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वर्ष ३६ ।
परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धासन्धुरविधानम् । सकलनविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण सवत् २५०६, वि० स० २०४०
वर्ष ३६
बार-सवा मन्दिर, २ वारियागंज, नई दिल्ली-२ (जुलाई-सितम्बर
जुलाई-सितम्बर
१९८३
सीख
जिया तोहि समुझायो सौ-सौ बार। देख-सुगुरु की पर-हित में रति हित-उपदेशनायो सौ-सौ बार। विषय भजंग सेय दुख पायो, प्रनि तिनि सों लपटायो। स्व-पद बिमार रच्यो पर-पद में, मद-रत ज्यों बौरायो। ताधन स्वजन नहीं हैं तेरे, नाहक नेह लगायो। क्यों न त भ्रम, चाख समामृत, जो नित संत सुहायो॥ प्रबहं समुझि कठिन यह नर-भव, जिन-वृष बिना गमायो। ते बिलख मनि डार उदधि में, 'दौलत' को पछतायो।
मन्तर उज्जल करना रे भाई। कपट कृपान तज नहि तबलों, करनी काजन सरना रे।। जप-तप तीरथ जज्ञ व्रतादिक, प्रागम अर्थ उचरना रे। विषय कषाय कोच नहिं बोयो, यों ही पचिपचि मरना रे॥ बाहिर भेष क्रिया उर शुचि सों, कोये पार उतरना रे। नाहीं है सब लोक-रजना, ऐसे वेदन बरना रे॥ कामाविक मल सों मन मैला, भजन किये क्या तिरनारे। 'भूपर'नील बसन पर कैसे, केसर रंग उछलना रे॥