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________________ बोन गईन परमागमस्यबीजं निषिडजात्पन्धसिम्पुरविधानम् । सकलमयविलसिताना विरोधमपनं नमाम्बनेकान्तम्॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ बरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण संक्त २५१०, वि० स०२०४० वर्ष ३७ किरण अक्टूबर-दिसम्बर १९९४ अनेकान्त-महिमा अनंत धर्मणस्तत्वं पश्यन्ती प्रत्यगास्मनः । अनेकान्तमयीमूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ औरण विणा लोगस्स वियवहारो सम्बहा ण रिणब्बडा। तस्स भुवनेकगुरुणो णमो अरणेगंतवायस्स ॥' परमागमस्य बीजं निषिद्ध जात्यन्ध-सिन्धुरभिषानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥' महमिच्छादसण समूह महियास प्रमयसारस । जिरणबयणरस भगवनो संविग्गसहाहिगमस्स ॥' परमागम का बीज जो, जैनागम का प्रारण। 'अनेकान्त' सत्सूर्य सो, करो जगत कल्याण ॥ भनेकान्त' रवि किरण से, तम प्रज्ञान विनाश । मिटे मिथ्यात्व-कुरोति सब, हो सक्षम-प्रकाश ॥ अनन्त धर्मा-तत्वों अथवा चैतन्य-परम-आत्मा को पृथक-भिन्न-रूप दर्शाने वाली, अनेकान्तमयी मति--जिनवाणी, नित्य-त्रिकाल ही प्रकाश करती रहे हमारो अन्तज्योति को जागृत करती रहे। जिसके बिना लोक का व्यवहार सर्वथा ही नहीं बन सकता, उस भुवन के गुरु-असाधारणगुरु, अनेकान्तवाद को नमस्कार हो। जन्मान्ध पुरुषों के हस्तिविधान रूप एकांत को दूर करने वाले, समस्त नयों से प्रकाशित, वस्तुस्वभावों के विरोधों का मन्थन करने वाले उत्कृष्ट जैन सिद्धान्त के जीवनभूत, एक पक्ष रहित अनेकान्तस्यावाद को नमल्कार करता हूं। ___मिप्यादर्शन समूह का विनाश करने वाले, अमृतसार रूप; सुखपूर्वक समझ में आने वाले; भगवान जिन के (अनेकान्त गभित) बचन के भद्र (कल्याण) हों।
SR No.538037
Book TitleAnekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1984
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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