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________________ 'शाहनामा-ए-हिन्द' में जैनधर्म [ স্বাম-কী লকায় 'शाहनामा-ए-हिन्द' के रचयिता ६१ वर्षीय फरोग नक्काश नागपुर की मोमिनपुरा नामक बस्ती में रहते हैं। आपने 'शहनामा-ए-हिन्द शीर्षक से हिंदोस्तान के इतिहास को अशआहों (शेरों) में ढाला है। दुनिया में यह अपने किस्म का पहला काम है। यख सम्पूण इतिहास ईसा पूर्व ६ठी शती से लेकर आज तक का है। शाहनामा-ए-हिन्द में कुल ३० हजार शेर होंगे, जिनमें से कुछ लिखना अभी बाकी हैं। फरोग नक्काश को इस कार्य के स्वरूप अनेक संस्थाओं ने, "फिरदौसी-ए-हिंद", "कौमी एकता" आदि उपाधियों से नवाजा है। पेश है 'शाहनामा-ए-हिन्द' (जो उर्दू में लिखा है) से जैन धर्म से संबंधित शेर, जो उनकी अनमति से हिंदी में डा. प्रदीप शालिग्राम मेश्राम पेश कर रहे हैं : एक अर्मा बाद ही इस खाक' पर वो दौर भी आया। कई अदयान' का परचम' बड़ी तेजी से लहराया ॥१॥ बहोत से तायफो में वट गए थे मजहबी फिरके। अवामन नास मे होते थे इन अद्यान के चर्चे ॥२॥ इन्हीं फिरकों में, दो फिरके हैं ऐसे वाकई बरतर। हवादिस का कसौटो पर जो उतरे है खरे बनकर ॥३॥ है जिनमें सबसे अव्वल' जैन मजहब बौद्ध है सानी"। हई दाखिल नए एक दौर में तारीखे' इंसानो ॥४॥ बहत से तेगबन फिरके पुरानो रस्म विदअत से"। हर ताइव", चले नेकी की जानिब शौके रगबत से" ॥५॥ ये क्षत्रो कोम, ज्यूं-ज्यू इस तरफ होती गई रागिन । हुई मगलब" फिक्र विरहमन जैनो हुए गालिब" ॥६॥ सबब इन मजहबों के फूलने-फलने का यह भी था। के इनके अब मे मजबूत था एक हुक्मरा तबका ॥७॥ यही थो वजह जिससे दोनों मजहब खबतर फैले । सनातन-धर्म को इनकास" जिनकी वजह से पहुंचे ॥८॥ जैन धर्म का सहर तीन (तीन रत्न) मुशावेह हैं बहोत काफी ये दोनों धर्म आपस में । बहोत कम फर्क है तरकीबे अद्याने मुकद्दस" मे ॥१॥ ये साबित हो चुका है जैन मजहब ही पुराना है ।। श्री गौतम से पाश्र्वनाथ का पहले जमाना है ॥२॥ दिगर इसके अकीदा" जैन वाले ये भी रखते हैं। के तेईस तीर्थकर, वर्धमा५ से पहले गुजरे हैं ॥३॥ हैं पहले पार्श्वनाथ जी इस धर्म के तेइसव शंकर । दुखी जीवन को सुख पहुंचाने वाले मोहसिनो' रहवर ॥४॥
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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