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________________ १६ वर्ष कि०२ अनेकान्त शलाका के पुरुषों का चरित्र कहना धमोंपदेश है।" ज्ञान और परित्र में प्रवृत्त होती है। स्वाध्याय से ही मैत्री इस प्रकार पाच प्रकार का स्वाध्याय विधि पूर्वक बढ़ती है। करना चाहिये, इससे कर्म क्षय होता है, वैराग्य की बखि स्वाध्याय करने से तर्क शक्ति, बुद्धि की प्रकर्षता. होती है और अन्ततोगत्वा मोक्ष-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। परमागम की स्थिति, वस्तु का यथार्थ ज्ञान एवं निर्णय, धर्म-प्रभावना करने की शक्ति आदि गुणों का विकास स्वाध्याय करने से यावत् वस्तु के स्वरूप का ज्ञान होता है यथाहोता है। मानसिक व्यापार अशुभ प्रवृत्ति से हटकर 'प्रजातिशय: प्रशस्ताध्यवसायाध्यर्थ स्वाध्यायः।' शुभ प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट होता है । आत्मा से राग-द्वेष इस प्रकार स्वाध्याय सांसारिक बन्धनों से मुक्त दूर होकर मात्मा बिशुद्ध हो जाती है । स्वाध्याय के करने होकर विजय लक्ष्मी (श्रेयस) प्राप्त करने का पहलू है तथा से राग, कोष, मान, माया, लोभादिक पापों से आत्मा जो सम्यग्ज्ञान के लिए आवश्यक है। पराङ्मुख होती है। आत्मा मोक्ष के मार्ग सम्यग्दर्शन, - अलीगंज (एटा) सन्दर्भ-सूची १. विद्वज्जन बोधक, पृ० ४६५ । "वाचना पृच्छनाम्नायस्तथा धर्मस्य देशना । २. पूर्वापर विरोधादि हिंसादिनाशनम् । अनुप्रेक्षा च निर्दिष्टः स्वाध्याय. पंचधा जिनः ॥ प्रमाणद्वय संबादिशास्त्रं सर्वज्ञभाषितम् तत्त्वार्थसार ६.१६ पृ० ३६३ । -स्वामी समन्त भद्राचार्य विरचित रत्नकरण्डश्राव- 'वाचना पृच्छनाऽनुप्रेक्षाऽम्नाय धर्मोपदेशाः।' काचार २०६८) -तत्वार्थ सूत्र ६२५॥ ३. चतुर्णामनुयोगानां जिनोक्तानां यथार्थतः । १३. शुद्ध धावक धर्म प्रकाश -श्री जैन समाज मारौठ अध्यापनमधीतिर्वा स्वाध्यायः कथ्यते हि सः ।। (राज.) पृ० २६२ । -संस्कृत भाब संग्रह, श्लोक सं ५६६, पृ० २१०। १४. निरवद्यग्रन्थार्थोभय प्रदानं वाचना।' ४. शुद्ध श्रावक धर्म प्रकाश-स्वाध्याय प्रकरण, जैन -राजवार्तिक १, पृ. ३४७ । समाज मरोठ (राज.) पृ० २५६ । १५. पृच्छनं संशयोच्छित्यै निश्चीति दृढ़नाय वा । ५. अनगार धर्मामृत-पं खूबचन्द्रकृत, भाषाटीका, पृ०७६४ प्रश्नोऽत्रीति प्रवृर्त्यर्थ त्वादर्थ्य विरसावपि ॥ ६. 'गार्ण गरस्स सारो।' -तत्त्वार्थ सार १४ -३१, दर्शन पाहुड़। १६. भाषा टीका तत्त्वार्थ सार, पृ० ३८३ । ७. अलोचन गोचरे ह्यर्थे शास्त्रं तृतीयं पुरुषाणाम।' १७. अनुप्रेक्षा द्वादशानुप्रेक्षानित्यत्वादेश्चिन्तनम।' -नीतिवाक्यामृतम् । -आचारवृत्ति, पृ० ३०६ । ८. पचनन्दि श्रावकाचार। १५. धर्मकथा धर्मोपदेश संस्तुति मंगला।' ६. 'सज्झाए वा निउत्तेण, सव्व दुःक्ख विमोक्खणे।' -आचार वृत्ति, पृ० ३०६ । १९. 'पठणाई सज्झायं वे एग णिवन्धणं कुणई विहिगा। -उत्तराध्ययन २६।१०।। १०. सम्यग्दर्शन शान चारित्राणि मोक्षमार्ग: - तत्त्वार्थ ११ समायं कुठवतो पंचेदियं सं वुडोति गुत्तोय । ११. प्रायश्चितविनययावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्त हवदि ए अग्गणो विणएण समाहि ओभिक्खू ।' रम्।-श्रीउमास्वामि विरचित 'तत्वार्थ सूत्र' २० । -मूलाचार पूर्वार्द्ध २१३, पृ० ३२१ । १९० २०. विनेयवद्विनेतृणामपि स्वाध्यायशालया।' १२. से कि तं सज्झाए पंचविहे पण्णते तं। -अनगारधर्मामृतमू पृ० ५२१ जहा वायणा पडिपुग्छण परिपट्टण धम्यकहा सेतं "विना विमर्शशून्यषीदंष्टेऽप्यन्धायतेऽध्वनि।' सज्झाए। -भगवती शतक ७३।०२। --सागारधर्मामृतम् पृ०४।
SR No.538036
Book TitleAnekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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