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________________ जैन विद्याओं में शोध : एक सर्वेक्षण सारणी २. जैन विद्या शोध क्षेत्र, १९८३ में एवं ऐतिहासिकता का भान होता है। संभवत: न्याय, क्षेत्र प्रतिशत क्षेत्र प्रतिशत दर्शन, विज्ञान आदि विषय किंचित् गहन अध्ययन, मनन १. उत्तर प्रदेश ३५.६० . हरियाणा २.१० और श्रम चाहते हैं जो अब विराम होता जा रहा है। २. बिहार १५.१५६. पंजाब ०.६० यद्यपि इन क्षेत्रों में कुछ उपाधि-निरपेक्ष काम हो रहा है, ३. मध्यम प्रदेश १०.०२ १०. बगाल फिर भी इस शोध को प्रेरित करने के उपाय करना ४. महाराष्ट्र ६.८० ११. कर्नाटक २.३० चाहिये। इसके लिए यह आवश्यक है कि इन विषयों से ५. राजस्थान ७.७ १२. केरल सम्बन्धित ग्रन्थों का हिन्दी/अंग्रेजी में अनुवाद किया जावे। ६. गुजरात ५.६० १३. आंध्र ०६३ दूसरा संभावित बाधक कारण वर्तमान जैन शोध निर्देशकों, ७. दिल्ली ४.८० १४. तामिलनाडु २.८० विद्वानो के अधिकांश का ललित-साहित्य-आधारित होना १५. उड़ीसा ०.२३ हो सकता है। इस विषय से अनेक विद्वान भाषाओं और विदेशों की जैन विद्या शोध को समाहित किया जावे, तो भाषा विज्ञान तक तो आ गये हैं, पर इससे आगे जाने वहां अनेक देशों मे कुल प्रतिशतता ६.५ है । यह उत्साह योग्य शिष्य ही इन्हें नही मिलते । सम्भवतः इसी कारण और वर्धक तथ्य है। अनेक व्याकरण और दर्शन के आचार्य व्यापारी बन गये? (स) शोध दिशाय यह प्रसन्नता की बात है कि जहां कुछ क्षेत्रों में शोध १९७३ के समीक्षण मे व्यक्त किया गया था कि जैन संख्या में कमी आई है, वहीं जैन विद्याओं में वर्णित विद्या शोधो की प्रमुख दिशा ललित साहित्य ही है। यह आधुनिक विषयो से सम्बन्धित शोधों की ओर शोधार्थियों अब भी सत्य है, यद्यपि इसकी प्रतिशतता १६७३ के ५० की रुचि बढ़ी है। इनमे इतिहास (३३), राजनीति से घट कर १९८३ मे ३६ रह गई है। यह शुभ लक्षण (६), समाज शास्त्र (३), मनोविज्ञान (२), भूगोल है और इस प्रवत्ति को बढ़ना चाहिये । यह कमी अन्य (१) एवं भाषिक विषय (३४) मुख्य है। ये शोधे भारतीय दिशा की शोधो के रूप में प्रतिफलित हुई है जैसा विद्याओ के विकास को समझने के लिए 'मील के पत्थर' सारणी ३ से प्रकट होता है। आलोच्य दशक में कुछ ऐसे सिद्ध हो रही हैं जिससे इस ओर शोध प्रवृत्ति बढ़ रही विषयों की शोधों में भी कमी आई है, जो चिन्तनीय है। है। इन क्षेत्रो मे विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध सामग्री को इन विषयों एकत्र करने के विवरणात्मक प्रयास अधिक हो रहे हैं, पर सारणी ३. १९७३-८३ के दशक मे जैन विद्या शोध-विषयो मे हानि-वृद्धि ये ही उत्तरवर्ती गहन अध्ययन के आधार-बिन्दु बनेंगे। विषय प्रतिशत हानि विषय प्रतिशत वृद्धि ऐसा प्रतीत होता है कि पुरातन धर्म, नीति और आचार १. साहित्य ११.०० १. आधुनिक की ओर वर्धमान उपेक्षाभाव को निरस्त करने के लिए विषय अनेक शोधकर्ता जैन विद्याओं में समाहित इन विषयो पर २. न्याय/दर्शन ४.०० २. धर्म, नीति, उपलब्ध सामग्री का आलोचनात्मक या तुलनात्मक अध्ययन आचार ४.५० करने में प्रवृत्त हो रहे है। इनसे प्राचीन मान्यताओं का, ३.विज्ञान १.०० ३. भाषा ४.५० अनेक प्रकरणों में, समर्थन और व्यापकीकरण ही हुआ ४. कला २.५० ४. व्यक्तिस्व है। इन विषयों पर अभी पर्याप्त जैन साहित्य उत्खनन कृतित्व हेतु बचा है और शोध की यह गति अविरत रहना ५. विविध ५. तुलनात्मक चाहिये। इसी प्रकार तुलानात्मक अध्ययन और व्यक्तित्व२.२० अध्ययन २.७० कृतित्व की दिशा में शोध-वृद्धि सराहनीय है। इसे भी २०.७० २०.७० गतिशील बनाये रखने की आवश्यकता है। (क्रमशः) की शोधों से ही जैन विद्या के अनेक क्षेत्र को मौलिकता -गर्ल्स कालेज, रीवा
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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