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________________ णायकुमार चरित में प्रतिपादित धर्मोपदेशा कि बिना जीव के शब्द की प्राप्ति नही हो सकती, जैसे समझाते हुए कहा कि यह आवश्यक है कि मोक्ष के बिना सरोवर के नया कमल और बिना गाय के दूध । उपदेशक हिंसा और तृष्णा से मुक्त रहे। अत: बिना पुरुष के वेद रचना सम्भव नहीं है। उन्होने यह भी कहा कि ज्ञान और मोक्ष की बातें तभी प्रभावशील होती है जब वे आचरण मे उतरती हैं। सच्चा धम धार्मिक मान्यताओ की विवेचना करने के उपरान्त जो स्वय ही कामनियो के कटाक्ष का शिकार हो जाता है है ऐसा उपदेशक यदि ज्ञान का भी क्यो न उपदेश दे तो जब किसी ने प्रान किया कि फिर वह यथार्थ धर्म कौनसा होगा जिसका हम पालन करे। इसके उत्तर मे मुनियो ने भी वह उपदेश प्रभावहीन ही रहता है। कहा कि काम भोग की इच्छा और स्वर्ग प्राप्ति की इस प्रकार कवि पुष्पदन्त की कृति णायकुमार चरिउ कामनाए जैसे परस्पर विरोधी है, ठीक इसी प्रकार जीव केवल चरित काव्य या कथा मात्र नही है कवि ने कथा के घात और धर्म-पालन दोनो मे सम्बन्ध है, वे दोनो साथ माध्यम से प्रस्तुत कृति में जीवों को वे दुःखी क्यों हैं ? साथ नहीं हो सकते । सच्चा धर्म जीव घात से रहित है। दुख स उन्ह कस छुटका दुख से उन्हे कैसे छुटकारा मिले "ऐसे कल्याणकारी तथ्यों का भी समावेश किया है। यह धर्म दर्शन-ज्ञान-चारित्रमयी है। सच्चा दर्शन उन्ही जीवो को प्राप्त होता है जो न केवल धर्मोपदेश धर्मोपदेशो मे जीव कल्याणार्थी जहां एक ओर मोह र अमित उपदेश मनका कषायो का उपशमन करते और अन्यान्य मतो का सक्षेप से उल्लेख है, दूसरी ओर है और सोलह भावनाओ को भाते है। ऐसे लोग अष्ट धर्म का स्वरूप भेद और गृहस्थी के प्रमुख कर्म दान का मूल गुण रूपी वैभव को भी प्राप्त कर लेते है। देव शास्त्र भी आगमानुसार वर्णन उपलब्ध है। ससारिक-स्थिति को गुरु तीनो मूढताओं और जाति कुलादि अष्ट मदो से मुक्त दर्शा करके कवि ने ससार से भयभीत जनो को संसार का होकर वे अनायतनो की भी सेवा नहीं करते। तप से कारण पाप और पापो के हेतु मन तथा इद्रियो को वश कर्म-मल को जला, केवल-ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जाते करने का उपाय भी बताया है। धर्म से ऐसा कौनसा पाप हैं। ऐसे तपस्वियो का जहां वास रहा है वे पवित्र तीर्थ है जो क्षय न हो। इस प्रकार धार्मिक सक्षिप्श किन्त हो गये है। सारगभित तथ्यों से महित इस कृति को देखकर यदि हम धर्मोपदेशक यह कहें कि कवि ने "गागर मे सागर भर दिया है" तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उपदेशक कैसा हो? समय-समय पर मुनियो और सन्तो ने अपने उपदेशों के माध्यम से इस सम्बन्ध मे -जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीर जो 'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण प्रकाशन स्थान-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली-२ प्रकाशक-वीर सेवा मन्दिर के निमिस श्री बाबूलाल जैन, २, अन्सारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-२ राष्ट्रीयता-भारतीय प्रकाशन अवधि-त्रैमासिक सम्पादक-श्री पपचन्द्र शास्त्री, वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ राष्ट्रीयता-भारतीय मुद्रक-गीता प्रिंटिंग एजेसी डी-१०५, न्यू सीलमपुर, दिल्ली-५३ स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ मैं बाबूलाल जैन, एतद् द्वारा घोषित करता हूं कि मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपयुक्त विवरण सत्य है। बाबूलाल जैन प्रकाशक
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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