए क्योंकि यही दो वस्तुएँ प्रजा को निर्धन न बना सकें।
संकट काल में प्रजा और सेना को जीवित रखती हैं"। इसके माथ ही राजा को उन व्यापारियों की परीक्षा उनका कथन है कि अन्न संग्रह सब संग्रहों से उत्तम"। भी करते रहना चाहिए जो बहमूल्य वस्तुओं में मिलावट इसका कारण यही है कि अन्न के कारण प्रजा और सेना करते है। दो प्रकार की तुना रखते हो तथा नापने तौलने की जीवन यात्रा चलती है। धान्य संग्रह न करने से होने के बाटो आदि मे कमी-वेशी करते हो। यदि व्यापारी वाली हानि की ओर भी आचार्य ने सकेत किया है। इस लोग परस्पर की ईर्ष्या के कारण वस्तुओ का मूल्य बढ़ा संबंध में सोमदेव ने लिखा है कि जो राजा अपने देश में देवें तो ऐसी स्थिति मे राजा का यह कर्तव्य हो जाता है धान्य-सग्रह नही करता और अधिक व्यय करता है तो तो वह बढाये हुए मल्य को व्यापारी वर्ग से छीन ले और उसके राज्य मे सदैव दुर्भिक्ष रहा करता है"। अतः राजा उन्हें केव न उचित मल्य ही दे"। यदि किसी व्यापारी ने को शरद् और ग्रीष्म ऋतु मे दोनो फसलों के समय धान्य किमी की बहुमूल्य वस्तु को धोखा देकर अल्प मूल्य मे संग्रह कर लेना चाहिए। यह धान्य दुभिक्ष के समय क्रय कर लिया है तो राजा विक्रेता की बहुमल्य वस्तु पर प्रजा को भी उचित मूल्य पर दिया जा सकता है। इस अपना अधिकार कर ले एव विक्रेता को उतना मूल्य दे, प्रकार जनता सकट काल का सामना आसानी से कर जितना कि उसने क्रेता को दिया था । अन्न संग्रह करने लेती है। वालो को आचार्य सोमदेव ने राष्ट्र कडकों की सूची में इस प्रकार नीतिवाक्यामत में राज्य की आर्थिक रखा है और उन पर पूर्ण नियंत्रण रखने का राजा को स्थिति को सदढ़ बनाने, कोष वृद्धि करने, व्यापार एवं आदेश दिया है। गजा को उनकी उपेक्षा कभी नही वाणिज्य पर नियत्रण रखने एवं वस्तुओं का मूल्य निर्धाकरनी चाहिए और उनको कठोर दण्ड देना चाहिए, क्योकि रित करने के सम्बन्ध मे बहुत उपयोगी विचार व्यक्त किए वे लोग अन्न संग्रह करके मूल्यों में वृद्धि कर देते है जिससे गये हैं। सोमदेव ने कृषि, व्यापार एवं पशुधन को राज्य जनता को अनेक प्रकार के कष्टो का सामना करना पड़ता की आर्थिक समृद्धि की आधारशिला बतलाया है। इससे है। ये लोग अन्न-सकट के उत्पन्न करने वाले है। अतः स्पष्ट होता है कि एक धर्माचार्य होने के साथ-साथ आचार्य राजा को सदैव इनसे मावधान रहना चाहिए। आचार्य सोमदेव एक बहुत बड़े अर्थशास्त्री भी थे। उनके उपर्युक्त मोमदेव का कथन है कि जो राजा अन्यायो की उपेक्षा आर्थिक सिद्धान्त आधुनिक युग के लिए भी महान उपयोगी करता है उसका राज्य नष्ट हो जाता है। इसके अति- है। राज्य की सुदृढ आर्थिक ब्यवस्था के लिए इनका अनुरिक्त अ चार्य सोमदेव ने दुर्भिक्ष तथा सकट काल का करण अत्यन्त आवश्यक है। मामना करने के सम्बन्ध में भी राजा को बहुत सुन्दर
-जैन कालिज, बड़ौत संदर्भ-सूची
(नीतिवाक्यामृत) १. २१, २. २।२, ३.२१४, ४. ३१५, ५. ३।६, ६. २११५, २५.१८, १३, २६. ८, १४, २७. ८, २५, २८.८, १९६७ ७. २१११,
२६. १८,१८, ३०. ८, १९, ३१. ८, २१, ३२. १८, २७ ६. २११४, १०.२११७, ११. २११८, १२. १६, १८ । ३३. १८, ७१, ३४.१८, ६६, ३५.८,६। १३.८, ५, १४.१४, २६, १५. २१, ६, १६. १७, ५०, ८. यो विपदि सपदि च स्वामिनस्तंत्राभ्युदयं कोशयतीति १७. ६, ५, १८. ध, २४, १६. १६, १५, २०.८, ११-१२, कोशः। २१. १६,२१, २२. ८, १७, २३. ८, १५, २४. १८, १६,
--महाभारत शान्तिपर्व ६७,२३-२४