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महाकवि अहंदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
का जीवन चरित्र अंकित है। कथा मूलत: महापुराण से लोंच पञ्चाश्चर्य, आहारदान आदि का वर्णन है यहीं ली गई है। कवि ने कथानक को मूलरूप में ग्रहण कर दीक्षा कल्याणक का भी वर्णन है। नवम सर्ग का नाम प्रांसगिक और अवान्तर कथाओं की योजना नहीं की है। भगवत्तपो वर्णन है जिसमें मुनिसुव्रत नाथ की तपस्या का इस पर एक प्राचीन संस्कृत टीका प्राप्त है जिसे ग्रंथ के वर्णन है अन्तिम दशम सर्ग से भगवान की जीवन और सम्पादक पं० हरनाथ द्विवेदी ने अहंदास कृत होने की विदेह मुक्ति का वर्णन में इसी कारण इसका नाम 'भगवसम्भावना प्रकट की है। टीका में वर्णनानुसार सर्गों के दुभय-मुक्ति वर्णन है । इस प्रकार तीर्थंकर मुनिसुव्रत नाथ नाम दिये गए हैं। काव्य में कुल ४.८ श्लोक हैं। डा० का समग्र चरित्र अत्यन्त मनोरम शैली में उक्त महाकाव्य श्यामशरण दीक्षित इसे पौराणिक महाकाव्य मानते हैं। हममें में चित्रित है। धार्मिक भावनाओं का प्राधान्य है। स्वयं अहंडास ने इसे तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों जिन स्तुति कहा है। इसके नायक तीर्थकर मुनि सुखत में से २०वें तीर्थंकर हैं । 'मुनि सुवत काव्य' के अतिरिक्त नाथ धीर प्रशान्त है। महाकाव्य के लक्षणानुसार इसमें
अन्य कोई महाकाव्य उनके चरित्र पर लिखा सम्भवतः मंगलाचरण, सज्जन प्रशंसा तथा दुर्जन निन्दा है । अंगीरस
उपलब्ध नहीं है। शान्त है। अंग रसों मे शृंगारादि पूर्णरूपेण प्रस्फुटित हुए हैं।
भव्यजनकण्ठाभरण : इसका कथानक ऐतिहासिक है तथा चार पुरुषार्थों में
महाकवि अहंद्दास की प्रतिभा का तीसरा निदर्शन से धर्म और मोक्ष-प्राप्ति इसके फल हैं। संध्या, सूर्योदय, "
'भव्यजनकण्ठाभरण' है जो सचमुच मे भव्यजीवों के द्वारा चन्द्रोदय ऋतु आदि का विस्तृत वर्णन यहां हुआ है। सभी
कण्ठ में आभरण रूप से ही धारण करने योग्य है । महाकाव्यात्मक गुणो से विभूषित इस काव्य की सर्गानुसार
कवि ने २४२ पद्यों में देव, शास्त्र, गुरू, सम्यग्दर्शन, सम्यकथा वस्तु निम्न है
ग्यान, सम्यक्चारित्र का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत किया है। 'भगवभिजन वर्णन' नामक प्रथम सर्ग में मगला. भव्यजनकण्ठाभरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि चरणोपरान्त कहा गया गया है कि जम्बूद्वीपस्थ आर्यखंड उसमें कहीं भी व्यर्थ विस्तार नहीं हैं, हां जितना आवश्यक में मगध नाम का एक देश है । 'भगवज्जननी जनक वर्णन' है, उतना छोड़ा भी नही गया है । संक्षेप में आवश्यक दूसरे सर्ग में राजगृह के शासक सुमित्र और उसकी रानी बात को निबद्ध करना अहंदास की अपनी विशेषता है। पद्मावती का सौन्दर्य चित्रण है। 'भगवत् गर्भावतार वर्णन' अन्तिम पद्य में 'अहंद्दास' नाम आने से इसमें कोई संशय नामक तीसरे सर्ग में कहा गया है कि रानी पद्मावती ने नही कि यह कृति अहंदास को ही है। इसके साथ ही, सोलह स्वप्न देखे अनन्तर श्रावण कृष्ण द्वितीया को श्रवण जैसा कि हम पीछे बता चुके हैं, पुरूदेव चम्पू तथा मुनि नक्षत्र तथा शिव योग में गजाकरा से मुनि सुव्रतनाम सुब्रत काव्य की तरह भव्यजनकण्ठाभरण के पद्य २३६ में तीर्थकर ने पद्मावती के शरीर मे प्रवेश किया देवताओं भी आशाधर का नाम बड़े सम्मान के साथ अहंदास ने ने गर्भ कल्याणक मनाया ।
लिया है। भव्यजनकण्ठाभरण पर समन्तभद्र के रत्नकरण्ड . भगवज्जननोत्सव वर्णन' मे देवताओ द्वारा पौराणिक श्रावकाचार का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। और जैन परस्परा प्राप्त जन्म कल्याणक में इन्द्राणी द्वारा काव्य के प्रथम पांच पद्यों में कवि ने पंच परमेष्ठी जिनेन्द्र को लेने के लिये अन्तःपुर मे जाने का वर्णन है। को नमस्कार करने के बाद भव्यजनकण्ठाभरण के निर्माण 'भगवन्मन्दरानयन वर्णन' नामक पाचवें सर्ग तथा 'भग- की प्रतिज्ञा की है। आगे काव्य का प्रारम्भ करते हुए एक वज्जन्माभिषेक वर्णन' में सुमेर पर्वत की पाण्डुक शिला पर ही पद्य के द्वारा बड़े सुन्दर ढंग से ग्रन्थ मे वर्ण्य विषय का अभिषेक का तथा 'भगवत्कौमारयौवनदारकर्म साम्राज्य निर्देश कर दिया है। तदनन्तर तर्कपूर्ण शैली में आप्त की वर्णन' सर्ग मे नामानुरूप कुमारावस्था और साम्राज्य का परिभाषा दी गई है । १२बें पद्य में कहा है कि यदि सब वर्णन है।
देशों और कालों को जानकर आप कहते हैं कि प्राप्त नही भगवत्परिनिष्क्रमण वर्णन सर्ग में भगवान के केश
(शेष पृ० २६ पर)