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________________ डिग्गी (राजस्थान) के दि० जैन मन्दिर में उपलब्ध हिन्दी का प्रथम पद्मपुराण 0 डा. कस्तूर चन्द कासलीवाल डिग्गी (राजस्थान) के दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र आचार्य रविषेण का पद्मपुराण एव राजस्थानी भाषा के भण्डार को मुझे अभी १६, १७, १८ जून, ८३ को देखने महाकवि ब्रह्म जिनदास का रामरास के नाम उल्लेखनीय एव उनकी सूची बनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह हैं जिनमें रामचरित के (एक भाग को छोड़कर) अतिरिक्त देखकर बडी प्रसन्नता हुई कि वहाँ मन्दिर मे प्राचीन हस्त- सभी ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है। लिखित ग्रन्थो का अच्छा मग्रह है । शास्त्र भण्डार को डिग्गी के शास्त्र भण्डार से प्राप्त मुनि सभाचन्द का देखते समय अपभ्र श एवं हिन्दी की कितनी ही अज्ञात पद्मपुराण एक अज्ञात एव अचर्तित कृति है। महाकवि एव अर्चाचत कृतियां प्राप्त हई जिनमे प. महाराज का तुलसीदास की मृत्यु के केवल ३१ वर्ष पश्चात निबद्ध यह बुद्धि रसायन, धनपाल के हिन्दी पद एव गीत, भट्रारक कृति सचमुच रामकथा सम्बन्धी जैन कृतियों में अत्यधिक महेन्द्रकीर्ति के हिन्दी पद, ऋषि दीपायन का महावीर महत्त्वपूर्ण है । डिग्गी से लौटने के तत्काल पश्चात् मैंने डॉ. गीत, प० खुशालचन्द काला की स्वय के द्वारा लिपिबद्ध कामताप्रसाद जैन, डा. नेमीचन्द शास्त्री, डा०प्रेमसागर पाण्डुलिपि, नाटक ममयसार की सवत १६६ की पाण्ड- जैन एव प० परमानन्द जी शास्त्री द्वारा लिखित द्विन्दी लिपि, मुनि समाचन्द का पदपुराण जैसी बीसौं कृतियो के जैन साहित्य के इतिहास पर आधारित पुस्तके देखी नाम उल्लेखनीय है जिन पर विभिन्न लेखो द्वारा प्रकाश लेकिन किसी भी विद्वान द्वारा मुनि समाचन्द के हिन्दी डाला जायेगा । डिग्गी के शास्त्र भण्डार में कभी ३००- (पद्य) मे निबद्ध 'पद्मपुराण' का उल्लेख नही किया । ४०० ग्रन्थो का अच्छा संग्रह था। लेकिन हमारी ग्रन्थो ऐसे विशालकाय ग्रन्थ की अन्य पाण्डुलिपि नही मिलना की सुरक्षा के प्रति उदामीनता के कारण १००-१५० ग्रन्थ भी आश्चर्यजनक है। अपूर्ण एवं खराब हो गये । फिर भी शास्त्र भण्डार में जैन समाज मे पद्मपुराण के स्वाध्याय की ओर डिग्गी जैसे कस्बे को देखते हुये शास्त्रो का अच्छा सग्रह अत्यधिक रुचि देखी जाती है। गत २०० वर्षों से पण्डित है । जिनमे कितनी ही प्राचीन एव महत्त्वपूर्ण पाण्डु दौलतराम कासलीवाल के पद्मपुराण भाषा का सबसे लिपिया भी हैं। अधिक स्वाध्याय हुआ है। प० दौलतराम जी के पूर्व राम और सीता के जीवन पर जैनाचार्यों एव जैन प० खुशालचन्द काला ने भी सवत् १७८४ मे हिन्दी विद्वानों ने अनेक कृतिया लिखी है। पुराण, चरित कथा पद्य में पद्मपुराण लिखा था, जिसकी कितनी ही पाण्डएव काव्य की अन्य विधाओ के नाम से लिखे गये राम लिपियाँ राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारो मे मिलती है, कथा पर आधारित अनेक ग्रन्थ जैन शास्त्र भण्डारों मे लेकिन फिर भी वह समाज में लोकप्रिय नही बन सका। मिलते हैं । ऐसे ग्रन्थो का विस्तृत विवरण राजस्थान के समाचन्द द्वारा रचित हिन्दी पद्मपुराण एक विशालकाय जैन शास्त्र भण्डारो की ग्रन्थ सूचियो के पाच भागों में ग्रन्थ है। जिसकी रचना १७११ मे फागुन शुक्ला पचमी देखा जा सकता है । वैसे राम-कथा के प्रमुख ग्रन्थो में गुरुवार को समाप्त हुई थी। प्राकृत भाषा में निबद्ध विमलसूरि का पउमचरिय, अपभ्र श प्रन्थकार का परिचय के महाकवि स्वयभू का पउमचरिउ, संस्कृत भाषा में निबद्ध पद्पुराण के रचयिता समाचन्द मुनि थे जिनका
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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