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________________ साहित्य-समीक्षा ( हिन्दी का ऐतिहासिक दस्तावेज) दिवंगत हिन्दी सेवी लेखक : आचार्य श्री क्षेमचन्द्र 'सुमन' । प्रकाशक : शकुन प्रकाशन ३६२५ सुभाष मार्ग, नई दिल्ली। साइज डबल क्राउन, पृष्ठ ८५२, मूल्य ३००रु० । दिनांक २२ जून ८३ को जब हमने राष्ट्रपति भवन पर भारतीय भाषा - हिन्दी के प्रति महामहिम राष्ट्रपति के विचार सुने, हमारा मन राष्ट्र और हिन्दी-गौरव के प्रति नम्रीभूत हो उठा। राष्ट्रपति महोदय 'शकुन प्रकाशन' के उत्तम प्रकाशन 'दिवगत हिन्दी सेवी' के दूसरे खण्ड का उद्घाटन कर रहे थे । प्रस्तुत कृति आचार्य श्री क्षेमचन्द्र 'सुमन' के पुण्य संकल्पों और अथक परिश्रमों से खिला द्वितीय पुष्प है। इसके प्रथम खण्ड का उद्घाटन सन् ८१ में प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाधी ने किया था । महामहिम राष्ट्रपति ने कहा-हिन्दी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो समूचे देश को एक कड़ी में पिरोती है । हिन्दी यदि कमजोर होती है तो देश कमजोर होता है। अगर हिन्दी मजबूत हुई तो देश मजबूत होगा। देश की एकता मजबूत होगी । उन्होने कहा कि हिन्दी भाषा को कई सौ वर्षों से कमजोर बनाने के प्रयत्न होते रहे हैं फिर भी बिना किसी राजकीय सहयोग के हिन्दी देश के कोने-कोने मे बोली और दमझी जाती रही। इसके सीचने मे हमारे ऋषियों, मुनियों एवं साधुओं ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । आजादी की लड़ाई में हमारे नेता महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू आदि ने हिन्दी के जरिये जगे आजादी में कमाल का काम किया। जब मैं राष्ट्रपति बन कर यहां आया तो हिन्दी, उर्दू और गुरुमुखी का अखबार पढ़ने की इच्छा हुई लेकिन मुझे ये अखबार नही मिले। मुझसे कहा गया कि राष्ट्रपति भवन में सिर्फ अंग्रेजी के अखबार आते हैं। मुझे बहुत तकलीफ हुई। आजाद भारत में राष्ट्रपति भवन में जब देश को जोड़ने वाली भाषा के अखवार न आते हों तब देश की एकता कैसे रह सकती है। हालांकि अब वह कमी दूर हो गई और अब हिन्दी के अखबार आते हैं। हिन्दी की किसी भाषा से दुश्मनी नही है । हिन्दी तो सभी भाषाओं को साथ लेकर चलती है। मैं हिन्दी वालों से अनुरोध करूंगा कि वे सरल हिन्दी का प्रचार करें। जब लोग सरल हिन्दी पढने के आदी हो जायेंगे तब गूढ़ हिन्दी भी समझने लगेंगे । विगत हिन्दी सेवी का सपूर्ण प्रकाशन दस खण्डों में पूर्ण होगा और इसमें हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने में श्रेय प्राप्त तमिलनाडु, बगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब आदि प्रांतो के और सभी धर्मों के सन् १८०० के बाद के विगत हिन्दी सेवियों का परिचय रहेगा। प्रथम खण्ड में ८८९ और द्वितीय खण्ड मे ८६३ परिचयो का समावेश हो चुका है । दोनों खण्डों में लगभग - ५० जैननक्षत्रो पर भी हमारी दृष्टि पड़ी। देश की आजादी की लडाई, शासन - अनुशासन और भारत-भारती की सेवा आदि सभी क्षेत्रों मे जंनी सदा आगे रहे हैं। उक्त ग्रन्थ के प्रकाशन का कार्य भी तदनुरूप है। 'ग्रन्थ प्रकाशन' में आने वाली कठिनाइयों का जिक्र करते हुए श्री सुभाष जैन ने प्रारम्भिक स्वागत भाषण में कहा कि हिन्दी के प्रति समर्पित भाव के कारण ही उनमे ग्रन्थ को प्रकाशित करने का साहस हुआ । लेखक व प्रकाशक की सूझ, प्रयत्न, साहस और सामग्री सजोने की कला को जितना सराहा जाय, थोड़ा है। उनका सकल्प - लोगों को हिन्दी सेवी पूर्वजों की स्मृति करा, उन्हें श्रद्धा-सुमन चढ़ाने का अवसर देना है। इससे बड़ा उपकार कोई क्या होगा । हम जैन बन्धुओं से अपेक्षा करेंगे कि वे अपनी प्रतियां सुरक्षित करें और दिवंगत हिन्दी सेवी जैनोंके परिचय लेखक या प्रकाशक के पास अधिकाधिक संख्या में भेजें ताकि वे ग्रन्थ में उनका समावेश कर सकें । सम्पादक
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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